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naina story 3 chapter

 “ भागो! ” अश्वत ने नैना को वहाँ से भाग जाने का आदेश दिया, शेर ने नैना को देखा तो वह दरवाजे पर ही खड़ी थी कि उसने तुरंत बिना समय गवाएं उस पर छलांग मार दे, नैना अपनी जान बचाने के लिए तेजी से दरवाज़ा खोल कर फटाफट उस कमरे से निकल गई, लेकिन वह नैना को दबोच पाता उससे पहले ही नैना ने दरवाजा बंद कर दिया दरवाज़ा बंद करते ही वह डर कर दरवाजे से दूर हट कर खड़ी हो गई उसके माथे अगले पर पसीना ही पसीना था।


द्वार बंद करते ही नैना उससे दूर हट कर खड़ी हो गई, वह अभी भी घबराहट में दरवाज़े को यह सोचकर ताक रही थी कि कहीं वह बोलता हुआ शेर कूदकर उसके सामने न प्रकट हो जाए।


“ डरो मत! अब वो इस कमरे में नहीं आने वाला। ” उसे पीछे से स्वयं की आवाज़ सुनाई दी, उसने तुरंत पीछे मुड़कर देखा। उसने स्वयं को अपने सामने देखा, उसके सामने उसकी प्रतिरूपी नैना बैठी थी। उस प्रतिरूपी नैना कि उम्र नैना से अधिक थी और उसका चेहरा एवं बाल थोड़े गंदे दिख रहे थे, उसने ढीले-ढाले कपड़े पहने हुए थे, उसका आकर्षक शरीर अब अनाकर्षक हो चुका था, जिसकी उसे परवाह तक नहीं थी और उस मनहूस घर में जीवन भर के लिए कैद होने की चिंता तो उसके मुख पर दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रही थी।


नैना फलों से भरे हुए एक कक्ष में जा पहुँची थी, जहाँ कुछ देर बाद नैना की ही तरह उस बोलते हुए शेर से अपनी जान बचाते हुए, छोटा अश्वत भी उसी कक्ष में पहुँचने वाला था।


सेब की आकृति वाले एक टेबल पर अलग-अलग फलों की चार प्लेटें रखी हुई थीं और वह प्रतिरूपी नैना निश्चिंत होकर उन फलों को स्वाद लेकर खा रही थी।


“ लेकिन तुम… ” नैना अपने सामने स्वयं को बैठा देख हैरान रह गई, इसलिए वह अपने सामने बैठी प्रतिरूपी नैना से अपनी उलझन को दूर करने के लिए कुछ पूछने ही वाली थी, की प्रतिरूपी नैना ने उसकी बात बीच में ही काट दी।


“ इतना हैरान होने की जरूरत नहीं है, मैं तुम्हारा भविष्य हूँ और तुम मेरा अतीत। ” कुर्सी पर बैठी नैना ने कहा। 


प्रतिरूपी नैना द्वार के पास खड़ी विस्मित नैना के बारे में सब कुछ जानती थी, आश्चर्यचकित खड़ी नैना क्या सोच रही थी और वह किससे अपनी जान बचाते हुए वहाँ आ पहुँची थी, वह सब जानती थी, बल्कि यहाँ तक की प्रतिरूपी नैना यह भी जानती थी कि उस कक्ष से बाहर जाने के बाद नैना किस-किस से मिलने वाली थी और क्या-क्या करने वाली थी।


नैना ने इधर-उधर देखा तो उसे काउंटर पर अपने सिर पर केसरिया रंग का गमछा बांधे, कार्टूंस जैसा दिखने वाला एक गोलू-मोलू आदमी खड़ा दिखा, जिसके चेहरे पर एक बनावटी मुस्कान हमेशा बनी रहती थी और जब नैना ने उसे देखा तो उसने अपनी मुस्कुराहट और चोड़ी कर ली। उस आदमी के पीछे दुनिया भर के विभिन्न प्रकार के कई फल रखे हुए थे।


उस कक्ष को देखकर वह हैरान रह गई, क्योंकि उस विचित्र घर में एक ऐसा विशाल कक्ष था, जो फलों से भरा हुआ था, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। उसने अपना सिर ऊपर उठाकर देखा तो कई सारे आम, संतरे, केला, अंगूर और विभिन्न प्रकार के फलों के रोशनदान लटक रहे थे, जो उस कक्ष में एक अनोखी रंगीन रोशनी प्रसारित कर रहे थे।


उन रोशनदानों को देखकर नैना कि आँखें लालटेन की भाँती चमक रही थीं। उस कक्ष में पाँच टेबल थे और हर टेबल चार कुर्सियों से घिरा हुआ था, एक टेबल आम की आकृति का था, तो दूसरा केले के आकृति का, तीसरा सेव, चौथा तरबूज और पाँचवा अंगूर की आकृति का था, आम की आकृति का टेबल वह उस घर में पहले भी देख चुकी थी। कक्ष का एक हिस्सा फलों से तो दूसरा हिस्सा टेबल और कुर्सियों से घिरा हुआ था।


“ क्या तुम सच में मैं हूँ? ” नैना ने आश्चर्य से अपने प्रतिरूप को घूरते हुए, पास आकर पूछा।


उसे बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके सामने स्वयं उसका प्रतिरूप बैठा था। कोटला हाउस की विचित्रता को समझ पाना बहुत कठिन था, जहाँ असंभव जैसी चीजें भी संभव हो रही थीं, क्योंकि आज तक नैना ने स्वयं का प्रतिरूप केवल शीशे में ही देखा था, लेकिन आज ऐसा लग रहा था मानो शीशा तोड़कर उसका प्रतिरूप बाहर निकल आया हो।


“ मैं जानती हूँ तुम्हें इस घर में आए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है, क्योंकि मैं भी इस सब से गुज़र चुकी हूँ। ” प्रतिरूपी नैना, नैना की भावनाओं को समझते हुए बोली।


नैना ने कुर्सी पर बैठी नैना को आगे पीछे चारों तरफ से चक्कर काटते हुए उसका निरीक्षण किया, उसकी नज़र कुर्सी पर बैठी नैना के पेट पर पड़ी, जो किसी तरबूज की तरह फैला हुआ था।


वह गर्भवती थी, स्वयं के प्रतिरूप को गर्भवती देख, नैना के होश उड़ गए, उसने अचंभे से पूछा, “ तुम माँ बनने वाली हो? इस… इस अजीब से घर में तुम माँ कैसे बन सकती हो। तुम्हें यह सब करते हुए शर्म नहीं आई और कितना, गंदा है यह सब! ” उसके स्वर में चिड़चिड़ापन स्पष्ट दिखाई दे रहा था, मानो नैना अपनी उस वास्तविकता को स्वीकार ही नहीं करना चाहती थी।


गर्भवती नैना पर अज्ञानी नैना कि बातों का अधिक प्रभाव नहीं पड़ा, उसे तो काला नमक छिड़क कर कच्ची केरियाँ खाने में बहुत आनंद आ रहा था, जबकि उसे खट्टे आम बिल्कुल भी पसंद नहीं थे। 


“ तुम भी खा कर देखो, मज़ा आ जाएगा। ” वह खाते हुए बोली।


“ माँ बनना इस दुनिया का सबसे बड़ा सुख है और तुम यह बात अभी नहीं समझोगी, लेकिन तुम चाहो या ना चाहो, अब यही तुम्हारा भविष्य है। ”


“ ऐसा कभी नहीं होगा, बाहर मेरा मंगेतर मेरा इंतजार कर रहा है, इसलिए मैं यह पाप कभी नहीं करुँगी। ” नैना भड़कते हुए बोली और अपने सामने बैठी नैना को अजीब दृष्टि से घूरने लगी, जैसे उसके सामने कोई निर्लज्ज लड़की बैठी हो, जो विवाह से पहले ही गर्भवती हो चुकी थी और स्वयं के बारे में नैना मन ही मन यह सोच रही थी कि मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती, कभी नहीं।


“ ऐसे क्या देख रही हो! ” गर्भवती नैना, नैना द्वारा घूरने का अर्थ जानती थी। “ अगर दोबारा मेरे बच्चे को पाप कहा, तो मैं तेरा मुँह तोड़ दूँगी, भले ही तेरी वजह से मेरा चेहरा खराब हो जाए और मैंने जो भी किया उसमें कुछ गलत नहीं था और एक और बात, तुम जानती हो तुम क्या कर रही हो… शीशे में देख कर खुद को गाली दे रही हो, क्योंकि जो गलतियाँ तुम कल खुद करने वाली हो उसके बारे में तुम मुझे सुना रही हो। अगर मैं जिंदगी भर अपने मंगेतर के बारे में ही सोचती रहती, तो शायद इस घर में मैं बुढ़िया हो जाती लेकिन किसी का प्यार नसीब नहीं हो पाता, इसलिए मुझे खुशी है इस बात की कि मैंने जो भी किया सही किया। ”


“ पता नहीं इस घर में और क्या क्या देखने को मिलेगा! ” नैना स्वयं से बड़बड़ाते हुए बोली।


“ वैसे… यह बच्चा है किसका? ” नैना ने पूछा।


“ मेरी बात हमेशा याद रखना, इस घर में कभी भी - किसी से भी अपने भविष्य के बारे में मत पूछना, क्योंकि अपना भविष्य जान लेने से जिंदगी जीने का मज़ा खत्म हो जाता है और जल्द ही तुम भी यह बात समझ जाओगी। लेकिन तुम्हें इसके पिता का नाम जान लेने से ज़्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। ” नैना अपने गर्भ पर हाथ फेरते हुए बोली। 


“ अश्वत! ” गर्भवती नैना ने अपने बच्चे के पिता का नाम बताया।


“ अश्वत! लेकिन अभी कुछ देर पहले ही एक शेर ने मुझे और उसे, जान से मारने की कोशिश की और मुझे बचाने के लिए उसने मुझे वहाँ से भाग जाने को कहा। ”


“ पता है! लेकिन अश्वत ने इस घर में कई बार मौत को चकमा दिया है, उसे कुछ नहीं होगा। ” प्रतिरूपी नैना ने बहुत विश्वास से कहा।


“ मुझे लगा, इस बच्चे का बाप रचित होगा, क्योंकि वह हमेशा मेरे करीब आने की कोशिश करता था। ” नैना ने अपने भीतर चल रहे विचार को प्रकट किया।


“ रचित! ” प्रतिरूपी नैना रचित का नाम सुनते ही ठहाके मार कर हँसने लगी, बोली, “ तुम्हें… तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि इस बच्चे का बाप रचित होगा? ”


“ क्योंकि वह हमेशा मेरी मदद करता था और हमेशा मुझे ऐसे देखता था जैसे मुझसे बेहद प्यार करता हो और वैसे भी बिना मतलब के कोई लड़का किसी लड़की की मदद क्यों करेगा? ” नैना ने अपना कारण बताया।


“ कभी-कभी हम लड़कियाँ लड़कों को समझने में बहुत बड़ी गलती कर देती हैं, क्योंकि तुम्हें यह जानकर बहुत हैरानी होगी की रचित को लड़कियाँ नहीं, बल्कि लड़के पसंद हैं। ” प्रतिरूपी नैना ने कहा।


“ क्या! ” नैना उसकी बात सुनकर चौंक गई और उसने अपना चेहरा अजीब सा बना लिया, मानो जैसे उसे बड़ी अटपटी सी बात पता चली हो।


“ हाँ! वो एक गे है, वह तुम्हारी मदद इसलिए करता था, क्योंकि वह तुम्हारी परवाह करता था, तुम्हें अपना एक अच्छा दोस्त समझता था, लेकिन तुमने उसकी दोस्ती का गलत मतलब निकाला। ” प्रतिरूपी नैना ने समझाया।


नैना अजीब दृष्टि से कुछ देर तक गर्भवती नैना को देखती रही और बोली, “ तुम्हें देखकर यह तो पता चल गया कि मैं इस घर में इतनी जल्दी नहीं मरने वाली, लेकिन क्या मैं रचित से इस घर में दुबारा मिल पाऊँगी या नहीं? ” 


प्रतिरूपी नैना की बात सुनकर, नैना के दृष्टि में रचित का कद अब थोड़ा ऊपर उठ चुका था और उसके लिए चिंता भी बढ़ चुकी थी।


प्रतिरूपी नैना ने रचित से मिलने से पहले, नैना को एक विशेष सलाह देते हुए कहा, “ कुछ ही देर में तुम उससे भी मिल लोगी, लेकिन उससे थोड़ा सोच समझकर बात करना, क्योंकि आज तुम पहली बार उसका भड़का हुआ रूप देखोगी। ” 


“ भड़का हुआ है, मतलब! ” 


“ तुम खुद समझ जाओगी। ” गर्भवती नैना ने उत्तर दिया।


नैना कुछ देर के लिए शांत हो गई और प्लेट में रखा एक अमरुद उठाकर खाने लगी, अमरूद खाते ही उसके पेट की गुड़गुड़ाहट पुनः आरंभ हो गई।


प्रतिरूपी नैना पहले से ही उसकी स्थिति जानती थी, इसलिए वह मुस्कुराने लगी। उसे मुस्कुराते देख नैना कुछ बोलती, उससे पहले उसका ध्यान उस आदमी पर गया, जो काउंटर के पीछे खड़ा अपना पूरा ध्यान लगाकर उन दोनों की बातें सुन रहा था। जब नैना ने उसे देखा, उस आदमी ने पुनः मुस्कुरा दिया, नैना ने भी बनावटी मुस्कान के साथ उससे अपनी नज़रें हटा लीं और प्रतिरूपी नैना के अत्यंत समीप आकर कहा, “ जब तुम यह जानती ही हो कि मेरी प्रॉब्लम क्या है, तो यह भी बता दो कि मैं वॉशरूम कैसे और कहाँ जाऊँ… ”






नैना ने उस कक्ष के वॉशरूम की ओर संकेत किया, जो विशेष रूप से






नैना को उस आदमी के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई और पूछा, “ यह आदमी कौन है और इस घर में ये फल-फ्रूट… यह सब आता कहाँ से है? ” 


“ यह रामचंद्र हैं। ” प्रतिरूपी नैना ने उत्तर दिया।


“ क्या! ” नैना हैरान रह गई, उस घर में नैना को ऐसे ऐसे रहस्य पता चल रहे थे, जिन्हें जानने के बाद वह हर बार आश्चर्य से चीख पड़ती।


“ इसका मतलब यह आठ साल से इसी घर में कैद हैं! ” नैना आश्चर्य से बोली।


“ तुमने बिलकुल ठीक समझा और इन्हें इस घर में कैद करने वाला और कोई नहीं, बल्कि वही बुड्ढा है जिसने मुझे, मतलब तुम्हें… नहीं-नहीं, मतलब हम दोनों को… जिसने हम दोनों को इस घर में कैद किया है। ” प्रतिरूपी नैना ने अटक-अटका कर अपनी बात पूरी की।


अचानक किसी ने उस दरवाज़े पर दस्तक दी, जिस द्वार से नैना भीतर आई थी, न तो दरवाज़ा खुला और न ही कोई अंदर आया, लेकिन दरवाज़े की दराज़ से एक लिफाफा उस कमरे में आया, नैना के सामने ऐसा पहले भी हुआ था, इसलिए वह कुछ अंदाज़ा लगाते हुए, कुर्सी से उठकर दरवाज़े के पास गई।


उसने फर्श पर पड़ा एक लिफाफा देखा, जिसमें संभवतः पुनः उसके लिए कोई संदेश आया था। नैना ने फटाफट उसे उठाकर खोलकर देखा, जिसमें लिखा था - यह घर हम सभी का है और इस घर को साफ करने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है, इसलिए तुम्हें अच्छे से हॉल की सफाई करनी है, उम्मीद है तुम्हें यह कार्य पसंद आएगा।


“ अगर हमारी पसंद की इतनी ही चिंता है, तो हमें इस घर से बाहर क्यों नहीं जाने देता। ” उस संदेश को पढ़कर नैना स्वयं से बड़बड़ाते हुए बोली।


नैना पीछे मुड़ी और रामचंद्र के पास जाकर बोली, “ आप पक्का इस घर में आठ साल से कैद हैं! ”


रामचंद्र ने उत्तर में अपना सिर हिलाया।


“ आप तो जानते ही होंगे किस घर में लोगों को ऐसे ही चिठ्ठियाँ मिलती रहती हैं, लेकिन इस चिट्ठी में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि यह काम सिर्फ मुझे करना है क्योंकि इसमें मेरा नाम कहीं भी नहीं है, तो हो सकता है, यह काम आपको दिया गया हो। ” नैना अटकलबाज़ी करते हुए बोली।


“ मैं चाहूंँ भी तो इस कक्ष को छोड़कर कहीं नहीं जा सकता, इसलिए मेरे सिवा इस कक्ष में केवल तुम ही हो जिसके लिए यह चिट्ठी आई है। ” रामचंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।


“ अगर साथ नहीं देना तो कम से कम बहाना तो मत बनाइए। ” नैना बोली।


“ मैं बहाना नहीं बना रहा, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ लेकिन इस कमरे से बाहर नहीं जा सकता। पता नहीं उस आदमी ने ऐसा कौन सा जादू किया है कि सिर्फ मुझे छोड़कर, बाकी सभी लोग इस कमरे के अंदर भी आ सकते हैं और बाहर भी जा सकते हैं। ”


“ मतलब आपका कहना है कि आप आठ साल से इस घर के इसी एक कमरे में कैद हैं। ” नैना दया भाव से बोली।


रामचंद्र ने पुनः उत्तर में अपना सिर हिलाया।


“ कोई इतना बेरहम है और क्रूर कैसे हो सकता है, लोगों कि आजादी छीन कर उन्हें इस घर में कैद करने से क्या मिलता है उसे? ”





जब नैना ने दरवाज़ा खोला, वो उसी हॉल में खुला जिस हॉल से नैना का इस घर में सफर शुरू हुआ था। दरवाज़ा खुलते ही नैना को उस हॉल में एक व्यक्ति खड़ा दिखाई दिया, दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनते ही वह ऐसे पीछे मुड़ा, जैसे वह किसी खतरे को भांप कर सतर्क हो गया हो, लेकिन नैना को देखते ही उसकी सतर्कता कहीं छूमंतर हो गई।


“ वाओ! ” वह लड़का अश्वत था और नैना को देखकर उसके होश उड़ गए, क्योंकि वह काफी आकर्षक और जवान दिख रही थी, वह रोमांटिक स्वर में बोला, “ तुम तो काफी हॉट लग रही हो! तुम्हें जब भी ऐसे देखता हूँ तो मुझे कुछ कुछ होने लगता है। ”


नैना ने उस हॉल में प्रवेश किया। उसे अश्वत को पहचानने में कुछ समय लगा, लेकिन अंततः उसने अश्वत को पहचान लिया, “ अश्वत! ”

अश्वत को अटपटी दृष्टि से देखने के कारण, अश्वत बोला, “ तुम तो ऐसे रिएक्ट कर रही हो, जैसे मुझे पहली बार देख रही हो। ”


जिस अश्वत से नैना पहले मिली थी, उस अश्वत से इस अश्वत का व्यवहार बहुत भिन्न था। दाढ़ी मूँछ वाले उस अश्वत के चेहरे पर अजीब सी गंभीरता छाई हुई थी, लेकिन इस अश्वत का चेहरा बेपरवाह और मनमोजी दिख रहा था। अश्वत के सफाचट चेहरे और कम उम्र के कारण वह पहले वाले अश्वत से अधिक आकर्षक लग रहा था।


लेकिन नैना स्वयं को उससे दूर रखना चाहती थी, क्योंकि नैना के अनुसार - बाहर उसका मंगेतर उसका इंतजार कर रहा होगा और अश्वत के प्रेम में पड़कर, वह उसे धोखा नहीं देना चाहती थी और वह उस मनहूस घर में गर्भवती तो कतई नहीं होना चाहती थी। लेकिन अश्वत किसी लंपट की भाँति नैना को घूर रहा था, जैसे उसे खा ही जाएगा। 


“ क्या सोच रही हो? ” अश्वत ने उसके परेशान चेहरे को देखते हुए पूछा।


“ वो… उस पर्ची में लिखा था कि मुझे इस हॉल की सफाई करनी है। ” नैना ने उत्तर दिया।


“ मैं भी इसी काम के लिए यहाँ हूँ। ” अश्वत बोला।


“ अच्छा है! कोई तो है साथ देने के लिए। ” नैना मुस्कुराकर बोली।


नैना ने उस हॉल को ध्यान से देखा, तो पता चला अब जाकर वह उस हॉल में पहुँची थी, जिस हॉल को छोड़कर वह वॉशरूम गई थी। उस हाॅल में उसने पीली रोशनी बिखेरने वाले कई रोशनदान प्रज्वलित देखे, लेकिन जब वह उस घर में आई थी, तब उसने छत पर एक अति आकर्षक झूमर लटका देखा था, जो अब कहीं गायब हो चुका था।


“ वो झूमर कहाँ गया? ” नैना ने, झूमर के स्थान पर, छत पर वर्षों पुराने सूखे पेंट की छुटती हुई पपड़ियाँ देखते हुए पूछा।


अश्वत ने भी पीछे मुड़कर सिर ऊपर उठाकर देखा और फिर वापस घूमते हुए बोला, “ तुम यही बात कितनी बार दोहरा चुकी हो, लेकिन मैंने उस बुड्ढे की तरह आज तक उस झूमर को भी कभी नहीं देखा। ”


अश्वत की बात सुनकर, नैना ने यह सोचकर कि झूमर न सही, लेकिन शायद आम की आकृति वाला वो टेबल अभी भी अपने स्थान पर हो, जो ठीक उस झूमर के नीचे पड़ा हुआ था।


लेकिन नैना ने उस टेबल के स्थान पर यहाँ-वहाँ खून और माँस के टुकड़े पड़े देखे। ज़मीन पर एक आदमी की लाश पड़ी हुई थी, जिसके पेट की सारी अंतड़ियाँ बाहर निकली पड़ी थीं, जिसे देखकर नैना कि आँखें विस्मय से फैल गईं और वह काफी घबरा गई।


“ यह कौन है? कहीं तुम तो नहीं। ” नैना बोली। उसे लग रहा था की वह लाश अश्वत की थी, क्योंकि कुछ देर पहले ही, अश्वत पर एक खूंखार शेर ने हमला किया था और अजीब बात यह थी कि वह शेर बोल सकता था।


“ क्या बकवास कर रही हो, यह मैं कैसे हो सकता हूँ! यह दलजीत की लाश है। ” अश्वत ने तुरंत उत्तर दिया।


“ यह दलजीत कौन है? ” नैना ने पूछा।


“ अर्पिता का पति! ” अश्वत ने उत्तर दिया।


“ अब यह अर्पिता कौन है? ” नैना ने पूछा, क्योंकि जितने भी नाम वह सुन रही थी, उनमें से वह किसी को भी नहीं जानती थी।


“ आह… अब मैं समझा तुम इतने सवाल क्यों पूछ रही हो। ” अश्वत कुछ सोचते हुए बोला। “ तुम्हें इस घर में अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है, है न? मैं भूल कैसे गया! तुमने बताया तो था कि जब तुम पहली बार इस घर में आई थीं, तब तुमने वाइट टी शर्ट के ऊपर बैंगनी रंग का ब्लेजर पहना हुआ था और अभी… वही तो तुमने पहना हुआ है। ”


“ ऐसी सिचुएशन में तुम इतना Calm कैसे हो सकते हो? हमारे सामने एक लाश पड़ी हुई है और तुम अपनी फालतू बकवास किए जा रहे हो। ” नैना तनाव में उसे डाँटते हुए बोली।


“ अभी कुछ देर पहले ही एक शेर ने तुम पर हमला किया था और तुमने मुझे उस कमरे से भाग जाने के लिए कहा। ”


“ ऐसा क्या! ” अश्वत बोला।


“ हाँ। ” नैना ने ऊँची आवाज़ में हामी भरी।


 “ देखो तुम्हारी तसल्ली के लिए बता दूँ, कि इस आदमी के मरने पर मुझे भी बहुत अफसोस है, लेकिन मैं जब से इस घर में आया हूँ, इस लाश को मैं छठी बार देख रहा हूँ। मैं एक बच्चे से इतना बड़ा हो गया, लेकिन यह लाश आज भी यहीं पड़ी हुई है, इसलिए अब मुझे यह सब अजीब नहीं लगता। ” अश्वत गंभीरता से बोला, लेकिन अगले ही क्षण वह पुनः सामान्य हो गया।


“ और जिस शेर के बारे में तुम बात कर रही हो, मैं उसे बुलाता हूँ, शेरखान! ”


“ वो मोगली वाला शेरखान! ” नैना ने स्पष्ट करते हुए कहा।


“ इतनी बड़ी हो गईं, फिर भी कार्टून देखती हो। ” अश्वत ने मजाक में कहा, लेकिन नैना के चेहरे पर हंसी लाना थोड़ा मुश्किल था।


“ क्या यह उस शेर ने ही किया है? ” नैना ने घबराकर पूछा, उत्तर में अश्वत ने हाँ में अपना सिर हिलाया।


उस भयानक दृश्य को देखकर नैना विचार मगन होकर बोली, “ हे भगवान! इस आदमी की आत्मा को शांति देना। ”


अचानक एक और दरवाज़ा खुला और उसमें से रचित और रचित, अर्थात उस घर के दोनों रचित एक साथ उस हॉल में प्रकट हुए। उस लाश को फर्श पर पड़ा देख वे दोनों भी डर गए और फिर डरे हुए भाव से अश्वत को देखने लगे।


“ रचित! ” अपने प्यारे दोस्त रचित को सही सलामत देखकर नैना की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा, उसने रचित को देखते ही हॉल में पड़े खून से बचते-बचाते उसे सीधे अपने गले लगा लिया जाकर।


लेकिन रचित नैना को अपने से दूर धकेलते हुए, बड़े कठोर स्वर में बोला, “ पागल हो गई है क्या, मैं तेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता। ”


“ क्या बकवास कर रहा है तू! मैं कितनी देर से तेरे लिए परेशान हो रही थी, पता है कितने बुरे बुरे ख्याल आ रहे थे मन में, मैं यही सोच सोच कर परेशान हो रही थी कहीं तुझे कुछ हो ना गया हो और तू मुझे देखना भी नहीं चाहता। ” नैना ने बड़े आश्चर्य से बोली।


“ अच्छा और अगर इस आदमी की जगह मेरी लाश होती तब तू क्या करती? माफी मांगती, रोती, गड़गिड़ाती, क्या करती? क्योंकि तेरी वजह से आज मैं यहाँ खड़ा हूँ। ” रचित ने अपनी भड़ास निकाल कर, नैना की तरफ देखना तक बंद कर दिया।


“ तू न, इससे दूर रह, समझी! ” दूसरे रचित ने कहा जो अश्वत का भाई था, उसकी उम्र अश्वत से कम लग रही थी, जबकि उसकी उम्र अश्वत से पाँच वर्ष अधिक थी।


रचित का ऐसा व्यवहार नैना को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, वह अपने पुराने वाले रचित को देखना चाहती थी, “ रचित! प्लीज़, मेरी तरफ देख तो सही। मैं मानती हूँ यह सब मेरी गलती और मुझे इसका पछतावा भी है और… ”


नैना आगे कुछ कहती इससे पहले अश्वत बीच में बोल पड़ा, “ दोस्तों, रूठने मनाने के लिए बहुत टाइम है लेकिन अभी हमें यह सब साफ भी करना है… तो शुरू करें। ”


अश्वत की बात सुनकर नैना ने रचित के हाथ को देखा उसके हाथ में भी ठीक वैसा ही लिफाफा था, जैसा नैना पास था।


“ भईया! आप दोनों बाथरूम से सफाई का सारा सामान ले आइए। पानी, पोछा और डिटर्जेंट जो भी हो। ” अश्वत ने उन दोनों रचित को आदेश देते हुए कहा और विचित्र बात यह थी कि उन दोनों ने उसके आदेश का पालन तुरंत किया।


वे दोनों उस बाथरूम में रखे डंडे वाले दो-तीन पोंछे और पानी से भरी हुई दो बाल्टियाँ बाहर लेकर आए। उन सब ने मिलकर सफाई करना शुरू कर दिया।


आश्चर्य की बात यह थी कि जब अश्वत के भाई रचित ने उस हाॅल के उस दरवाज़े को पुनः खोला, जिस द्वार से वे दोनों आए थे, तो वह द्वार उस घर के एक बाथरूम में खुला, क्योंकि जब तक वे लोग अपना कार्य पूर्ण नहीं करते तब तक वह घर के जिस द्वार को भी खोलते वह द्वार उन्हें बाथरूम तक ही ले जाता।


“ क्या सच में हमें यह सब साफ करना होगा? ” रचित ने पूछा। अश्वत ने अपना सिर हिलाया।


सर्वप्रथम रचित और अश्वत ने उस लाश को उठाकर उस लकड़ी के उस बड़े से संदूक में डाल दिया।


फर्श पर जमे खून को रगड़ रगड़ कर साफ़ करते हुए नैना स्वयं में ही विचार मगन हो गई - ना जाने यह सब उस बुड्ढे के लिए संभव कैसे हुआ? क्या उसके पास कोई देवी शक्तियां या फिर वह कोई जादुई मंत्र जानता होगा या हो सकता है वह घर के रहस्य को जानता होगा। अगर ऐसा है तब भी यह बात समझ नहीं आती कि वह हमारे साथ ऐसा कर क्यों रहा है, क्या वो इस आदमी की जान बचा सकता था? शायद!… उसने हमें इस हाॅल में सफाई करने के मकसद से भेजा, मतलब वो जानता है की यहाँ एक आदमी की लाश पड़ी है। जब सरकार उसका आज तक कुछ नहीं कर पाई तो हम लोग क्या कर सकते हैं। सब मेरी गलती है रचित ने मुझे इस घर में आने से कितनी बार रोका लेकिन मैं ही पागल थी, जो उस बुड्ढे की बातों में आ गई। ”


“ क्या सोच रही हो? ” अश्वत से नैना का परेशान चेहरा देखा नहीं जाता था। वह जब भी उसे परेशान देखता था तुरंत उसकी समस्या पूछता था।


सफाई पूरी होने के बाद, रचित ने पूछा, “ अब इसका क्या करना है? ”

उसकी बात सुनकर अश्वद को हैरानी हुई और उसने पूछा, “ क्या मतलब, क्या करना है! तुम्हारी पर्ची में क्या लिखा था? ”


“ बस यही कि हमें हॉल की सफाई करनी है। ”


“ और तुम्हारी अश्वत ने तुरंत अपनी नजरें लेना की तरफ घुमाईं


“ पर क्यों इससे क्या फर्क पड़ता है? ” नैना ने पूछा


“तुम्हारी पर्ची में क्या लिखा था? ” रचित ने अश्वत के विस्मित चेहरे को देखकर पूछा, कोई बहुत बड़ी बात थी जो केवल अश्वद ही जानता था।


“ सफाई पूरी होने के बाद, हम में से दो लोगों को इस संदूक को इस घर से बाहर ले जाना है। ” अश्वद की बात सुनकर सब सन्न रह गए, यह एक मौका था इस घर से बाहर निकलने का, एक ऐसा मौका जो उन्हें संभवतः ही दुबारा मिलता।


किसी को भी विश्वास नहीं हुआ कि उन्हें उस शव को उन्हें उस मनहूस घर से बाहर ले जाने का कार्य मिला था, लेकिन यह कार्य कौन करने वाला था। लेकिन सोचने वाली बात यह थी यह संदेश केवल अश्वत की पर्ची में ही क्यों लिखा गया था।


रचित को अपने कानों और अश्वत की बात दोनों पर विश्वास नहीं हुआ, उसने पुष्टि करने के लिए पुनः पूछा, “ क्या कहा तुमने? ”


“ यही की सफाई पूरी होने के बाद, हम में से दो लोगों को इस संदूक को इस घर से बाहर ले जाना है और वह दो लोग कौन होंगे इसका निर्णय मेरे हाथ में होगा। ” अश्वद की बात सुनकर सबके चेहरे पर मुस्कान खिल उठे थे जो उसकी अगली ही बात सुनकर पुनः कहीं लुप्त हो गई, “ लेकिन इस संदूक को बाहर रखते ही उन दोनों को वापस घर में आना होगा। ”


“ इसका मतलब तू और नैना इस घर से बाहर जाएंगे। ” रचित, अश्वत का भाई, उदासी से चिड़चिड़ा कर बोला।


“ नहीं! यह संदूक तुम दोनों बाहर लेकर जाओगे। ” अश्वत की बात सुनकर दोनों रचित इस घर से आजाद होने की उम्मीद से एक दूसरे को देखने लगे, लेकिन संदेश अभी भी पूर्ण रूप से उनके भीतर से निकल नहीं पाया था।


“ क्या तुम सच कह रहे हो? ” रचित ने पूछा।


“ अगर एक और बार फिर से पूछा तो मैं अपना फैसला बदल दूँगा। ” अश्वत ने मुस्कुराते हुए मज़ाक में कहा।


अश्वत ने कुछ सोचते हुए उस मुख्य द्वार की ओर देखा। वर्षों से कितनी ही प्रयास करने के बाद भी वह द्वार अश्वत आज तक नहीं खोल पाया था, इसलिए उस द्वार के पास गया और उस पर्ची में लिखे आदेशानुसार उसे खोल कर देखा, फिर चमत्कार हुआ, द्वार बड़ी सरलता से खुल गया और उस घर से बाहर जाने का मार्ग और अवसर दोनों उसके सामने थे। दरवाजा खुलते ही एक ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे पर लगा, रात्रि का समय था और बाहर घना अंधेरा छाया हुआ था।


बाहर का दृश्य देखते ही अशोक के मन में सबसे पहला विचार उस घर से भाग जाने का ही आया, लेकिन ना जाने कौन सी अदृश्य बेड़ियों ने उसे रोका हुआ था।


अशोक ने उन दोनों रचित को संदूक को उठाकर बाहर ले जाने का इशारा किया। रचित ने अश्वत से आंखों ही आंखों में हामी भरी।


“ चलें! बाहर की दुनिया हमारा इंतजार कर रही है। ” रचित ने दूसरे रचित के कंधों पर हाथ रखते हुए बड़े प्रेम से कहा। वे दोनों दो प्रेमियों की तरह एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे जिन्हें देखकर नैना खून का रिश्ता तो समझ नहीं आया लेकिन उनका ऐसा व्यवहार देख उसे बड़ा अटपटा महसूस हो रहा था।


अश्वत उस दरवाजे से पीछे हट कर खड़ा हो गया


उन दोनों ने उस संदूक को आगे और पीछे से उठाकर उसे उस घर से बाहर ले गए। रचित ने उस घर की चौखट से बाहर कदम रखते ही यह विचार किया कि यह इस घर में उसका अंतिम कदम था। वह उस घर से भाग जाना चाहता था और यह सर्वोत्तम अवसर था। संदूक को भूमि पर रखते हैं उन दोनों ने एक दूसरे को देख कनखियों से कुछ इशारे किए और 


अश्वत ने उन्हें भागता देख उन्हें रोकने का प्रयास भी नहीं किया मैं विचार कर रहा था अगर उनके किस्मत में आजादी है तो यही सही।


शुद्ध विचार मग्न था कि तभी उसने देखा अवसर का लाभ उठाते हुए नैना भी खुले द्वार देख वहां से भाग निकली, अश्मित उसे रोकने के लिए उसके पीछे भागा, लेकिन नैना के बाहर निकलते ही द्वार स्वतः एक जोरदार आवाज के साथ तीव्रता से बंद हो गए और अश्वत द्वार से जा टकराया।


“ शिट! ” अश्वत ने गुस्से में उस दरवाज़े पर एक घूँसा मारा। 


अचानक वे दोनों रचित हॉल में ऐसे टपके जैसे पके हुए आम डाल से स्वतः टूटकर भूमि पर गिरते हैं। अश्वत ने उनकी आवाज सुनकर तुरंत पीछे मुड़कर देखा, लेकिन अभी नैना का आना बाकी था।


उस घर से निकलते ही नैना लगातार भक्ति चली गई

 उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा वह तब तक नहीं रुकी जब तक अचानक एक नुकीला कांटा उसके नंगे पैरों में भाव करता हुआ भीतर तक नहीं घुसा।






अच्छा वह बुड्ढा दिखता कैसा है।


सच कहूं तुम मुझे ऐसा लगता है कि जब तुम बूढ़े हो जाओगे तुम भी बिल्कुल वैसे ही देखोगे।
















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