फल वाले की जगह रामचंद्र का इस्तेमाल करें
उस खूंखार शेर से अपनी जान बचाने के लिए छोटे से अश्वत ने तीव्रता से दरवाज़ा बंद कर दिया और उससे पीठ लगा कर खड़ा हो गया ताकि कोई भी उस दरवाज़े को खोल न पाए, लेकिन एक शेर की शक्ति के आगे, एक बालक की शक्ति व्यर्थ थी। उसने कल्पना भी नहीं की थी कि उसका आज का दिन इतना बुरा होने वाला था।
उसे तो अब यह सोचकर भी डर लगने लगा था कि कल तक वह जीवित बचेगा भी या नहीं क्योंकि उस घर में लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे थे, सबसे पहले एक आदमी ने एक पुलिस वाले पर हमला कर उसे घायल कर दिया था और उसके बाद स्वयं अश्वत के प्रतिरूप ने ही अश्वत पर हमला किया और मनुष्य तो दूर उस घर में बोलते हुए जानवर भी अश्वत के दुश्मन थे।
उसने डर के कारण तीव्रता से दरवाज़ा बंद किया, दरवाज़ा धड़ाम से बंद हुआ, उस भयानक ध्वनि के कारण, टेबल पर सिर रखकर सो रहे एक आदमी की अचानक नींद खुल गई, अपनी आदत से मजबूर वह आदमी तुरंत खड़े होकर बिना रुके एक सुर में बोलता चला गया, “ आम, संतरा, केला, तरबूज क्या चाहिए लेता हूँ बूझ। अँगूर, मोसम्मी, खरबूज, खजूर क्या चाहिए बोलिए हुज़ूर? ”
“ ओह्… अश्वत! बहुत छोटे लग रहे हो, अच्छा! अच्छा! लगता है अभी-अभी स्कूल से भागकर आए हो! ” उस आदमी ने अश्वत के कपड़े देखकर कर कहा।
“ अभी-अभी तो मैं एक बोलते हुए शेर से अपनी जान बचा कर आया हूँ! ” अश्वत ने फटाक से उत्तर दिया और अचानक विस्मित होकर पूछा, “ लेकिन आप मुझे कैसे जानते हैं और आपको कैसे पता मैं स्कूल से भाग कर आया हूँ? ”
अश्वत उस आदमी कि तरफ देखकर हैरान रह गया, विस्मय से उसकी आँखें फैल गईं क्योंकि वह आदमी इस दुनिया के विभिन्न फलों से घिरा पड़ा था। अश्वत ने अपनी दृष्टि उस पूरे कक्ष में घुमाई, उसने देखा कि आधा कक्ष भिन्न-भिन्न प्रकार के पलों से भरा हुआ था, जिसमें से संभवतः कुछ फल अश्वत ने अपने पूरे जीवन में देखे तक नहीं थे और आधा कक्ष विभिन्न फलों के आकृतियों वाले टेबलों और कुर्सीयों से घिरा हुआ था।
उसने अपना सिर ऊपर उठाकर देखा तो कई सारे आम, संतरे, केला, अंगूर और विभिन्न प्रकार के फलों के रोशनदान लटक रहे थे, जो उस कक्ष में एक अनोखी रंगीन रोशनी प्रसारित कर रहे थे। उस अद्भुत कक्ष को देखकर अश्वत मन ही मन प्रसन्न हो उठा, जैसे यह उसका कोई सबसे सुखद स्वप्न था।
“ ऐसे दरवाज़े से चिपक के का खड़े हो? आओ, यहाँ आकर बैठो। ” उस फलवाले ने मुस्कुराकर अश्वत को अपने पास बुलाया। उस आदमी ने अपने सिर पर केसरिया रंग का गमछा बांधा हुआ था और सफेद रंग की बनयान पहनी हुई थी, देखने से कोई देहाती लग रहा था।
“ अगर दरवाज़ा छोड़ दिया तो वो शेर अंदर घुस आएगा और हमें मार देगा। ” अश्वत घबराकर बोला।
“ डरो मत कोई नहीं आएगा, आओ यहाँ आकर बैठो। ” फलवाले ने ज़ोर देकर कहा।
“ अगर उस शेर ने इनके मुँह पर दहाड़ा होता तब समझ में आता। ” अश्वत ने मन में विचार किया।
“ नहीं! नहीं! मैं नहीं आऊँगा, इस गेट पर कोई कुण्डी भी नहीं है, अगर इसे ऐसे ही छोड़ दिया, तो वो शेर यहाँ भी घुस आएगा और बोलेगा - मनुष्यों को चीखते देख हमें सुकून मिलता है। ” अश्वत ने उस शेर कि नकल करते हुए कहा।
“ अगर उसे आना होता तो कब का आ चुका होता, तुम्हें लगता है तुम इतने बड़े शेर को रोक लोगे और वैसे भी… तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वह शेर तुम्हें कभी नहीं मारने वाला। ” फलवाले ने अश्वत को समझाया, उसकी बात सुनकर अश्वत पुनः सोच में पड़ गया।
“ आपको कैसे पता कि वो शेर मुझे कभी नहीं मारेगा। ”
“ अब यहाँ आकर बैठोगे, तो बताऊंगा न! ” उस फल वाले ने फिर से उसे अपने पास बुलाकर बैठने को कहा। फल वाला एक बड़े से काउंटर के पीछे खड़ा था और उस काउंटर के आगे बैठने के लिए बिना कमर वाली चार कुर्सियाँ रखी हुई थीं। अश्वत ने उस द्वार को छोड़ने से पहले उस दरवाज़े से कान लगाकर ध्यान से उसके पीछे की आवाज़ सुनने की कोशिश की लेकिन उसे रत्ती भर भी कुछ नहीं सुनाई दिया। कहीं ना कहीं वह भी उस घर की माया समझने लगा था, उसने विचार किया की यदि उस शेर की इस कमरे में आने की संभावना होती, तो सबसे पहले वह फल वाला ही अपनी दुम दबाकर भागता।
अश्वत जैसे तैसे उस काउंटर के आगे रखी कुर्सी पर बैठ तो गया जाकर, लेकिन उसकी दृष्टि उस दरवाज़े पर ही टिकी रही, वह पूर्ण रुप से तैयार था - यदि उस कक्ष में उस शेर ने प्रवेश भी किया तो वह ऐसे भागेगा की पलक झपकते ही वहाँ से गायब हो जाएगा।
“ पहले यह बताओ क्या लोगे? ” अचानक फल वाले के प्रश्न से अश्वत की तंद्रा टूटी।
“ पर मेरे पास पैसे नहीं है। ” अश्वत ने उत्तर दिया।
“ तो पैसे माँग कौन रहा है। ” फल वाले ने मुस्कुराकर कहा।
“ मतलब यह सब फ्री है! ” अश्वत ने उत्सुकता से पूछा।
“ बिल्कुल! जितना चाहो, उतना खाओ। ”
“ तो मुझे अँगूर खाने हैं। ” अश्वत ने अपनी इच्छा बताई। उसे हरा रंग बहुत प्रिय था इसलिए हरे-हरे अँगूर देखकर उसे अँगूर खाने की इच्छा हुई।
फल वाले ने तुरंत अँगूर के बड़े-बड़े तीन गुच्छे एक प्लेट में रखकर अश्वत को दे दिए। अश्वत भूखों की भाँति उन अँगूरों पर टूट पड़ा। अश्वत तीव्रता से एक के बाद एक अँगूर अपने मुँह में रखता चला गया, इधर वह फल वाला अश्वत के मुँह पर लगातार अपनी दृष्टि गड़ाए अँगूरों की गिनती करता रहा, उसे गिनती करने में बहुत कठिनाई हो रही थी क्योंकि अश्वत की अँगूर खाने की गति बहुत अधिक थी।
अश्वत की नज़र जब अँगूरों से हटकर, उस फल वाले के मुँह पर पड़ी तो उसने देखा कि वह फल वाला बिना आवाज़ किए अपना मुँह चला रहा था जैसे कुछ गिन रहा हो।
“ आप गिन क्या रहे हैं? ” अश्वत ने बड़ी जिज्ञासा से पूछा।
“ कुछ नहीं, बस तुम अँगूर खाओ, लेकिन आराम आराम से। ” फलवाला अपनी गिनती भूलना नहीं चाहता था, इसलिए वह अश्वत को उत्तर देकर तुरंत चुप हो गया।
“ अच्छा अब बताइए की आपको कैसे पता कि वो शेर मुझे कभी नहीं मारेगा और आप मेरा नाम कैसे जानते हैं, क्या नैना ने आपको मेरा नाम बताया? ” अश्वत ने अँगूर खाते हुए पूछा।
लेकिन फल वाले ने उसके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं दिया। वह बिना अपने मुँह से कोई स्वर निकले होंठ चलाते हुए अंगूरों की गलती करता रहा।
इधर अश्वत अपने मन में अटकलें लगाता हुआ यह विचार कर रहा था की कहीं नैना की तरह यह अंकल भी मेरे बचपन के कोई दोस्त तो नहीं? नहीं, नहीं, शायद यह नैना के दोस्त ‘ रचित! ’ होंगे, जिनके बारे में नैना बता रही थी, पर… उसका ऐसा अंकल जैसा दोस्त नहीं हो सकता। वह इस बारे में सोच ही रहा था की उसके अंतर्मन से एक आवाज़ आई, “ जब इस घर में एक बोलता हुआ शेर हो सकता है, एक बोलता हुआ चूहा हो सकता है, तो इस घर में कुछ भी हो सकता है पागल! ”
फल वाले के द्वारा अँगूरों की गिनती करने का रहस्य जानने के लिए अश्वत ने बहाना बनाना शुरु कर दिया।
“ अब अँगूर खाने का मेरा मन नहीं कर रहा, मुझे तरबूज खाना है। ” अश्वत ने अँगूर खाना बंद कर दिया।
“ तरबूज! ” फल वाले के मुँह से एक अटपटा सा स्वर निकला, “ तरबूज कौन खाता है, केला, सेब, संतरा लोग यह सब खाते हैं। ” वह अश्वत को तरबूज देने के मूड में भी नहीं था इसलिए उसने अश्वत को बहाना बनाते हुए तरबूज देने से मना कर दिया।
“ तरबूज बहुत बड़ा है और तुम पूरा खा भी नहीं पाओगे इसलिए बाकी का तरबूज खराब हो जाएगा। ” अश्वत को मना करते हुए उसकी दृष्टि फलों के राजा आम पर पड़ी, जो अश्वत को बहुत प्रिय था और यह बात स्वयं वह फल वाला भी जानता था इसलिए उसने आम को देखते ही बड़े ऊँचे स्वर में ज़ोर देते हुए, अश्वत को ललचाने के लिए आम का गुणगान शुरू कर दिया।
“ आम! आहा… बहुत स्वादिष्ट फल होता है। ” उसने एक रसीला आम उठाया और सूंघते हुए बोला, “ आह्… क्या खुशबू है यार! ”
उस फल वाले के चेहरे के भाव देख अश्वत के मुँह में पानी आ रहा था, उस रसीले आम को देख-देख कर, अश्वत की उसे खाने की लालसा बढ़ती जा रही थी, अब अश्वत का धैर्य टूटता जा रहा था।
“ ठीक है, अगर आम ही देना है, तो आम ही दे दो। ” अश्वत ने हाथ बढ़ाकर उस आम को माँगा, लेकिन फल वाले को देखने से ऐसा लग रहा था मानो वह अश्वत को इतनी सरलता से आम देने को तैयार नहीं था।
“ तुम कितने आम एक साथ खा सकते हो? तुम जितने आम माँगोगे, मैं तुम्हें उतने ही आम दूँगा लेकिन शर्त यह है कि तुम्हें वह सारे आम खाने होंगे जितने तुम माँगोगे। ” अश्वत के लिए उस फल वाले का षड्यंत्र समझना सरल नहीं था क्योंकि उसने अश्वत के सामने एक विचित्र शर्त रख दी थी, जो अश्वत को अधिक से अधिक आम माँगने के लिए ललचा रही थी और वह फल वाला भी यही चाहता था की अश्वत अधिक से अधिक फल माँगे।
“ दस! ” अश्वत के मुँह खोलते ही उस फल वाले ने अश्वत को उसकी माँग अनुसार दस आम निकाल कर दे दिए, न एक कम - न एक ज्यादा।
उस फल वाले की शर्त के पीछे कुछ भी षड्यंत्र हो अश्वत को उससे कोई मतलब नहीं था, क्योंकि उसका कार्य केवल आम खाना था, गुठलियाँ गिनना नहीं।
अश्वत ने जैसे ही उस रसीले आम का स्वाद चखा, वह पागल हो गया, वह लगातार खाता चला गया, आम खाते-खाते उसने पुनः पूछा, “ आपको मेरा नाम कैसे पता? ”
“ इस घर में तुम्हें कौन नहीं जानता, तुम्हीं तो हो इस घर के असली हीरो। ” फलवाला इतना बोलते ही ज़ोर ज़ोर से हसने लगा, जैसे ज़बरदस्ती हसने का प्रयास कर रहा हो।
“ मतलब! ”
“ अभी नए हो, शायद इसी लिए थोड़े कच्चे हो, लेकिन धीरे-धीरे सब समझ जाओगे। ये सब उसकी माया है जो हम सबको यहाँ लाया है। केवल वही आदमी हमें इस घर से बाहर निकाल सकता है, क्योंकि उसके पास एक ऐसी चाबी है जो हमें इस घर से बाहर ले जा सकती है। ” फल वाले की बातें भी, नैना की बातों की भाँती, अश्वत को अजीब लग रही थीं।
“ लेकिन हम यहाँ खुद आए थे और हमें तो वो ऑटो वाला यहाँ आया था। ” अश्वत ने मासूमियत से कहा, लेकिन रामचंद्र ठहाके मारकर अश्वत की मासूमियत पर हँसने लगा।
“ आप हँस क्यों रहे हैं? ” अश्वत को उस फल वाले की बेतुकी हंसी समझ में नहीं आई।
“ क्योंकि मेरा पहला दिन भी इतनी ही हैरानी से कटा था जैसे तुम्हारा कट रहा है।
अश्वत ने धीरे-धीरे सात आम कब खा लिए, उसे पता ही नहीं चला। लेकिन आठवाँ आम खाना उसके लिए बहुत भारी पड़ गया, उसे पूरा खाते ही उसने एक भयानक डकार छोड़ी, आम खाते खाते उसका पेट भर चुका था। अब उसकी क्षमता और इच्छा दोनों समाप्त हो चुकी थीं, लेकिन दो आम अभी भी बचे हुए थे।
“ मैं अब ये नहीं खा सकता। ” अश्वत द्वारा बचे हुए दो आम खाने से मना करते ही, वह फल वाला अश्वत पर भड़क उठा और अपने काउंटर की एक दराज से एक बड़ा सा चाकू निकाल कर अश्वत को डराने लगा, “ कैसे नहीं खा सकते! तुमने ही कहा था न तुम्हें दस आम खाने हैं। ”
डर के मारे अश्वत ने जैसे-तैसे बचे हुए वे दोनों आम भी खा लिए। अश्वत को समझ नहीं आ रहा था कि वह आदमी अच्छा था या बुरा क्योंकि वह पहला ऐसा व्यक्ति था, जो फल खिला-खिला कर सता रहा था। अश्वत के आम खत्म हो
त ही, उस आदमी ने चाकू वापस रख दिया।
“ अब बताओ और क्या खाओगे? ” फल वाले ने बड़े प्रेम से पुनः पूछा।
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