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story of ashwat kotla house chapter 6

 उस आदमी ने अश्वत को ज़ोर से धक्का देते हुए ज़मीन पर पटक दिया, जो हाॅल से छोटे से अश्वत को बलपूर्वक खींच लाया था। दाढ़ी मूँछ वाला वह आदमी, जिसका पथरीला चेहरा अत्यंत भड़का हुआ दिख रहा था, उसका गोरा रंग कई दिनों से ना नहाने के कारण मंद पड़ चुका था। वह गुस्से के कारण किसी जानवर की तरह हुंकार भर रहा था।


वह अश्वत को बलपूर्वक किसी अन्य कक्ष में घसीट लाया था, जहाँ वे दोनों अकेले थे। अश्वत उस आदमी कि क्रूरता से सहमा हुआ ज़मीन पर पड़ा हुआ था, वह यही विचार कर रहा था कि उसने ऐसी कौन सी भूल की थी, जो वह आदमी उसके साथ ऐसा व्यवहार कर रहा था।


अश्वत ने फुर्ती से उठ कर वहाँ से भागने का विचार किया, लेकिन उस आदमी ने पीछे से उसके बैग को पकड़ कर खींचते हुए उसे वापस ज़मीन पर गिरा दिया, बैग उस आदमी के हाथ में ही रह गया और अश्वत पुनः उस लकड़ी की फर्श पर जा गिरा।


“ भाग कर कहाँ जाएगा, साले! ” उस आदमी ने अश्वत से क्रोधित होकर कहा।


अश्वत ने मेघना का बैग उस आदमी के हाथ में देखा और उसके उसी हाथ में उसकी कलाई से लेकर कोहनी तक सफेद रंग की एक मरहम पट्टी बंधी हुई थी, क्योंकि उसके हाथ पर एक भयानक घाव था जो उसे एक खूंखार जानवर ने दिया था।


“ तू ही इस सब की शुरुआत है और अगर तू ही भाग गया, तो यह सब ऐसे ही चलता रहेगा। यह दर्द कभी खत्म नहीं होगा, कभी नहीं! ” उस आदमी ने कहा, उसकी बात का अर्थ समझ पाना अश्वत के लिए असंभव था।


“ मतलब! ” अश्वत ने घबराते हुए पूछा।


“ जब मरना ही है तो जान कर क्या करेगा! यह समझ ले, मैं तेरा काल बनकर तेरे सामने आया हुँ। ” वह आदमी एक दरिंदा था, जो एक छोटे से बच्चे का जीवन खत्म करना चाहता था।


उस आदमी ने अपने उसी हाथ से जिसमें पट्टी बंधी हुई थी, अश्वत का गला अपनी बाजुओं में दबाकर, उसका दम घोटना शुरू कर दिया।


अश्वत किसी मछली की तरह छटपटाने लगा, उसने यह सोचते हुए अपने माता-पिता को अंतिम बार याद किया कि कुछ ही देर में उसका जीवन समाप्त होने वाला था।


लेकिन अचानक उसने अपनी अंतिम श्वास छोड़ने से पहले, उस आदमी के पट्टी से बंधे हुए हाथ को अपना पूरा बल लगाते हुए दबा दिया।


उस आदमी के घाव में उठी भयंकर पीढ़ा से उसकी पकड़ ढीली हो गई और अश्वत घुटनों के बल जमीन पर खांसता हुआ गिरा। उस आदमी ने देखा, उसकी सफेद रंग की पट्टी अब धीरे-धीरे लाल होती जा रही थी, पट्टी के भीतर रक्त का बहाव पुनः शुरु हो चुका था।


उसके बाद उस आदमी को अश्वत पर बहुत क्रोध आया, बोला, “ तुझे पता है, मेरे साथ भी यही सब हुआ था इसलिए मैं समझ सकता हूँ तुझे कितना दर्द हो रहा होगा, लेकिन जिंदगी भर के दर्द से, यह छोटा सा दर्द बहुत सुकून देगा, जो गलती उसने की थी वही गलती मैं नहीं दोहराऊँगा, बल्कि मैं तुझे खत्म करके ही दम लूँगा। ”


उसने फिर से अश्वत को पकड़कर, उसका गला घोटना शुरू कर दिया और इस बार अश्वत की पुरानी वाली चाल भी काम नहीं आने वाली थी।


अचानक अमन को ढूँढ़ते हुए, उस कक्ष में सागर आ टपका। उसने देखा एक आदमी छोटे से बालक को गला घोंट कर जान से मारने का प्रयास कर रहा था।


सागर ने अधिक समय ना लेते हुए उस आदमी से अश्वत की जान बचाना शुरू कर दिया, लेकिन वह आदमी अश्वत को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था। ना जाने क्यों अश्वत के प्राण लेना ही उसका सर्वोपरि लक्ष्य था।


उस आदमी से अश्वत को छुड़ाने के लिए सागर ने भी वही किया जो अश्वत ने किया था, सागर ने देखा उस आदमी के एक हाथ से खून बह रहा था, सागर ने भी उसका वही हाथ मरोड़ते हुए कहा, “ तुझे शर्म नहीं आती, एक छोटे से बच्चे की जान लेने की कोशिश कर रहा है। ”


सागर द्वारा हाथ मरोड़ते ही उस आदमी ने अश्वत को पुनः छोड़ दिया, उसकी पकड़ से छूटते ही अश्वत उस कक्ष से अपनी जान बचाते हुए भाग गया।


डरा हुआ अश्वत अपनी जान बचाने के लिए, कई दरवाजों से होता हुआ, भागता चला गया लेकिन वे दरवाज़े समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। वह एक ऐसे कमरे में जा पहुँचा, जहाँ सारा सामान इधर-उधर फर्श पर बिखरा पड़ा था।


पेन, पेंसिल, रंग, कागज़ इधर उधर बिखरे पड़े थे। वहाँ एक स्टडी टेबल था, अश्वत छुपने के लिए उसके पीछे बैठ गया जा कर। उसे अचानक कर्कश भारी श्वास लेने की भारी आवाज़ सुनाई दी, वह ध्यान लगा कर उस आवाज़ को सुन रहा था, उसे उस कक्ष में किसी और के होने की भी आहट सुनाई दे रही थी।


अचानक अति बलिष्ठ और विशालकाय आकर वाला एक खूंखार शेर उस टेबल के ऊपर कूदा, उसके भारी वजन से टेबल लड़खड़ाने लगा, अश्वत यह सोच कर डर गया कि अब कौन सी मुसीबत थी, जो उसके सिर पर खड़ी थी।


उसने टेबल के नीचे से अपना सिर बाहर निकाल कर देखा, ठीक उसी समय पर, वह शेर भी अपने विशाल जबड़ों के साथ नीचे ही झाँक रहा था। उसके भयानक जबड़े देख अश्वत डर कर चीख पड़ा और जैसे बिल्ली को देख चूहा अपनी जान बचाने के लिए दुम दबाकर भागता है, वैसे ही अश्वत भी वहाँ से ऐसे भागा जैसे मृत्यु नहा धोकर आज उसके पीछे ही पड़ गई हो।


उसे भागता देख, टेबल पर खड़े उस शेर ने अश्वत पर छलाँग मार दी और ज़मीन पर गिराकर, उसके सीने को अपने पंजे से दबा कर खड़ा हो गया। अश्वत अपनी सुधबुध खोए झटपटाते हुए, आँखें बंद कर पागलों की तरह चीखे जा रहा था।


उसे लगने लगा था जैसे आज वह एक साथ कई डरावने सपने देख रहा था, जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।


“ ये सभी मनुष्य हमें देखकर चीखने क्यों लगते हैं। ” अश्वत को चीखते देख वह शेर अपनी भारी आवाज़ में बोला, वह अद्भुत शेर मनुष्यों की तरह बात कर सकता था, विचार कर सकता था और मनुष्यों की बातें समझ भी सकता था। लेकिन अश्वत को लगा जैसे उस कक्ष में कोई मनुष्य भी था जिसे अपनी उम्मीद समझकर वह यहाँ वहाँ देखने लगा, लेकिन उसे कोई मनुष्य नज़र नहीं आया।


“ किसी भी संकट से बचने के लिए ये सारे मनुष्य ऐसे ही चीखते चिल्लाते हैं, गुरु! ” अश्वत को फिर से एक पतली आवाज़ सुनाई दी, जो पहली वाली आवाज़ से भिन्न थी, लेकिन पुनः उसे कोई दिखाई नहीं दिया।


तभी एक चूहा, जो उस शेर के गर्दन के बालों में कहीं छुपा हुआ था, उसके घने बालों के सहारे चढ़ता हुआ, उस शेर के माथे पर जा खड़ा हुआ। 


“ खत्म करदो इस बालक को, यह मेरा अंतिम आदेश है। ” वह चूहा शेर के माथे पर खड़ा नाटकीय ढंग से किसी शासक की भाँति आदेश देते हुए बोला, वह चूहा मनुष्यों की तरह अपने दो पैरों पर खड़ा हो सकता था, बात समझ सकता था और अपनी बातों में उलझा भी सकता था, उस शेर ने अपने माथे को अचानक ज़ोर से झटक दिया, जिसके कारण वह चूहा पट्ट से ज़मीन पर जा गिरा।


“ कितनी बार कहा है आपसे की हमारे माथे पर मत चढ़ा करिए, हमें अच्छा नहीं लगता और अगर अगली बार हमारे बालों को खींचा तो हमारा अगला शिकार आप ही बनेंगे। ” शेर उस चूहे पर भड़कते हुए बोला।


“ ऐसा नहीं है गुरु, मैं तो आपके चरणों में पड़ा रहूँ लेकिन आपके माथे से व्यू अच्छा दिखता है। ” उस चूहे ने याराना अंदाज में कहा।


उन दोनों को बातें करते देख, मानो अमन का डर कहीं गायब हो चुका था, वो तो हैरानी भरी दृष्टि से एक चूहे और शेर को बतियाते देख रहा था। उसे आज असंभव जैसी चीजें भी संभव दिख रही थीं।


अश्वत को ऐसा लगा जैसे वह कोई स्वप्न देख रहा था, क्योंकि वास्तविकता में ऐसे दृश्य विरले ही देखने को मिलते हैं, लेकिन उसकी पीढ़ा और डर वास्तविक था, अगर ये सब कोई स्वप्न होता तो अब तक उसकी आँखें खुल चुकी होतीं लेकिन वह शेर अभी भी उसके सीने पर अपना पैर जमाए खड़ा था और उस चूहे से मनुष्यों की तरह बातें भी कर रहा था।


“ इसे मारने से पहले इसके साथ थोड़ा खेल तो लें, इतने वर्ष हो गए अभी तक किसी को डरा डरा कर मारने का आनंद नहीं लिया ” शेर ने कहा।


उसकी बात सुनकर अश्वत समझ गया कि वह शेर शीघ्र ही उसका अंत करने वाला था। जिसके बाद अश्वत फिर से छटपटाता हुआ उसके पंजे को अपने दोनों हाथों से उठाने की कोशिश करता हुआ वहाँ से भागने को उतारू हो गया।


अश्वत को छटपटाते देख वह चूहा चीखता हुआ हँसा और बोला, “ गुरु आपकी बातों से ही यह इतना छटपटा रहा है तो जब आप इसे तड़पा तड़पा कर मारेंगे तो सोचिए आपको कितना आनंद मिलेगा। ”


“ जब कबूतर उड़ नहीं पाता तो अक्सर ऐसे ही फड़फड़ाता है और जो मुझसे जितना डरता है, मुझे उसे डरा डरा कर मारने में बहुत मज़ा आता है। ” शेर ने कहा।


वे दोनों कई वर्षों से उस घर के एक विशेष कक्ष में कैद थे। किसी कारणवश उस कक्ष का द्वार खुल जाने के कारण वह दोनों अब उस कैद से स्वतंत्र हो चुके थे, लेकिन आसमान से गिरे और खजूर पर अटके, उस कैद से छूटने के बाद अब वे दोनों कोटला हाउस के चक्रव्यूह में फंस चुके थे।


“ छोड़ दो मुझे, प्लीज़! छोड़ दो! प्लीज़! छोड़ दो! ” अश्वत उस शेर से अपने जीवन की भिक्षा मांगते हुए गिड़गिड़ा रहा था, क्योंकि उसे लगा कि वह उस शेर की बात समझ सकता है, तो वह शेर भी उसकी बात समझ सकेगा। 


लेकिन अश्वत के गिड़गिड़ाने से उस शेर पर विपरीत प्रभाव पड़ा, उसने अपने पंजे के नुकीले नाखून बाहर निकालते हुए, अश्वत के सीने पर घाव कर दिए, जिसके बाद अश्वत और जोर-जोर से चीखने लगा।


“ चीख और चीख, बड़े दिन हो गए किसी को गिड़गिड़ाते नहीं देखा। ” वह शेर क्रूरता से बोला।


“ अरे गुरु! अभी तक आपने इसे अपने सबसे लोकप्रिय और खतरनाक अंदाज़ से तो डराया ही नहीं। ” वह चालाक चूहा इतना क्रूर था नहीं जितना वह दिखा रहा था, लेकिन उस शेर के साथ जीवित रहने के लिए वह हमेशा उसकी तारीफ ही करता रहता था, इसलिए अभी तक उसका जीवन सुरक्षित था।


उसकी बात सुनकर शेर के मुख पर प्रसन्नता छा गई और अपने सबसे खतरनाक और लोगों के हृदय दहला देने वाले अंदाज़ का प्रयोग अश्वत पर किया।


शेर ने अपना पूरा जबड़ा दिखाते हुए अपना भयानक मुँह खोल कर, जिसमें अश्वत का पूरा सिर समा सकता था, दहाड़ा।


अश्वत की रूह काँप गई और उस भयानक दहाड़ से उसके कान सुन्न पड़ गए, हृदय इतनी तीव्रता से धड़कने लगा मानो उछल कर सीने से बाहर ही गिर पड़ेगा। भय के कारण उसके शरीर का हर एक अंग फड़क रहा था, आत्मा शरीर छोड़ने को हुई किंतु ऐसा हो नहीं सका।


अश्वत पसीने से भीग चुका था और उसके हाथ-पैर काँप रहे थे, अब तो उसके बचने की एक ही आशा थी कि कोई चमत्कार हो जाता।


“ तुझे पता है! हम अपने किसी भी शिकार को उसका नाम जानने से पहले कभी नहीं मारते… आह्… अगर वह अपना नाम बता सकता है तो! ” वह शेर अपनी बात को ठीक करते हो बोला, क्योंकि उसके कई ऐसे शिकार भी होते थे जो बोल नहीं सकते थे।


“ तो क्या नाम है तेरा? ” उस शेर ने पूछा।


“ अगर मारना ही है तो नाम पूछ कर क्या फायदा! ” अश्वत हिम्मत करते हुए बोला।


“ ठीक है! नाम बताएगा तो आसान मौत मिलेगी, वरना! ” वह शेर अपना चेहरा अश्वत के चेहरे के समीप ले जाकर गुर्राते हुए बोला।


“ अश्वत! अश्वत नाम है मेरा। ” अश्वत ने घबराते हुए अपना नाम बताया।


“ अश्वत! ” वह नाम सुनते ही उस शेर ने अश्वत के सीने से अपना पंजा ऊपर उठा लिया।


“ अश्वत! ” उस चूहे ने भी रहस्यमई स्वर में वही नाम पुनः दोहराया।


“ गुरु! अगर यह अश्वत है तो हम इसे मार नहीं सकते, क्योंकि अगर हमने इसे अभी मार दिया तो हम कभी भी उस कालकोठरी से स्वतंत्र नहीं हो पाएंगे। ” वह चूहा शेर को समझाते हुए बोला।


“ सही कहा, लेकिन अगर यह झूठ बोल रहा हो तो? ” शेर को अश्वत पर संदेह था।


“ आप इस घर के रहस्यों को अच्छे से जानते हैं और अगर यह झूठ बोल रहा है तो अगली बार जब भी यह हमारे हाथ लगेगा, तो वो इसका अंतिम दिन होगा! ” उस चूहे ने कहा।


वह शेर अश्वत से दो कदम पीछे हट गया और उसे वहाँ से भाग जाने के लिए कहा, “ इससे पहले मेरा विचार बदले, भागजा यहाँ से। ”


इतनी देर से अश्वत उस शेर से अपनी जान बचाकर भागना चाहता था, लेकिन जब वह शेर स्वयं उसे वहाँ से भागने के लिए कह रहा था, अश्वत ज़मीन पर पड़ा यही विचार कर रहा था कि एकाएक उसका नाम सुनने के बाद उन लोगों का विचार परिवर्तन कैसे हो गया था, उसका नाम सुनते ही उस शेर ने उसे जीवन दान क्यों दे दिया था और वे दोनों कौन थे और कहाँ से आए थे, पशु होते हुए भी वे मनुष्यों की तरह बात कैसे कर सकते थे और उस घर के ऐसे कौन से रहस्य थे जो वे दोनों जानते थे। 


“ लेकिन… ” अश्वत एक भी प्रश्न पूछ पाता, उससे पहले ही वह शेर पुनः चीख पड़ा, “ भागजा! ”


उसकी भयानक आवाज़ से छोटा सा अश्वत पुनः सिहर 

गया और उस कक्ष से भाग खड़ा हुआ और उस कक्ष से निकलकर अश्वत फलों से भरे हुए एक अद्भुत कक्ष में जा पहुँचा।














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