“ मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही!” नैना उस सोफे पर बैठते हुए बोली। “ क्या तुम सच में इस घर से आज तक कभी बाहर नहीं गए और अगर तुम इतने वर्षों से इस घर में कैद हो, तो यहाँ खाते-पीते क्या हो और क्या तुम्हें अपने परिवार कि याद नहीं आती।” नैना ने अपने माता पिता को याद करते हुए पूछा।
“ ज्यादा सोचो मत, धीरे-धीरे तुम्हें सब समझ में आ जाएगा, पहले ही दिन सब कुछ जानने कि कोशिश करोगी तो तुम्हारे सिर में दर्द होने लगेगा।” अश्वत ने नैना कि चिंता करते हुए कहा, वह उसे परेशान नहीं देख सकता था, इसलिए उसे चिंता करने के लिए मना कर रहा था।
उस कक्ष में तीन हरे रंग के सोफे रखे हुए थे, निराश मन से खड़ी नैना काफी थक चुकी थी इसलिए कुछ देर आराम करने के लिए वह किसी एक सोफे पर बैठ गई।
कुछ देर आराम से बैठने के बाद उसकी आंख लग गई और वह सो गई। उसे सोता देख अश्वत भी उसके नजदीक बात गया, और काफी देर तक उसे ही घूरता रह, उसका मन नैना को चूमने का कर रहा था लेकिन मर्यादा ने उसकी इच्छाओं को बांध रखा था। कुछ देर बाद उसकी भी आँख लग गई।
कुछ देर बाद, अश्वत एक ख़तरनाक आवाज से डरकर उठ गया, उसने देखा नैना जोर-जोर से राक्षसों की भाँति खर्राटें भर रही थी और जब भी नीद के कारण उसकी गर्दन इधर-उधर गिरती तो उसकी चेतना उसे झंझोड़ कर रख देती और कुछ दैर के लिए उसके खर्राटों पर विश्राम लग जाता और वह गहरी नींद में चली जाती। उसकी खराटे बंद होने के बाद अश्वत भी फिर से हो गया लेकिन कुछ देर बाद उसके खराटे फिर से शुरु हो गए। अश्वत फिर से जाग गया, उस घर में ज़रा सी भी हलचल पर, किसी भी अनचाहे खतरे को भाँप कर, उसकी नींद खुलने कि आदत पड़ चुकी थी।
इस बार अश्वत नैना कि गर्दन को लुढ़कता देख, स्वयं को रोक नहीं पाया और वह नैना के सिर को अपने कंधे से सहारा देते हुए उसके करीब बैठ गया, जिससे नैना आराम से रात भर सो सके, लेकिन इस चक्कर में अश्वत कि नींद हराम हो गई क्योंकि गहरी नींद आने के बाद नैना लगातार खराटे लेती रही।
जब नैना कि आँखें खुलीं तब उसे सबसे पहले अपने सामने अश्वत का ही चेहरा दिखा, जो प्रेम भरी दृष्टि से लगातार उसे ही देख रहा था। नैना कोई प्रतिक्रिया नहीं थी वह भी कुछ पल के लिए अश्वत देखती रही, अश्व नैना को गलत समझ बैठा और उसकी प्रेम भरी दृष्टि से आकर्षित होकर, अश्वत उसके होठों को चूमने ही वाला था कि नैना भड़भड़ाकर उठ खड़ी हुई, जैसे उसे स्मरण हो आया हो कि वह गलत करने जा रही थी।
“ क्या करने जा रहे थे!” नैना ने ऐसे बोली जैसे वह अश्वत को जानती ही नहीं थी।
“ तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे ये सब पहली बार होने वाला था।” अश्वत ने कहा।
“ ओ… हैलो मिस्टर! इस बारे में सोचना भी मत। उस बात के आठ साल बीत चुके हैं और वो एक बचपना था। अब मंगनी हो चुकी है मेरी।” नैना ने अपनी सगाई की अँगूठी दिखाते हुए कहा। अश्वत मुस्कुराने लगा।
“ मंगनी हो या शादी लेकिन अब कोई फायदा नहीं। क्योंकि अब आठ जन्म भी ले लोगी, तब भी इस घर से बाहर नहीं निकल पाओगी और वो तुम्हारा बावला मंगेतर, एक दिन आएगा तुम्हें ढूंढता हुआ, तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम कितने बड़े गधे के साथ शादी करने जा रही थीं।”
“ क्या क्या कहा तुमने। इसका मतलब मैं भी तुम्हारी तरह इस घर में हमेशा कैद रहूंगी। नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता।
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