14 साल का छोटा सा अश्वत कई दरवाजों को खोल खोल कर निरीक्षण करता हुआ पुनः उस बड़े से हॉल में पहुंच गया जहां वे दोनों गेंदों की मूर्तियां अभी भी उस विशाल द्वार की रक्षा में ऐसे खड़ी हुई थीं उनके होते हुए उस द्वार में प्रवेश करना असंभव था।
जिस द्वार से नैना उस हाल में निकल कर आई थी अशोक ने उस द्वार को खोल कर देखा जा कर लेकिन वह दरवाजा अश्वत से नहीं खुला और इसी तरह अश्वत में उस गलियारे के सभी दरवाजे एक-एक करके खोल कर देखें लेकिन एक भी दरवाजा नहीं खुला और अश्वत्थ भयभीत होकर पुनः उस विशाल हॉल में पहुंच गया।
उसने कई बार उन सीढ़ियों से ऊपर जाने का विचार किया लेकिन डर के कारण वह उन सीढ़ियों की ओर एक कदम भी बढ़ाया।
वह काफी देर तक उन मूर्तियों को घूरता रहा और यह विचार करता रहा की है कब पुनः जीवित होंगी लेकिन वे तो ज्यों की त्यों बनी रहीं,
उसने सिर उठाकर ऊपर देखा, उसे उस हॉल के ऊपर एक विशाल कांच की अष्टभुज खिड़की नज़र आई जो बहुत ऊंचाई पर थी।
अश्वत ने ड्रिंक काउंटर की तरफ, उसे कई कांच की खाली बोतले नजर आई। वह उस ड्रिंक काउंटर की तरफ गया और वहां से एक बोतल उठा कर वापस उस हॉल के बीच में खड़ा हो गया आकर।
उसने अपना पूरा दम लगा कर उस बोतल को उस कांच की खिड़की की तरफ फेंका लेकिन वह उस ऊंचाई तक पहुंचे ही नहीं पाई और तीव्रता से जमीन पर गिरकर कई हिस्सों में टूट कर यहां वहां बिखर गई। उसने उस खिड़की को तोड़ने की एक और कोशिश की लेकिन वह पुनः असफल रहा।
अचानक जिस दरवाजे से वह हॉल में आया था, वह दरवाजा खड़खड़ आने लगा और ऐसा लगा जैसे उस दरवाजे को अंदर से कोई अधीरता से खोलने का प्रयास कर रहा हो। अंदर से किसी की आवाज तो नहीं आई लेकिन दरवाजा पीटने की आवाज में अभी भी जारी थीं।
अश्वत एक अनिश्चित संकट से बचने के विचार से छुपने के लिए इधर-उधर अपनी दृष्टि घुमाने लगा। वह भागकर ड्रिंक काउंटर के पीछे बैठ गया जाकर, रात भर
कुछ देर बाद दरवाजे का खड़कना बंद हो गया, लेकिन अश्वत डर के कारण ड्रिंक काउंटर से बाहर ही नहीं निकला। उसकी आँखों में नींद भरी हुई थी लेकिन उसकी यादों के आंसू उसे सोने नहीं दे रहे थे अपने माता पिता की याद में वह रो रहा था। अपनी छोटी बहन को याद करके उसके आंसुओं ने उसके गालों को गिला करना शुरू कर दिया।
वह रात भर उस ड्रिंक काउंटर के पीछे छुप कर रोता रहा लगभग 1 प्रहर के बाद, उस टेबल के सहारे बैठा बैठा सो गया।
उसकी आंखें तब खुली जब उसके कानों में विक्रम की आवाज बड़ी, विक्रम बहुत ज़ोर से चिल्लाया, “ तू पागल है क्या!”
उसकी यह प्रतिक्रिया मेघना के थप्पड़ मारने से दी। अश्वत ने काउंटर के पीछे से हल्का सा सिर निकालकर देखा।
उसे विश्वास नहीं हुआ जो उसकी आंखों के सामने हो रहा था, वह स्वयं को देखकर स्तब्ध रह गया, उसने हॉल में विक्रम अश्वत रचित नैना और स्वयं को खड़ा देखा जो अपनी विस्मय भरी बातों में संलग्न थे। परेशानी कि लकीरें माथे पर साफ साफ दिखाई दे रही थीं।
इधर घर कि विचित्र को देख हैरान था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर उस घर में चल क्या रहा था। वह वह पुनः उसी घटना को घटित होते हुए देख रहा था जो उसके साथ पिछले ही दिन घटित हुई थी। ऐसी दुष्कर घटना विरले ही देखने को मिलती है जो अश्वत स्वयं अपनी आंखों से देख रहा था।
इस तरह उस घर की असंख्य समस्याओं का सामना करते हुए उसने अपने जीवन के कई वर्ष उस घर में व्यतीत किए, इस कालावधी में उसने प्राणघातक संकटों का सामना करते हुए उस घर
के कई रहस्यों को जाना और समझा।
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