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chapter 2 kotla house?

 कक्षा खचाखच बच्चों से भरी हुई थी।‌ नया सत्र प्रारंभ हुए लगभग एक महा बीत चुका था। अश्वत को न दोस्त बनाना पसंद था और न ही उसका पढ़ाई लिखाई में कोई मन था, वह चुपचाप खिड़की के पास बैठा अपनी ही दुनिया में कहीं खोया हुआ था।  अश्वत नौवीं कक्षा में था। कक्षा में सभी बच्चों कि उम्र चौदह-पंद्रह वर्ष के आसपास थी। सर्दी के कारण, लड़कों ने लाल रंग का स्वेटर और उसके नीचे हल्के पीले रंग कि कमीज़ व ग्रे रंग कि पैंट तथा काले जूते पहने हुए थे, जबकि लड़कियों ने सफेद जूते पहने हुए थे और उन्होंने भी लाल रंग का स्वेटर और उसके नीचे हल्के पीले रंग कि कमीज़ पहनी हुई थी। लेकिन लड़कों कि भाँति लड़कियों ने पैंट नहीं बल्कि लाल रंग कि स्कर्ट पहनी हुई थी जिसकी लम्बाई उनके घुटनों के नीचे तक थी।  सभी बच्चे अपनी गुटरगूँ में लगे हुए थे कि अचानक उनके प्रधान अध्यापक कक्षा में प्रकट हुए। उनसे विद्यालय का हर बच्चा डरता था, इसलिए नहीं कि वह बच्चों को मारते ज्यादा थे, बल्कि इसलिए क्योंकि वह भरी क्लास में बेज्जती अच्छी करते थे।  वह लगभग एक वर्ष पूर्व इस विद्यालय में आए थे, इससे पहले वह कहीं और पढ़ाते थे। उन...
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Kotla House chapter 3 police

 हाईवे कि चिकनी काली सड़क पर जंगल के बीचों-बीच, धुंध उड़ाती हुई, एक गाड़ी रुकी आकर जिसमें से खाकी वर्दी पहने, दो पुलिस वाले गाड़ी से नीचे उतरे। वे दोनों पुलिस वाले उन बच्चों कि तलाश में वहाँ पहुँचे थे, जिन्हें गायब हुए कई महीने बीत चुके थे। अमन रोय जिसे पुलिस कि नई नौकरी और सब इंस्पेक्टर के नए पद के साथ अभी कुछ दिन ही हुए थे। वर्दी पर दो सितारों का गुरूर उसकी आँखों में चमकता था। उसे कुछ ऐसा चाहिए था जिससे पुलिस विभाग में उसका नाम रोशन हो सके और अति शीघ्र उसकी पदोन्नति भी हो सके। अमन स्वयं को एक मसीहा समझता था, लोगों को बचाने वाला हीरो, जिसे अपने जीवन से अधिक दूसरों के जीवन कि चिंता होती है, लेकिन उसमें ऐसा कोई गुण नहीं था।  एक दिन एक ऑटो वाला पुलिस स्टेशन आया। “ सर, मेरा नाम बिपिन कुमार है और मैंने बाहर ये पोस्टर लगा‌ देखा। ” ऑटो वाले ने एक हवलदार को एक पोस्टर दिखाते हुए कहा, जिसमें अश्वत, रचित, विक्रम और मेघना कि तस्वीरें थीं। “ हाँ तो, यह तो कई महीनों से लगा है। ” हवलदार ने जवाब दिया। “ लेकिन सर, आखिरी बार मैंने इन बच्चों को कोटला हाउस के रास्ते पर छोड़ा था। उन लोगन ने कहा थ...

kotla house description synopsis

 सारांश कोटला हाउस: रहस्यों का आरंभ यह एक ऐसे विचित्र और चमत्कारी घर की कहानी है जो भूतिया नहीं बल्कि अत्यंत रहस्यमई है। एक ऐसा घर जिसके भीतर जाने वाले लोग कभी बाहर नहीं आ पाते, वे जीवन भर के लिए उसी घर में कैद हो जाते थे।  कहते हैं वह घर दो सदियों से भी अधिक पुराना था, जिसका निर्माण 18वीं शताब्दी में ‘आदित्य नारायण कोटला’ ने करवाया था, जिनके नाम पर ही उस घर का नाम ‘ कोटला हाउस ’ पड़ा था।  अश्वत और नैना इस कहानी के मुख्य किरदार हैं जो उस घर में हमेशा- हमेशा के लिए कैद हो जाते हैं। उस घर के अंदर जाने के बाद उन्हें पता चलता है कि उस घर में भूत नहीं बल्कि कई जीवित मनुष्य कैद थे। लेकिन नैना की मृत्यु तथा अपना आधा जीवन उस घर में गुजारने के बाद, अश्वत उस घर से बाहर निकलने के अथक प्रयत्न करता है जिसके बाद अंत में वह उस मनहूस घर से स्वतंत्र हो जाता है। केवल अश्वत ही था जो उस घर से बाहर निकल पाया, जो चोदह वर्ष की आयु में उस घर में गया था और कई वर्षों के बाद पूरा एक दाढ़ी मूँछों वाला आदमी बनकर बाहर आया। यह कहानी तीन भागों में विभाजित है और यह पहला भाग है जिसका नाम है “ कोटला हाउस: ...

mangetar naina ashwat kotla house

 “ हेइ नैना! ” अचानक दरवाज़ा खुलते ही एक आवाज़ आई। दरवाज़े से नैना का मंगेतर अंदर आया, नैना को देखते ही जो मुस्कान उसके चेहरे पर खिली थी, वह अचानक कहीं लुप्त हो गई, उसने बड़ी हैरत से उन दोनों को देखा। नैना के बाल भीगे हुए थे तथा शरीर पसीने से लथपथ था और अश्वत भी पसीने में डूबा हुआ दिख रहा था, वे दोनों कुछ क्षण पहले ही मौत के मुँह में जाते-जाते बचे थे, लेकिन अश्वत और नैना को उस बाथरूम में अकेला देख, वह उन दोनों के बारे में गलत सोचने लगा। “ ओह्! तो इसलिए तुम यहाँ आई थीं। ” नैना के मंगेतर ने नैना को संदेह भरी दृष्टि से देखते हुए कहा। “ क्या! ” नैना राहुल की बात को समझने का प्रयास ही कर रही थी, कि अचानक राहुल उस कक्ष को त्यागने के विचार से चल दिया। नैना ने भागकर उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, “ राहुल तुम गलत समझ रहे हो, जो तुम सोच रहे हो हमारे बीच ऐसा कुछ भी नहीं है। ” “ तो तुम लोगों ने ऐसी कौन सी मेहनत की है, जो तुम लोग इस तरह पसीने में भीगे हुए हो और वो‌ भी इस बाथरूम में। ” राहुल ने अविश्वास से कहा। “ तुम्हें मुझ पर विश्वास है या नहीं। ” नैना ने दृढ़ता से पूछा, अब बात उसके आत्मसम्मान पर बन...

ashwat naina love kiss scene

 “ मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही!” नैना उस सोफे पर बैठते हुए बोली। “ क्या तुम सच में इस घर से आज तक कभी बाहर नहीं गए और अगर तुम इतने वर्षों से इस घर में कैद हो, तो यहाँ खाते-पीते क्या हो और क्या तुम्हें अपने परिवार कि याद नहीं आती।” नैना ने अपने माता पिता को याद करते हुए पूछा। “ ज्यादा सोचो मत, धीरे-धीरे तुम्हें सब समझ में आ जाएगा, पहले ही दिन सब कुछ जानने कि कोशिश करोगी तो तुम्हारे सिर में दर्द होने लगेगा।” अश्वत ने नैना कि चिंता करते हुए कहा, वह उसे परेशान नहीं देख सकता था, इसलिए उसे चिंता करने के लिए मना कर रहा था। उस कक्ष में तीन हरे रंग के सोफे रखे हुए थे, निराश मन से खड़ी नैना काफी थक चुकी थी इसलिए कुछ देर आराम करने के लिए वह किसी एक सोफे पर बैठ गई। कुछ देर आराम से बैठने के बाद उसकी आंख लग गई और वह सो गई। उसे सोता देख अश्वत भी उसके नजदीक बात गया, और काफी देर तक उसे ही घूरता रह, उसका मन नैना को चूमने का कर रहा था लेकिन मर्यादा ने उसकी इच्छाओं को बांध रखा था। कुछ देर बाद उसकी भी आँख लग गई। कुछ देर बाद, अश्वत एक ख़तरनाक आवाज से डरकर उठ गया, उसने देखा नैना जोर-जोर से राक्षसों की...

ashwat kid serviving story kotla house

 14 साल का छोटा सा अश्वत कई दरवाजों को खोल खोल कर निरीक्षण करता हुआ पुनः उस बड़े से हॉल में पहुंच गया जहां वे दोनों गेंदों की मूर्तियां अभी भी उस विशाल द्वार की रक्षा में ऐसे खड़ी हुई थीं उनके होते हुए उस द्वार में प्रवेश करना असंभव था। जिस द्वार से नैना उस हाल में निकल कर आई थी अशोक ने उस द्वार को खोल कर देखा जा कर लेकिन वह दरवाजा अश्वत से नहीं खुला और इसी तरह अश्वत में उस गलियारे के सभी दरवाजे एक-एक करके खोल कर देखें लेकिन एक भी दरवाजा नहीं खुला और अश्वत्थ भयभीत होकर पुनः उस विशाल हॉल में पहुंच गया। उसने कई बार उन सीढ़ियों से ऊपर जाने का विचार किया लेकिन डर के कारण वह उन सीढ़ियों की ओर एक कदम भी बढ़ाया। वह काफी देर तक उन मूर्तियों को घूरता रहा और यह विचार करता रहा की है कब पुनः जीवित होंगी लेकिन वे तो ज्यों की त्यों बनी रहीं,  उसने सिर उठाकर ऊपर देखा, उसे उस हॉल के ऊपर एक विशाल कांच की अष्टभुज खिड़की नज़र आई जो बहुत ऊंचाई पर थी। अश्वत ने ड्रिंक काउंटर की तरफ, उसे कई कांच की खाली बोतले नजर आई। वह उस ड्रिंक काउंटर की तरफ गया और वहां से एक बोतल उठा कर वापस उस हॉल के बीच में खड़...

story 5 naina kotla

 जिसमें लिखा था - आप लोगों को अब तक खाना  बनाने और खाने का भरपूर समय दिया गया, जिसके लिए आपको मेरा धन्यवाद करना चाहिए। अब यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप इस घर का बिल्कुल अपने घर की तरह ही ध्यान रखें और इस घर में आने वाले मेहमानों को अपना ही मेहमान समझें इसलिए आप लोगों को मेरे सबसे प्रिय मेहमानों के लिए हॉल के डाइनिंग टेबल पर खाना लगाना है। तुम्हारा प्रिय बुड्ढा - सुमित सक्सेना। “ शायद यह तुम्हारी बात कर रहा है! ” अश्वत उस संदेश में लिखी बातों को समझते हुए नैना से बोला। “ यह बुड्ढा अपने आप को भगवान समझता है क्या? इसको ऐसा मज़ा चखाऊँगी कि दोबारा मेरे हाथों का खाना नहीं मांगेगा। ” नैना भड़कते हुए पटर-पटर किसी षड्यंत्र के बारे में सोचते हुए बोली। नैना ने गुस्से में सबसे पहले अश्वत द्वारा बनाई गई चाय में एक मुट्ठी मिर्च डाल दी। अचानक उसे रोकते हुए अश्वत बोला, “ तुम पागल हो गई हो क्या! तुम्हें पता है, इसके कितने बुरे परिणाम हो सकते हैं हमें इसकी सज़ा मिल सकती है। ” “ सज़ा! इस घर में कैद रहने से ज्यादा बुरा और क्या हो सकता है। ” नैना  ने कहा।