उस वृद्ध व्यक्ति ने बड़ी ही सतर्कता से बाहर देखा और जब वह इस बात से निश्चिंत हो गया कि उन दोनों के अलावा बाहर अन्य कोई नहीं था, तब उसने दरवाजा बंद कर दिया।
“क्या हुआ? आप बाहर ऐसा क्या देख रहे थे!” रचित को उस व्यक्ति पर विश्वास नहीं था और उसके प्रति संदेह के बीज अभी भी उसके मन में पनप रहे थे।
“कुछ नहीं।” उस व्यक्ति ने व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ एक सपाट उत्तर दिया। “आइए, बैठकर बातें करते हैं।” उसने हॉल में पड़े एक विशाल टेबल कि तरफ इशारा करते हुए कहा।
नैना कि दृष्टि उस अद्भुत टेबल पर पड़ी जो आम के फल कि आकृति का था। किसी फल कि आकृति वाला टेबल उसने अपने जीवन में पहली बार देखा था, उस टेबल पर लगभग दस-पँद्रह लोग एक साथ भोजन कर सकते थे। उस टेबल के ठीक ऊपर एक विशाल झूमर जो नयनाभिराम सुंदरता से दमक रहा था, जिसपर एक पल के लिए नैना और रचित कि आँखें अटक सी गईं थीं।
टेबल काफी अच्छे से व्यवस्थित था, टेबल पूर्ण रुप से अलग-अलग सामग्री से भरा पड़ा था, बीयर कि कई बोतलें, काँच के खाली क्लास व चीनी मिट्टी कि प्लेटें, कई तरह के फल व पेय पदार्थ और विभिन्न प्रकार के पकवान ढके रखे थे। सारे बर्तन ऐसे चमक रहे थे जैसे अभी ही खरीदे गए हों। टेबल पर रखी सबसे आकर्षक चीज़ थी उसके बीचों बीच रखा काँच का जार, जिसमें भरे साफ पानी में कई तरह के रंग बिरंगे फूल साँस ले रहे थे।
उस अत्यंत विचित्र घर को भीतर से देखने के बाद, वे दोनों गहरी सोच में पड़ गए। ऐसा अजीब घर उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था, जहाँ दुनिया भर का सामान टेबल पर लाकार सजा दिया गया था लेकिन वहीं दूसरी ओर पूरा घर मानो उपेक्षित पड़ा था।
उस घर में अधिक सामान नहीं था। एक टेबल और उससे सटी बारह कुर्सियों व उसके ऊपर लटक रहे अति आकर्षक झूमर, जो हवा में झूलता प्रतीत हो रहा था, के अलावा पूरा हॉल खाली पड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे उस व्यक्ति ने खास तौर पर उन दोनों के लिए ही इतनी व्यवस्था और तैयारी की थी।
घर में पेंट कि महक कभी भी ताज़ा थी, दिवारें केसरिया रंग से चमक रही थीं, तभी नैना का ध्यान एक विचित्र बात पर गया कि दीवारों पर ना तो किसी प्रकार कि कोई खिड़की थी और ना ही कोई पेंटिंग। सब कुछ सूना सूना सा लग रहा था।
रचित और नैना, दोनों घर कि विचित्रता का कंखियों से विस्मय व्यक्त कर रहे थे कि तभी वह आदमी आगे बढ़कर टेबल के नीचे से एक कुर्सी बाहर खींचते हुए बोला, “ नैना! आप यहाँ आकर बैठिए।”
यह शालीनता केवल नैना के लिए थी, ऐसा लग रहा था जैसे रचित से उसकी कोई पुरानी दुश्मनी थी। यहाँ तक कि उसने रचित को बैठने के लिए भी नहीं कहा इसलिए रचित अपना कैमरा लिए चुपचाप खड़ा रहा। मगर वह आदमी खुद नैना के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया। वह टेबल के उस सिरे पर बैठा जिसके कारण उसका मुख नैना कि तरफ रह सके।
“आपने अपने घर का सारा सामान बेच दिया क्या!” नैना इधर-उधर देखते हुए विस्मयादिबोधक स्वर में बोली।
“बेचा तो नहीं है, बस कुछ दिनों के लिए छुपा दिया है।” सुमित ने उत्तर दिया।
“मतलब!” नैना ने उनकी बात ना समझते हुए पूछा।
“पेंट! घर में पेंट हुआ है, इसलिए हॉल खाली करना पड़ा। वैसे... कितने समय बाद मिल रहे हैं ना हम! तीन साल बीत गए।” उस व्यक्ति ने नैना को घूरते हुए बोला। जबकि नैना के अनुसार वह नैना से तीन दिन पहले ही मिला था।
“आप अच्छा मजाक करते हैं!” नैना हल्के से मुस्कुराते हुए बोली। वह आदमी भी नैना को देखकर मुस्कुराने लगा।
“हाँ! मैं काफी देर से एक बात सोच रही थी।” नैना अचानक झटके से बोली। “आपने बाहर दरवाज़े पर एक विचित्र सूचना लिखी हुई है, वो किसलिए?”
“आप तो जानती ही हैं कि...” उस आदमी ने बोलना शुरू ही किया था कि अचानक नैना बीच में टोकते हुए बोली, “एक मिनट! क्या हम आपकी बातचीत को कैमरे पर रिकॉर्ड कर सकते हैं?”
“जरुर! क्यों नहीं! जो आपका काम है आपको जरूर करना चाहिए।” उस व्यक्ति ने अपनी सहमति जताने में तनिक भी देर नहीं लगाई, उसे इस बात कि कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि वह जानता था कि वे लोग अब दुबारा कभी भी बाहर का सूरज देखने वाले नहीं थे और ना ही वह रिकॉर्डिंग कभी उस घर से बाहर जाने वाली थी।
रचित ने अपना कैमरा सेट करने के लिए उस टेबल पर थोड़ी जगह खाली करके, अपना कैमरा सही से स्थापित कर, रिकॉर्डिंग शुरू कर दी और पुनः किसी स्तंभ कि भाँति खड़ा हो गया।
“तुम खड़े क्यों हो? बैठ जाओ।” नैना के ऐसा कहते ही वह उस आदमी को घूरते हुए, नैना कि बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया।
“हाँ, तो आप क्या कह रहे थे? सबसे पहले आप हमारे दर्शकों के लिए अपना नाम बता दीजिए।” नैना ने हांलही में एक छोटे मोटे न्यूज़ चैनल के लिए पत्रकारिता शुरू की थी। इसलिए वह उस घर से जुड़ी एक भी बात को मिस नहीं करना चाहती थी।
“ मेरा नाम ‘सुमित सक्सेना’ है और मैं इस कोटला हाउस का मालिक हूँ।” उस आदमी ने केतली से तीन कपों में चाय डालने के बाद, एक कप नैना और एक कप रचित कि तरफ बढ़ाते हुए बोलना शुरू किया और इतना बोलते ही उसने अपना कप उठाकर कर्कश भरी आवाज़ के साथ होठों से चाय सुड़ोकना शुरु कर दिया।
उस आदमी को ऐसी विचित्र आवाज के साथ चाय पीते देख, नैना और रचित एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे। रचित ने तो अभी अपना कप होठों से लगा भी नहीं पाया था कि उसने देखा कि नैना ने चाय का एक घूँट पीते ही, वापस अपने कप में उगल दिया।
“क्या हुआ?” रचित ने अकबकाकर नैना से पूछा।
“यह चाय है या मिर्च का शरबत!” नैना भोंहें चढ़ाकर बोली। “इससे अच्छा तो आप मुझे सिधा मिर्च खिला देते।”
नैना कि बात सुनते ही रचित ने अपनी चाय पीकर देखी और फिर चाय पीने के बाद उसने भी वही किया जो नैना ने किया था। रचित उस आदमी पर भड़कता, उससे पहले ही वह अपनी गलती कि माफी माँगने लगा। उसकी उम्र के कारण रचित अपना गुस्सा शांत कर चुपचाप अपना जबड़ा दबाए बैठा गया, वह नैना का इंटरव्यू खराब नहीं करना चाहता था।
“माफ करना! लेकिन मेरी पत्नी ऐसे ही मसाला चाय बनाती थी और मैं बरसों से ऐसी ही चाय पीता आ रहा हूँ, इसलिए मुझे इसकी आदत है। आपको यह अच्छी नहीं लगेगी इस बात पर मैंने ध्यान नहीं दिया, मुझे माफ करना। आप... आप ये पीजिए, आपको अच्छा लगेगा।” उसने नैना को एक काँच के गिलास में संतरे का जूस डाल कर दिया।
“मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि आप ऐसी घटिया चाय इतने आराम से पी रहे हैं। कोई अपनी पत्नी से इतना प्यार कैसे कर सकता है!” नैना अपना गुस्सा शांत करके बोली।
“वैसे... आपकी पत्नी हैं कहाँ?”
“अब वो इस दुनिया में नहीं हैं। वो सालों पहले गुज़र गई।” उस व्यक्ति ने बड़े निराश मन से कहा।
“इसलिए आप आज भी उनकी याद में ऐसी चाय पीते हैं। काश! मेरा मंगेतर भी मुझे ऐसा ही प्यार करे।” नैना अपने भविष्य के बारे में सोचते हुए बोली।
“प्यार कि कोई सीमा नहीं होती, नैना! इसके लिए तो पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है। मेरे जैसा प्यार तुमसे कोई नहीं कर पाएगा लेकिन मैंने जिसको भी प्यार किया, मैंने उसको खो दिया।” उस व्यक्ति कि बातें सुनकर नैना असमंजस के साथ मुस्कुरायी, उसे यही नहीं समझ में आ रहा था कि सुमित केवल अपने प्यार का उदाहरण दे रहे थे या फिर परोक्ष रूप से उसे प्रपोज कर रहे थे।
“मुझे लगता है कि हम अपनी दिशा से भटक चुके हैं और आपने अभी भी मेरे पहले प्रश्न का उत्तर नहीं दिया।” नैना थोड़ा गंभीरता से बोली।
“मेरे इस घर को कई बार, लोग अपने गलत मनसूबों के लिए प्रयोग करने का प्रयास करते हैं। कई बार पुलिस से छुपने और आश्रय की तलाश में चोर, आतंकवादी और कई खतरनाक लोग इस घर में घुस आते हैं और आप तो जानती ही हैं, मेरे इस घर के बारे में लोग क्या-क्या बातें करते हैं, लोग इस घर को भूतिया समझते हैं इसलिए लोगों को ओर डराने के लिए मैंने बाहर उस विशेष सूचना को लिखा है लेकिन फिर भी कुछ निडर और उद्दंड लोग नहीं मानते। एक बार तो दो आतंकवादी घर में घुस आए थे, जिन्हें मैंने पुलिस के हवाले कर दिया था।”
“लेकिन ऐसी कोई खबर हमने तो आज तक नहीं सुनी।” नैना ने अविश्वास के साथ पूछा।
“ये बात बहुत पुरानी है।” व्यक्ति ने व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ उत्तर दिया।
“इस घर का नाम ‘कोटला हाउस’ कैसे पड़ा?” नैना ने अपना अगला प्रश्न पूछा।
“मैं इस प्रश्न का उत्तर तभी दूँगा, जब आप अपना ग्लास खाली करेंगी।” सुमित ने मज़ाक में कहते हुए, नैना पर संतरे का जूस पीने के लिए दबाव डाला। नैना को कुछ संदेह हुआ, लेकिन वो संदेह उसकी जिज्ञासाओं से बड़ा नहीं था और उस आदमी कि एक अच्छी मेज़बानी समझकर, नैना ने फटाफट पूरा ग्लास खाली कर दिया।
“अब बताइए! इस घर का नाम ‘कोटला हाउस’ कैसे पड़ा?” नैना ने दृढ़ता से पूछा।
“अठाहरवीं शताब्दी में जब आदित्य नारायण कोटला ने इस घर का निर्माण करवाया था, तब उन्होंने अपने नाम पर ही इस घर का नाम कोटला हाउस रखा था।” उस आदमी ने उत्तर दिया।
“उन्होंने इस घर का निर्माण शहर से इतनी दूर इस जंगल में क्यों करवाया था।” नैना ने फिर से अपना एक प्रश्न पूछा।
“अब यह तो उनका मन था, हम क्या जाने और आप लोग तो कुछ खा-पी ही नहीं रहे हैं। बातें तो चलती रहेंगी, यह लीजिए आप एक ग्लास नारियल का जूस पीजिए, बहुत अच्छा बना है।” सुमित ग्लास जबरदस्ती नैना के मुँह तक ले जाकर बोला।
“लाइए यह मैं पी लेता हूँ।” रचित उस आदमी के हाथ से ग्लास छीनते हुए बोला। रचित कि उस हरकत से उसकी आँखें चढ़ गईं और माथे पर बल पर गए, क्रोध के भाव स्पष्ट रुप से प्रकट होने ही वाले थे कि अचानक नैना का प्रश्न सुनकर वह फिर से प्रसन्न हो उठा।
“अह्... वॉशरूम किस तरफ है?” नैना ने संकोच से पूछा। सुमित कि खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा, मन ही मन वह बहुत प्रसन्न हुआ। जो वह चाहता था, वही हो रहा था। भले ही रचित ने उसके लक्ष्य में बाधा डालने का प्रयास किया था, लेकिन वह आदमी, नैना और रचित, दोनों को बिना किसी बल के अलग करना चाहता था। यही उनकी नियति थी और नैना के जीवन कि नई शुरुआत थी। सुमित चाहता था कि नैना खुद इस घर में रह कर, यहाँ के रहस्यों को प्रत्यक्ष रुप से जाने और समझे।
“दाएँ या बाएँ किसी भी तरफ चले जाओ।” सुमित ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
नैना ने दोनों तरफ देखा, दोनों दरवाजों का रंग और उस पर बनी विचित्र आकृतियाँ एक समान थीं। उन आकृतियों के बीचों बीच में एक प्यारे से हाथी का मुख बड़े ही अद्भुत तरीके से उकेरा गया था।
नैना ने अधिक न सोचते हुए, दाएँ तरफ के वाशरूम कि ओर प्रस्थान किया।
“नैना!” सुमित ने अचानक नैना को पीछे से आवाज दी। “फिर मिलेंगे।” उसने नैना कि आँखों में आँखें डालकर कहा, लेकिन नैना उसकी बात पर ध्यान न देते हुए, फटाफट वाॅशरूम चली गई।
“तू उससे प्यार करता है?” सुमित ने रचित से पूछा। अब केवल वे दोनों ही उस हॉल में अकेले बैठे थे।
“आप से मतलब।” रचित ने अकड़ कर जवाब दिया।
पहले तो वह मुस्कुराया और फिर बोलना शुरु किया, “यह लड़की बस तेरा फायदा उठा रही है, सच कह रहा हूँ। आज तक इसने, किया क्या है तेरे लिए? लेकिन तू... तू इसके बस एक इशारे पर कुत्ते की तरह अपनी दुम हिलाने लगता है, पर यह तेरे लिए क्या करती है? काम निकलने के बाद उसी दुम को अपने पैर से कुचल देती है। समझा!”
उसकी बातें सुनने में बड़ी कड़वी और क्रोधित कर देने वाली थीं, लेकिन रचित विचार कर रहा था कि वह आदमी उससे ऐसी बातें कर क्यों रहा था? और उसे नैना के खिलाफ क्यों भड़का रहा था?
“बस! अब एक शब्द भी नैना के खिलाफ बोला तो मैं तुम्हारी उम्र का लिहाज भूल जाऊँगा।” रचित ने आवेश में आकर कहा।
“देखो, मैं बस तुम्हारी भलाई चाहता हूँ और अभी मुझे कुछ काम है। मैं चलता हूँ, फिर मिलेंगे!” सुमित कि बात सुनकर रचित गहरे असमंजस में पड़ गया। आखिर अचानक उसे कौन सा काम याद आ गया था। सुमित रचित के मन में नैना के किलाफ बीज बो चुका था।
रचित कुछ बोलने को हुआ लेकिन शब्द उसके मुँह में ही रह गए। उसने विचार किया कि जब वह व्यक्ति वॉशरूम से बाहर आएगा, तब वह उसे रोक लेगा और तब तक नैना भी बाहर आ जाएगी। वे लोग अपना इंटरव्यू पूरा करके वहाँ से फटाफट निकल जाएंगे।
सुमित के वॉशरूम जाते ही रचित ने उसके कप कि चाय पीकर देखी। “ये तो मीठी है!” वह स्वयं से विस्मयकारी स्वर में बोला।
रचित बहुत हैरान था, ऐसी विचित्र घटना उसके साथ पहली बार घटी थी। उसने अपनी आँखों के सामने सुमित को एक ही केतली से तीनों कप में चाय डालते हुए देखा था लेकिन केवल एक कप कि चाय मीठी और बाकी कपों कि चाय जुबान जला देने वाली कैसे हो सकती थी।
“यह असंभव है।” उसने मन में विचार किया। लगभग आधा घण्टा बीत गया लेकिन न तो नैना बाहर आई और न ही सुमित बाहर आया, उस घर में जो एक बार किसी अन्य कक्ष में जाता, वह उसी कक्ष से कभी भी बाहर नहीं आता था। रचित ने नैना के वॉशरूम के बाहर उसे आवाज़ देना शुरु कर दिया, लेकिन उसे अंदर से नैना का एक बार भी कोई उत्तर नहीं मिला।
अंदर नैना से कानों में भी जैसे रोई घुसी पड़ी थे उसे भी रचित की हल्की सी भी आवाज सुना नहीं
पहले तो चाय के नाम पर मिर्च पिला दी और फिर जूस पर जूस घूर-घूर तो ऐसे रहा था जैसे खा ही जाएगा नैना आईने के सामने अपने हाथ धोते हुए खुद से बुद्ध बुद्ध आ रहे थे लड़कियां जब भी आना देखती है उन्हें अपने चेहरे पर कुछ न कुछ कमी अवश्य नजर आ जाती है पर नैना भी अपनी होठों पर लिप बाम लगाना की इच्छा हुई तब उसे याद आया कि वह अपना पर गाड़ी में ही भूल आई थी मेरा पर्स तो गाड़ी में ही रह गया वह स्वयं से बोली मेरा मोबाइल उसने झटके से अपनी जेब पर हाथ मारा खुशखबरी यह थी कम से कम उसका मोबाइल उसके पास था क्योंकि वह अपना मोबाइल भी कभी-कभी अपने पर्स में ही रख देती थी जब उसने अपना मोबाइल चालू करके देखा उसमें नेटवर्क कहीं छूमंतर हो चुके थे।
कुछ देर बाद वह अपने बाल-वाल ठीक करके बाहर निकली। उसने देखा कि वह किसी कमरे में खड़ी थी। उस कमरे में चार दरवाजे थे एक दरवाजे से वह स्वयं अंदर आए थी। टेबल कहें लुप्त हो चुकी थी सुमित और रचित दोनों उसकी आंखों से ओझल हो चुके थे।
वह हैरान थी कि वह उस कमरे में
कैसे पहुंची? उसने वापस बस रूम का दरवाजा खोलकर देखा,
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