कक्षा खचाखच बच्चों से भरी हुई थी। नया सत्र प्रारंभ हुए लगभग एक महा बीत चुका था। अश्वत को न दोस्त बनाना पसंद था और न ही उसका पढ़ाई लिखाई में कोई मन था, वह चुपचाप खिड़की के पास बैठा अपनी ही दुनिया में कहीं खोया हुआ था। अश्वत नौवीं कक्षा में था। कक्षा में सभी बच्चों कि उम्र चौदह-पंद्रह वर्ष के आसपास थी। सर्दी के कारण, लड़कों ने लाल रंग का स्वेटर और उसके नीचे हल्के पीले रंग कि कमीज़ व ग्रे रंग कि पैंट तथा काले जूते पहने हुए थे, जबकि लड़कियों ने सफेद जूते पहने हुए थे और उन्होंने भी लाल रंग का स्वेटर और उसके नीचे हल्के पीले रंग कि कमीज़ पहनी हुई थी। लेकिन लड़कों कि भाँति लड़कियों ने पैंट नहीं बल्कि लाल रंग कि स्कर्ट पहनी हुई थी जिसकी लम्बाई उनके घुटनों के नीचे तक थी। सभी बच्चे अपनी गुटरगूँ में लगे हुए थे कि अचानक उनके प्रधान अध्यापक कक्षा में प्रकट हुए। उनसे विद्यालय का हर बच्चा डरता था, इसलिए नहीं कि वह बच्चों को मारते ज्यादा थे, बल्कि इसलिए क्योंकि वह भरी क्लास में बेज्जती अच्छी करते थे। वह लगभग एक वर्ष पूर्व इस विद्यालय में आए थे, इससे पहले वह कहीं और पढ़ाते थे। उन...
हाईवे कि चिकनी काली सड़क पर जंगल के बीचों-बीच, धुंध उड़ाती हुई, एक गाड़ी रुकी आकर जिसमें से खाकी वर्दी पहने, दो पुलिस वाले गाड़ी से नीचे उतरे। वे दोनों पुलिस वाले उन बच्चों कि तलाश में वहाँ पहुँचे थे, जिन्हें गायब हुए कई महीने बीत चुके थे। अमन रोय जिसे पुलिस कि नई नौकरी और सब इंस्पेक्टर के नए पद के साथ अभी कुछ दिन ही हुए थे। वर्दी पर दो सितारों का गुरूर उसकी आँखों में चमकता था। उसे कुछ ऐसा चाहिए था जिससे पुलिस विभाग में उसका नाम रोशन हो सके और अति शीघ्र उसकी पदोन्नति भी हो सके। अमन स्वयं को एक मसीहा समझता था, लोगों को बचाने वाला हीरो, जिसे अपने जीवन से अधिक दूसरों के जीवन कि चिंता होती है, लेकिन उसमें ऐसा कोई गुण नहीं था। एक दिन एक ऑटो वाला पुलिस स्टेशन आया। “ सर, मेरा नाम बिपिन कुमार है और मैंने बाहर ये पोस्टर लगा देखा। ” ऑटो वाले ने एक हवलदार को एक पोस्टर दिखाते हुए कहा, जिसमें अश्वत, रचित, विक्रम और मेघना कि तस्वीरें थीं। “ हाँ तो, यह तो कई महीनों से लगा है। ” हवलदार ने जवाब दिया। “ लेकिन सर, आखिरी बार मैंने इन बच्चों को कोटला हाउस के रास्ते पर छोड़ा था। उन लोगन ने कहा थ...