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Chapter 7 ashwat and naina ki story 1

 वह दाढ़ी वाला आदमी जिस कक्ष में नैना को खींचकर लाया था, उस कक्ष में तीन हरे रंग के सोफे पड़े हुए थे, जिसमें से दो पर तो केवल एक व्यक्ति ही बैठ सकता था और तीसरा सोफा इतना बड़ा था कि उस पर तीन व्यक्ति आराम से बैठ सकते थे, लेकिन वह बड़ा वाला सोफा लुढ़का पड़ा था, मानो किसी ने जानबूझकर उसे लुढ़का दिया हो। उन हरे रंग के सोफे और उन हरी दीवारों को देख नैना विस्मित हो रही थी, मानो जैसे उस घर के स्वामी को हरा रंग बहुत प्रिय था। उस कक्ष की अव्यवस्था ने भी उसे परेशान कर दिया था।


“ तुम हो कौन और वो लोग कौन थे और मुझे मारने कि कोशिश क्यों कर रहे थे? ” नैना ने अविश्वास से उस अजनबी आदमी का हाथ झटकते हुए, उससे दूर हटकर पूछा।


“ उसने उस पुलिस को भी मारने कि कोशिश की और उसके बाद तो हाथ धोकर मेरी जान के पीछे पड़ गया, मैंने उसका क्या बिगाड़ा, जो वह मुझे मारना चाहता था? और अगर वो लोग अंदर आ गए तो फिर से मुझे मारने की कोशिश करेंगे, अब मैं क्या करूँ? ” घबराहट में नैना एक सांस में बोलती ही चली गई, उस घर के लोगों से जुड़े अनेकों रहस्य नैना को परेशान कर रहे थे। उसका हृदय अभी भी तीव्रता से धड़क रहा था और डर के मारे उसके पसीने छूट रहे थे। 


“ नैना! ” वह आदमी नैना को शांत करने के लिए उसका नाम लेकर, ऊँची आवाज़ में चिल्लाया। 


उस आदमी के चिल्लाते ही नैना तुरंत चुप हो गई, नैना कि दृष्टि उस आदमी को घूरते हुए यह गणना कर रही थीं कि उसकी जान बचाने वाला वह आदमी अच्छा था या बुरा, तभी अचानक उसका ध्यान इस आश्चर्य पर गया कि वह अजनबी आदमी उसका नाम कैसे जानता था, उसने आश्चर्य से पुनः एक प्रश्न पूछा, “ तुम मेरा नाम कैसे जानते हो? ” 


उसके संदेह को दूर करने के लिए उस आदमी ने बोलना शुरू किया, “ क्योंकि मैं तुम्हें अच्छे से जानता हूँ और मेरे होते हुए अब तुम्हें कोई खतरा नहीं होगा और वो आदमी जो हमारे पीछे, मतलब, तुम्हारे पीछे पड़ा था, वो एक पागल सनकी है, उसे किसी को मारने के लिए किसी कारण कि ज़रुरत नहीं पड़ती, इसलिए उसे जब‌ भी देखो, तो भलाई इसी में है, वहाँ से चुपचाप भाग निकलो। ” उस आदमी ने नैना को समझाया।


“ पर तुम मुझे कैसे जानते हो? ” नैना ने एक और प्रश्न पूछा, उसके प्रश्न समाप्त ही नहीं हो रहे थे। “ और… और उस पुलिस वाले ने मुझपर उन बच्चों को अपहरण करने का इल्ज़ाम क्यों लगाया? जबकि वह बच्चे लगभग आठ साल पहले लापता हुए थे और मैं तो जानती तक नहीं कि वो लोग यहाँ करने क्या आए थे और उस पुलिस वाले के हिसाब से उन बच्चों के लापता हुए सिर्फ नौ महीने ही हुए थे। आखिर इस घर में हो क्या रहा है! आठ साल के बाद भी वे बच्चे अभी भी उसी रूप में जिंदा हैं, How it could be possible? ” 


नैना स्वयं से बातें करते हुए, मानो स्वतः उस घर के रहस्यों को समझने का प्रयास कर रही थी, लेकिन उस घर को समझ पाना उसके बस में नहीं था।


“ Everything is possible. शुरुआत में मैं भी तुम्हारी तरह था, Confuse!… पर थोड़ा समय लगा इस घर को जानने में, समझने में और फिर बाद में सब कुछ नॉर्मल लगने लगा। ” उस आदमी ने कहा।


“ अच्छा! अब मैं समझी, तुम्हें अश्वत ने मेरे बारे में बताया होगा। हैं ना? ” नैना अंदाजा लगाते हुए बोली, उसे लग रहा था कि उस आदमी को उसके बारे में अश्वत ने बताया था।


“ पहले तुम मुझे यह बताओ कि इस घर में आए अभी तुम्हें कितना समय हुआ है? ” नैना के वस्त्रों और उसके हाव-भाव देख, वह आदमी समझ गया कि नैना को उस घर में आए अभी कुछ ही समय हुआ था।


“ बस कुछ घण्टे! क्यों? ” नैना ने पूछा।


“ और तुम अश्वत से मिल चुकी हो! है ना? ” उस आदमी ने पूछा, वह उन बच्चों को अच्छे से जानता था और नैना से जानने का प्रयास कर रहा था कि वह अश्वत से मिल चुकी थी या नहीं क्योंकि इसके पीछे बहुत बड़ा रहस्य छुपा हुआ था।


“ हाँ… और तुम्हें पता है वो आठ साल पहले अचानक कहीं गायब हो गया था। ” नैना ने घबराकर रहस्यमई ढंग से बोलना शुरू किया, जैसे वह उस आदमी के सामने कोई गुप्त रहस्य खोल रही हो। 


“ सबको लगा कि वो मर चुका है लेकिन आज मैंने अपनी आँखों से उसका भूत देखा। पता नहीं, मैं सपना देख रही थी या वो सब सच था, वही स्कूल ड्रेस, वही रंग रूप और उसकी आवाज़ भी बिल्कुल वैसी ही थी। ” 


नैना कि बात सुनने के बाद वह आदमी समझ गया कि नैना इतनी विचलित क्यों हो रही थी क्योंकि अभी तो उसे उस रहस्यमई घर के बारे में बहुत कुछ जानना था, यह तो मात्र एक शुरुआत थी।


“ अगर वो भूत था, तो मैं कौन हूंँ! ” उस आदमी ने कहा।


“ मतलब! ” नैना उसकी बात नहीं समझी।


“ जो तुमने देखा वह मेरा अतीत था और मैं वर्तमान हूँ, इस घर का मेरा पहला दिन मुझे हमेशा याद रहेगा, सबसे पहले इस घर में मैंने तुम्हें ही देखा था और उस दिन मुझे तुम पर विश्वास नहीं हुआ था कि तुम नैना हो और हो सकता है, अभी तुम्हें मुझ पर विश्वास न हो, लेकिन सच्चाई यही है कि मैं ही अश्वत हूँ। ”


“ तुम अश्वत कैसे हो सकते हो? तुम कौनसे अतीत कि बात कर रहे हो और क्या कह रहे हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा? ” नैना के परेशान मन को शांत करने कि जगह, उस आदमी कि बातें उसे और अधिक विचलित कर रही थीं।


“ मैं ही अश्वत हूँ। ” उस आदमी ने सीधा और सपाट उत्तर देते हुए, स्वयं को पुनः अश्वत बताया।


अश्वत की बात सुनकर नैना के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान खिल गई, क्योंकि उसकी बात नैना को झूठ लग रही थी, जिस कारण से वह अश्वत को उस विचित्र घर का एक और पागल समझ रही थी, जो उस पागल की तरह खतरनाक नहीं था, जो नैना को मारने के लिए उसके पीछे पड़ा था। लेकिन उस विचित्र भूतिया घर में होने के कारण वह खुलकर खुश भी नहीं हो सकती थी, बोली, “ यह घर भूतिया है यह तो सुना था, लेकिन यह घर चु*** मतलब! पागलों से भरा पड़ा है, यह नहीं जानती थी मैं। ”


“ आई लव यू टू मच, नैनू! ” अश्वत ने नैना को विश्वास दिलाने के लिए कि वही अश्वत है, उसने ठीक वैसे ही नैना को प्रपोज़ कर दिया जैसे उसने वैलेंटाइन्स डे के दिन, 2016 को किया था। नैना को याद था कि केवल अश्वत ही था जो उसे प्यार से ‘ नैनू ’ कह कर बुलाता था।


“ नैनू? ” नैना चौंकते हुए बोली। “ But… but it's not possible. तुम्हें जरूर अश्वत की आत्मा ने सब कुछ बताया होगा। ”


नैना अभी भी मानने को तैयार नहीं थी कि उसके सामने खड़ा, घनी दाढ़ी मूँछ वाला, आदमी अश्वत ही था, दिखने में उसकी हालत किसी मजनू से कम नहीं लग रही थी।


“ इस घर में सब कुछ संभव है। उस दिन तुमने जब मुझे देखा, तो हमें देखते ही भूत समझ लिया… ” अश्वत कि बात पूरी भी नहीं हुई कि नैना बीच में बोल पड़ी।


“ उस दिन, उस दिन क्या लगा रखा है, अभी उस बात के दस मिनट भी नहीं हुए हैं। ” नैना बीच में टोकते हुए बोली।


“ हो सकता है, लेकिन मेरे लिए कई साल बीत चुके हैं। ” अश्वत ने कहा। “ इस घर में हम दोनों कि शुरुआत एक जैसी हुई थी, जब मैं इस घर में पहली बार आया था तो मुझे भी किसी ने मारने की कोशिश की थी, पर मार नहीं पाया और बाद में पता चला कि वह मैं ही था जो खुद को मारने की कोशिश कर रहा था। तुम्हारे साथ भी अभी यही हो रहा था लेकिन अब जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा। ” अश्वत ने राजा राम कि तरह वचन देते हुए कहा, जिनके लिए वचन ही सर्वोपरि था, उनका मानना था कि प्राण जाएँ, पर वचन ना जाए।


लेकिन अश्वत ने यह प्रण नैना के प्राणों को बचाने के लिए ही लिया था, वह कुछ ऐसा जानता था जो अभी नैना नहीं जानती थी। भविष्य में उस घर में नैना कि मृत्यु हो चुकी थी जिसके बाद अश्वत अंदर से बिल्कुल टूट चुका था, क्योंकि वह उससे बहुत प्यार करता था और उसके बिना अश्वत के लिए जीना असंभव था, इसलिए उसने अपने असहनीय दुख को समाप्त करने के लिए कई बार आत्महत्या करने का प्रयास भी किया, परंतु उसका प्रत्येक प्रयत्न असफल रहा। किंतु अब जब नैना उसके समक्ष जीवित और सुरक्षित खड़ी थी, तो वह उसे पुनः खोना नहीं चाहता था, इसलिए अपना आत्महत्या का विचार त्याग कर, वह नैना के साथ रहकर उसकी सुरक्षा करने की ठान चुका था और उस घर के अतीत को बदलकर भविष्य बदलने का विचार, उसे नैना का साथ ना छोड़ने के लिए प्रेरित कर रहा था। वह इस बात से अनभिज्ञ नहीं था कि अपना अतीत बदल कर अपना भविष्य नहीं बदला जा सकता था, लेकिन नैना के प्रेम ने उसे कुछ पल के लिए विचारहीन बना दिया था। वह तो बस उसके साथ रहना चाहता था।


“ अगर तुम सच में अश्वत हो तो साबित करो। ” नैना को उसकी बातों पर तनिक भी विश्वास नहीं हुआ।


“ जब इस घर में तुमने पहली बार मुझे देखा था तो…” अश्वत ने बोलना शुरू ही किया था कि नैना ने उसे फिर से टोकते हुए अविश्वास से कहा, “ कितनी बार यही कहानी सुनाओगे, कुछ और बताओ… कोई ऐसी बात जिससे मैं तुम पर भरोसा कर सकूँ। ”


“ पहले पूरी बात तो सुन लो, जब इस घर में तुमने पहली बार मुझे देखा था तो तुमने मुझे, विक्रम, रचित और मेघना, हम सब को भूत समझ लिया था इसलिए तुम डर के चक्कर में अपने आप को नैना साबित करने लिए हमारे सारे सवालों का जवाब दे रही थीं और मेरी तुम्हें प्रपोस़ करने वाली बात बताने के बाद भी, अगर मैं तुम्हें नैना नहीं मानता, तो तुम उस दिन हमारे बीच हुए किस वाली बात भी बताने वाली थीं, है ना! ” अश्वत मज़ाकिया अंदाज में मुस्कुराते हुए बोला। अब वह उस घर में स्वयं को अकेला महसूस नहीं कर रहा था, क्योंकि नैना से बात करते हुए, उसका दुख कम होता जा रहा था। 


“ लेकिन ये बात तुम्हें कैसे पता, क्या तुम सच में अश्वत हो! ” नैना ने आश्चर्यचकित हो कर फिर से सोचते हुए पूछा, संदेह अभी भी उसकी आँखों से टपक रहा था कि तभी अश्वत ने उस दिन नैना द्वारा कही गई बात को दोहराया, “ लेकिन मुझे तुम से झूठ बोलकर क्या फायदा, यही कहा था न तुमने भी! ”


“ हाँ! लेकिन… ” नैना का हृदय मान चुका था की वह अश्वत ही था लेकिन तभी एक ओर संदेह उसके मस्तिष्क में ठनका, “ फिर भी, अगर तुम अश्वत भी हो, तो तुम यह कैसे कह सकते हो कि मैं हमारे ‘किस’ वाली ही बात बताती, मैं कुछ और भी बता सकती थी। तो केवल इस बात से मैं तुम्हें अश्वत कैसे मान लूँ कि तुम्हें हमारी किस वाली बात पता है। ”


“ कभी-कभी साथ रहकर विश्वास बनता है तो कभी-कभी साथ रहने से पहले विश्वास करना पड़ता है और हमारी केवल वही एक ऐसी बात थी, जिसे बता कर तुम खुद को नैना साबित कर सकती थीं। ” अश्वत ने हल्के स्वर में गंभीरता से कहा।


“ ऐसा तो अश्वत की माँ कहती थीं। तुम सच में अश्वत हो! ” नैना ने फिर से वही घटिया सवाल दुबारा दोहराया लेकिन इस बार उसके स्वर में उत्सुकता सुनाई दे रही थी, क्योंकि अश्वत द्वारा कही गई बात वह पहले भी अश्वत की माँ से कई बार सुन चुकी थी।


“ तुम पक्का कोई भूत तो नहीं हो ना? ” नैना ने अपना अंतिम संदेह, दूर करने के लिए पूछा। अश्वत ने नैना कि मासूमियत पर मुस्कुराते हुए ‘ना’ में अपना सिर हिलाया। अब नैना उस आदमी को पूर्ण रूप से अश्वत मान चुकी थी और उत्सुकता व प्रसन्नता के साथ उसे गले लगाना चाहती थी, उसके बचपन का प्यार उसके सामने खड़ा था, किंतु अब वह उसे केवल एक दोस्त की नज़र से देख रही थी।


नैना अपनी बाहें फैलाकर, अश्वत से गले मिलने के लिए आगे बढ़ी ही थी कि अचानक उसके कदम रुक गए।


“ अब क्या हुआ? ”‌ अश्वत ने हैरानी से पूछा।


“ अगर तुम सच में अश्वत हो, तो पहले अपनी शर्ट ऊपर करो मुझे कुछ देखना है। ” नैना बच्चों की तरह जिद करते हुए बोली।


“ ओह! अच्छा! मैं समझ गया तुम्हें क्या देखना है। ” अश्वत बेझिझक होकर अपनी कमीज़ ऊपर करते हुए बोला, “ तुम्हें यही देखना था‌ ना! ”


अश्वत ने अपने उदर के एक विशेष स्थान पर संकेत करते हुए पूछा, जहाँ उसके उदर पर एक साथ तीन तिल इस तरह से व्यवस्थित थे कि उन्हें रेखाओं द्वारा मिलाकर सरलता से एक त्रिकोण बनाया जा सकता था। यह तीनों तिल बचपन से अश्वत के उदर पर थे, जिन्हें वह कभी रबड़ से मिटा नहीं पाया।


अश्वत नैना की रग रग से वाकिफ था, इसलिए वह जानता था कि नैना उसके उदर पर उन तीनों तिलों को देखकर यह पुष्टि करना चाहती थी कि वह वास्तव में अश्वत था या नहीं क्योंकि मनुष्य भले ही झूठ बोल सकता है किंतु उसका शरीर कदापि झूठ नहीं बोलता।


उन तीनों तिलों को देखने के बाद नैना इस बार सौ प्रतिशत उस आदमी को अश्वत मान चुकी थी, परंतु उसने अश्वत के पेट पर उन तिलों के अतिरिक्त दो ऐसे विचित्र निशान भी देखे जो संभवतः किसी पैने चाकू के घोंपने से ही पड़ सकते थे।


“ यह सब क्या है? ” नैना ने उन निशानों को देखते हुए विस्मय और चिंता से पूछा।


“ कुछ नहीं, बस ऐसे ही। ” अश्वत ने हड़बड़ा कर अपनी कमीज़ नीचे कर दी। “ तुम काफी थकी हुई लग रही हो, चलो बैठ कर बातें करते हैं। ” अश्वत ने उन सोफों की तरफ संकेत करते हुए कहा।


“ नहीं! नहीं! मुझे पहले रचित को ढूँढ़ना है। ” नैना दृढ़ता से बोली।


 “ भले ही तुम्हें अभी कुछ समझ में न आ रहा हो लेकिन धीरे-धीरे तुम सब समझ जाओगी, तुम रचित को इस घर में कभी नहीं ढूँढ़ सकतीं क्योंकि इस घर का हर दरवाज़ा बंद होने के बाद, दूसरे समय और दूसरे स्थान से जुड़ जाता है, इसलिए इस घर में अलग-अलग समय के लोगों का मिलना कोई बड़ी बात नहीं है, जिस तरह तुम कुछ देर पहले उस अश्वत से मिली थीं, जिसे तुम जानती थीं और उसके बाद मैं तुम्हें मिला, वैसे ही तुम्हें एक दिन रचित भी मिल जाएगा और जिस दिन तुम उसे मिलोगी, तुम्हें पता चलेगा कि तुम बेकार में ही उसकी चिंता कर रही थीं। ”


“ ऐसा लग रहा है जैसे तुम किसी किताब की कहानी सुना रहे हो। ” नैना ने कहा।


अश्वत समझ गया कि नैना को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ था, इसलिए नैना को विश्वास दिलाने के लिए इस बार उसने अपने शब्दों का प्रयोग नहीं किया, बल्कि जिस द्वार से वे उस कक्ष में अंदर आए थे, उस द्वार को खोल कर कहा, “ क्या तुम्हें अब भी लगता है कि मैं झूठ बोल रहा हूँ। ”


नैना उस द्वार से बाहर का दृश्य देखकर हैरान रह गई, जिस गलियारे से वह अंदर आई थी, उसके स्थान पर अब एक ऐसा कक्ष था जो रंग बिरंगे विभिन्न वस्त्रों से भरा पड़ा था, अश्वत ने दरवाज़ा बंद कर दिया।


“ शायद! इसी लिए उस बाथरूम में जाने के बाद मुझे अब तक रचित नहीं मिला। है भगवान! रचित जहाँ कहीं भी हो बस सही सलामत हो। ” नैना ने हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा। 


उस घर कि अफवाहों ने अब उसे डराना शुरू कर दिया था क्योंकि वे सभी अफवाहें अब सत्य प्रतीत हो रही थीं। नैना उस घर में रचित को खो चुकी थी, फिर आठ साल पहले लापता हुए कुछ बच्चों से मिली जो आज भी उसी स्वरूप में जिंदा थे, उनमें से एक उसका बचपन का प्यार अश्वत भी था, जिसे वह अब तक भूली नहीं थी। फिर एक आदमी ने उसकी जान लेने कि कोशिश की जिससे उसे बचाने वाला कोई अन्य नहीं बल्कि अश्वत ही था। वह पुनः अश्वत से मिली जो उस छोटे बालक के स्थान पर, अब दाढ़ी-मूँछ वाला पूरा एक आदमी हो चुका था।


“ तुम्हें इस घर में कितना समय हो गया है? ” नैना ने शांत स्वर में पूछा। उसे अश्वत कि बातों पर विश्वास हो रहा था क्योंकि उसने भी कोटला हाउस के बारे में कई भ्रांतियाँ सुनी हुई थीं, जो आज वास्तविक प्रतीत हो रही थीं।


“ इस घर में समय का कुछ पता नहीं चलता इसलिए पता नहीं, लेकिन मुझे इस घर में लगभग दस साल हो चुके होंगे। ”


“ दस साल! क्या तुमने इस घर से बाहर निकलने कि कभी कोशिश नहीं की? ” नैना लगातार अश्वत से एक के बाद एक प्रश्न पूछती रही, जैसे मानो वह अपने जीवन भर की पत्रकारिता अश्वत से ही सवाल पूछ-पूछ कर पूरी कर लेना चाहती हो।


“ मैंने इस घर से बाहर निकलने का हर संभव प्रयास किया, कभी भागते हुए खिड़की से बाहर कूद गया, तो कभी सारे दरवाज़े खोल डाले, जब कुछ भी काम नहीं किया तो अपनी जान लेने कि भी कोशिश की लेकिन उसमें भी सिर्फ असफलता ही मिली। इसलिए मैं अब इस घर को पूरी तरह से अपना चुका हूँ क्योंकि इस घर में आना तो हमारे हाथ में है, लेकिन बाहर जाना हमारे हाथ में नहीं है। सिर्फ एक ही आदमी है जो हमें इस घर से बाहर निकाल सकता है, जिसे मैं हर समय इस घर में ढूँढ़ता रहता हूँ। ”






 आज तक समझ नहीं आया उसने हमें इस घर में कट क्यों किया और हमसे छुपता क्यों रहता है। इस घर में 64 कमरे हैं चार बाथरूम हैं।”





“ किसकी बात कर रहे हो तुम, कौन है वो? ” नैना ने पूछा।


“ वही आदमी जिसके बारे में तुम हमेशा मुझे बताती रहती थीं… मेरा कहने का मतलब है, वही आदमी जिसने तुम्हें इस घर में बुलाकर, तुम्हें हमेशा के लिए इस घर में कैद कर लिया। ” अश्वत ने ज़ुबान संभालते हुए कहा, उसे लगा कि कहीं नैना अपनी मृत्यु कि बात समझ न जाए जबकी नैना के लिए तो इस बारे में अभी आंकलन करना भी मुश्किल था।


“ क्या! पर वो ऐसा कैसे कर सकता है और मुझे इस घर में कैद करने से उसे क्या फायदा होगा?… पर तुम कैसे कह सकते हो कि इस सब के पीछे वही आदमी है? ” नैना के प्रश्न समाप्त ही नहीं हो रहे थे, उसकी एक उलझन दूर होते ही, दुसरी सामने खड़ी हो जाती।


“ मैंने सुना है कि वो कुछ भी कर सकता है, उसने इस घर में कई लोगों को कैद किया है, उसके पास एक चाबी है इस घर से बाहर निकलने की जिसके द्वारा वह इस घर से अंदर बाहर जाता है, इसलिए जिस दिन मुझे वो मिला, मैं सबसे पहले उसका सिर फोड़ूँगा और फिर वो चाबी छीन कर, उससे पूछूँगा कि तूने हमारे जीवन के साथ इतना बड़ा खेल क्यों खेला, क्यों? ”


“ इसका मतलब इस घर में हमारे जैसे और भी लोग हैं? ” नैना ने अपने संदेह को दूर करने के लिए पूछा, उत्तर में अश्वत ने अपना सिर हिलाया।


“ क्या तुम्हें भी वही आदमी इस घर में लाया था? ” नैना ने पूछा।


“ नहीं! ” अश्वत बोला। “ मैं अपने भाई रचित के साथ यहाँ आया था। वो लोग इस भूतिया घर में इसलिए आए थे ताकि दूसरों को दिखा सकें कि भूत जैसी कोई चीज नहीं होती और इस घर की वीडियो बनाकर उस वीडियो से रुपए कमा सकें। ”


“ अगर वो बुड्ढा सच में इतना बड़ा कमीना है तो तुम तो सिर्फ उसका सिर फोड़ोगे, लेकिन अगर वो मेरे सामने आ गया, तो मैं तो उस कमीने को जान से ही मार दूँगी। ” नैना भड़के हुए अंदाज में बोली।


“ लेकिन मुझे‌ उससे पहले रचित को ढूँढ़ना है, तो यह बताओ… ये‌ दरवाज़े कहाँ खुलेंगे। ” नैना ने रचित कि चिंता करते हुए पूछा।


“ तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं है उसे ढूँढ़ने की। ” अश्वत ने अचानक अपना स्वर बदलते हुए नैना को ऐसे मना किया जैसे एक पति अपनी पत्नी को मना करता है। “ वो जहाँ भी है ठीक है। ”


“ तुम होते कौन हो मुझे रोकने वाले। ” नैना भी अश्वत पर भड़क उठी, उस घर में उसका दिमाग खराब हो चुका था, इसलिए उसे भी अश्वत पर गुस्सा आ गया। रचित की दोस्ती अश्वत के प्यार पर भारी पड़ रही थी, नैना अपने दोस्त को सही सलामत देखना चाहती थी, इसलिए वह उस कक्ष से बाहर निकलने के लिए यह सोचने लगी कि उसे कौनसा दरवाज़ा खोलना चाहिए। उसने अचानक बिना सोचे समझे किसी भी दरवाज़े से बाहर निकलने का निर्णय ले लिया।


वह उस कक्ष के दूसरे दरवाज़े से बाहर निकलने के लिए आगे बढ़ी, तभी अश्वत ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया।


“ नैना प्लीज़ समझने कि कोशिश करो, ऐसे ढूँढ़ने से रचित तुम्हें कभी नहीं मिलने वाला, बल्कि हर दरवाज़ा तुम्हें एक नए खतरे के पास ले जाएगा। तुम जितने दरवाज़े खोलते जाओगी, इस घर में समय कि उतनी ही धाराएँ बनती चली जायेंगी, जिससे इस घर में उपस्थित हर एक व्यक्ति के लिए खतरा बढ़ता जाएगा। ” अश्वत ने नैना को प्रेम से समझाने का प्रयास किया।


“ तो क्या मैं यहाँ हाथ‌ पर‌ हाथ रख कर बैठी रहूँ। ” नैना निराशा से बोली।


“ हो सकता है रचित ही तुम्हें ढूँढ़ता हुआ, यहाँ आ जाए। ” अश्वत ने दिलासा देते हुए कहा।


“ देखो, तुम थकी हुई लग रही हो, थोड़ा आराम कर लो। ” अश्वत ने नैना को उस कक्ष में मोजूद हरे रंग के सोफे की तरफ इशारा करते हुए कहा, जिसका रंग उस कक्ष कि दिवारों के रंग जैसा ही था, नैना थक चुकी थी, वह पूरे चोबिस घंटों से सोई नहीं थी। उसकी आँखों में नीद भरी थी। फिर भी नैना रचित की बात मानने को तैयार नहीं थी।


“ जब तक रचित नहीं मिल जाता तब तक मैं आराम नहीं करूंगी। ” नैना ऐसे बोली जैसे कोई शपथ ले रही हो।


अचानक उस कक्ष के एक दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी, एक लिफाफा दरवाज़े के नीचे से खिसककर उस कक्ष में आया। दरवाज़े की खटखटाहट सुनकर नैना भयभीत हो गई और उसे लगा जैसे वे दोनों सनकी उसे मारने के लिए भीतर आने वाले थे। नैना ने विस्मय से उस लिफाफे को देखते हुए पूछा, “ यह कौन था और यह क्या है? ” 


“ अरे नहीं! ” फर्श पर पड़े उस लिफाफे को देखकर अश्वत बड़ी निराशा से बोला जैसे कोई भारी मुसीबत आने वाली हो। 


“ क्या हुआ? ” नैना ने घबराकर पूछा।


“ उस बुड्ढे ने हमारे लिए कोई काम भेजा है। ” अश्वत ने कहा।


“ काम! कैसा काम? ”


“ उसे जब भी इस घर कि सफाई करानी होती है या अपने लिए खाना बनवाना होता है, या कुछ भी करवाना होता है, तो वो ऐसे ही हम लोगों से अपना काम करवाता है। ”


“ पर तुम उसका काम करते ही क्यों हो? एक तो उस बुड्ढे ने हमें अपने इस मनहूस घर में कैद कर लिया और ऊपर से नौकरों की तरह अपना काम भी करवाएगा! ” कोटला हाउस के मेजबान, सुमित सक्सेना, के बारे में सोच-सोच कर नैना का खून खौल रहा था।


अश्वत ने उस सफेद रंग के लिफाफे को उठाया, उस लिफाफे पर भी छोटे से हाथी के बच्चे का मुख अलंकृत हो रखा था, जिसे देख कर नैना ने कहा, “ लगता है बुड्ढे को हाथियों से बहुत प्यार है, इसलिए हर दरवाज़े पर भी हाथी का ही चेहरा बना हुआ है। ”


“ क्या लिखा है इसमें? ” अश्वत द्वारा लिफाफा खोलते ही नैना ने उसके करीब आकर पूछा, एक पल के लिए उन दोनों की आँखें ऐसे मिलीं जैसे वर्षों से दो प्रेमियों ने एक दूसरे को न देखा हो, अचानक नैना ने अपनी दृष्टि उस पत्र कि तरफ मोड़ दी।


अश्वत वह पत्र पढ़ता उससे पहले ही अचानक उनका ध्यान दरवाज़ा खुलने की आवाज़ पर गया लेकिन उस दरवाज़े से कोई भी कक्ष के भीतर प्रवेश करते हुए नहीं दिखा, लेकिन दरवाज़ा स्वयं धीरे-धीरे पुनः बंद हो गया। अश्वत समझ गया कि उस कक्ष में ‘ जैप्री ’ ने प्रवेश किया था, जैप्री एक राक्षस कि बेटी थी इसलिए उसमें कई अनोखी शक्तियाँ थीं, वह अदृश्य हो सकती थी, लोगों में क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या, जैसे अवगुण उत्पन्न कर सकती थी और लोगों में मतभेद करवा सकती थी। लेकिन इतनी शक्तियाँ होने के बाद भी वह उस घर से भाग निकलने में असमर्थ थी, इसलिए उस घर में कैद लोगों के मानवीय अवगुणों को उत्पन्न कर, उनमें आपसी कलह करवा कर, उनके बीच होते झगड़े को देखकर आनंद लेती थी।


नैना ने अचानक अश्वत को खींचकर थप्पड़ मारा, अश्वत हैरान रह गया। अश्वत को नैना से उस थप्पड़ का कारण पूछने का समय भी नहीं मिला कि नैना उसे झाड़ते हुए बोली, “ तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे करीब आने की। ”


ऐसा लगा जैसे उसने जानबूझ कर अश्वत को थप्पड़ मारा, जबकि वह खुद उस पत्र को पढ़ने के लिए अश्वत के करीब आई थी, जो अश्वत के हाथ में था।


अश्वत तुरंत समझ गया कि नैना के साथ क्या हुआ है, जैप्री उसके दिमाग पर हावी हो चुकी थी, अश्वत को उकसाना जैप्री के लिए थोड़ा कठिन कार्य था इसलिए उसने नैना को चुना।


नैना अश्वत पर और भड़कती उससे पहले ही अश्वत ने एक बार फिर से कसकर उसकी बाजू पकड़ी और उसे खींचकर किसी अन्य कक्ष में ले गया और तीव्रता से द्वार बंद कर लिया।


द्वार बंद होते ही, अचानक नैना के सिर में हल्का सा दर्द हुआ, उसने महसूस किया जैसे उसकी चेतना ने उसका साथ छोड़ दिया था, मानो उसका स्वयं से नियंत्रण ही छूट गया था। किंतु उस कक्ष को छोड़ने के बाद वह पुनः सामान्य हो चुकी थी क्योंकि अब जैप्री से उसका संपर्क टूट चुका था।


“ अभी मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा था ना? पर मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैंने ऐसा किया क्यों! मैंने तुम्हें थप्पड़ क्यों मारा? ” नैना ने अपने होश में आते ही परेशान हो कर अश्वत से पूछा।


“ कुछ नहीं वो सब बस, जैप्री के कारण हो रहा‌ था। ” अश्वत ने कहा।


“ जैप्री! यह किस कुत्ते का नाम है? ” नैना बोली।


“ किसी कुत्ते का नाम नहीं है! ” अश्वत नैना कि बात सुनकर हस पड़ा, लेकिन जैप्री के बारे में बताते समय फिर से उसके चेहरे पर हल्की सी गंभीरता छा गई। “ मैंने सिर्फ इतना सुना है कि जैप्री का बाप एक असुर था और उसकी माँ एक इंसान थीं इसलिए उसके पास कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं जो उसे इंसानों से अलग बनाती हैं, लेकिन आज तक मुझे यह समझ नहीं आया - अगर वह इतनी शक्तिशाली है तो वह इस घर में क्या कर रही है, यहाँ से भाग क्यों नहीं जाती है। ”


“ अगर यह बात मैंने इस घर से बाहर सुनी होती तो मैं ज़रूर इस बात पर हँस पड़ती, लेकिन अब तो हर एक बात पर विश्वास होने लगा है। क्या इस घर में ऐसे और भी लोग हैं? ” नैना ने पूछा।


“ हाँ। ” अश्वत ने अपना सिर हिलाते हुए उत्तर दिया।


“ यही जानना बाकी था। ” नैना स्वयं से बोली, वह यह जानकर और भी भयभीत हो गई कि उस मनहूस घर में ऐसी विचित्र शक्तियों वाले लोग भी थे जो उनके लिए संकट थे।


नैना के भयभीत और परेशान चेहरे को देखकर अश्वत उसे समझाने का प्रयास करते हुए बोला, “ नैना! मेरी आँखों में देखो, जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। बस एक बात याद रखना, मैं जब भी तुमसे भागने के लिए कहूँ तो बिना सोचे समझे वहाँ से भाग जाना, मेरी चिंता मत करना, बस भाग जाना। ”


अश्वत की चेतावनी सुन नैना ने कुछ डरे हुए स्वर में पूछा, “ क्या तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो? ” 


लेकिन अश्वत चुपचाप खड़ा रहा। अश्वत नैना की मौत का रहस्य अपने हृदय में छुपाए हुआ था, इसलिए वह नैना को किसी भी अनहोनी से बचाने के लिए, उसे पहले से ही सजग कर रहा था।


“ ख़ैर, तुम्हें कैसे पता चला कि वो जैप्री ही थी क्योंकि मुझे तो उस कमरे में अंदर आते हुए कोई नहीं दिखाई दिया था, तो तुम कैसे कह सकते हो वो जैप्री ही थी। ” नैना ने पूछा।


“ क्योंकि वो हमेशा ऐसा ही करती है। वह जब भी आसपास होती है, तो लोगों में गुस्सा और ईर्ष्या बढ़ने लगती है और सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है, फिर लोग आपस में लड़ने लगते हैं और एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, इसलिए मैं तुम्हें खींच कर यहाँ ले आया, क्योंकि वो तुम्हारे दिमाग पर हावी हो चुकी थी, उसके वश में होने के कारण ही तुमने मुझे थप्पड़ मारा था। ”


नैना को अचानक एक महक ने अपनी और आकर्षित किया। वे दोनों अब एक रसोई में पहुँच चुके थे, जो एक साधारण रसोई से काफी बड़ी थी, किंतु उस रसोई में प्रवेश करने के लिए केवल एक ही द्वार था, विचित्र बात यह थी कि वह रसोई बहुत गंदी थी, फलों के छिलके व सब्जियों के टुकड़े इधर उधर बिखरे पड़े थे, फर्श पर तेल फैला हुआ था और कुछ अण्डे भी फूटे पड़े थे, चूल्हे पर चढ़े तवे से जले हुए प्याज़ कि महक आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कोई अण्डे का ऑमलेट बनाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन बेचारा बना नहीं पाया।


“ मुझे लगता है कोई ऑमलेट बनाने कि कोशिश कर रहा था। ” नैना ने फर्श पर फूटे हुए अण्डे और फैले हुए तेल को देखकर कहा।


“ अगर हम इस रसोई में हैं तो ज़रूर इसका कोई विशेष कारण होगा। ” अश्वत का ध्यान तुरंत उस पत्र पर गया जो उसके हाथ में था। वह उस वृद्ध व्यक्ति की नस - नस से परिचित था, वह अक्सर ऐसे ही पत्र भेजकर लोगों से अपने कार्य करवाया करता था। दस वर्षों से अश्वत हमेशा उसकी बात मानता आया था, इस उम्मीद से कि किसी दिन वह वृद्ध व्यक्ति अश्वत से प्रसन्न होकर, उसे उस घर से स्वतंत्र कर देगा, लेकिन उसकी कल्पना कभी वास्तविकता में नहीं बदली।


अश्वत ने पत्र पढ़ना शुरू किया, “ आपको एक विशेष कार्य दिया जाता है जिसे करने में आपकी ही भलाई होगी - आपको हमारे लिए स्वादिष्ट खाना बनाना होगा, खाने में आप अपनी इच्छा से कुछ भी बना सकते हैं, लेकिन मेहमानों के लिए थोड़ी इलायची वाली चाय जो मीठी होनी चाहिए, कुछ ताज़े फलों का रस और मीठे में सिंगोरी अवश्य बनाना। खाने को हॉल में रखे टेबल पर रख देना। ” 


अश्वत ने हॉल में टेबल की उपस्थिति के बारे में पढ़ते ही रसोई के उस दरवाज़े को खोलकर देखा, रसोई से बाहर निकलते ही उसे हॉल की आबोहवा ही बदली हुई दिख रही थी। उसकी आँखें पीली रोशनी से चौंधिया गईं, हॉल अक्सर मकड़ियों के जालों से सुसज्जित और धूल धूसरित रहता था, लेकिन आज उस हाॅल में एक अति आकर्षक झूमर नयनाभिराम रोशनी से दमक रहा था। झूमर के ठीक नीचे ही, आम की आकृति वाला विशाल टेबल रखा हुआ था, जो नैना द्वारा बनाए गए भोजन की प्रतीक्षा कर रहा था, जिस पर काँच और चीनी मिट्टी के कई बर्तन व ग्लास व्यवस्थित रूप से रखे हुए थे।


जब नैना रसोई की चौखट पर पहुँची, ताज़े पेंट की सुगंध ने उसके नथुनों को फुलाते हुए उसे अचंभित कर दिया, उसने केसरिया रंग से रंगी दिवारों को विस्मय से देखा। उसके सामने वही हॉल था जिस हॉल से उसका इस घर में सफर शुरू हुआ था। लेकिन नैना ने देखा कि टेबल के बीचों-बीच रखा बड़ा सा काँच का जार जिसमें अनेकों फूल थे, अपने स्थान से गायब था। वह रसोई की चौखट पर, उस दरवाज़े को स्वतः बंद होने से रोके खड़ी थी।


अश्वत उस दृश्य को देखकर व्याकुल हो उठा और उसका अंतर्मन पूर्ण रूप से दुखी हो गया, माथे पर बल पड़ गए और हाथ पैर काँपने लगे, नैना कि चिंता ने उसे विषाद से भर दिया क्योंकि यह वही समय था जिसके कुछ देर बाद नैना कि मृत्यु कि घटना घटित होने वाली थी।


नैना ने उस घर के मुख्य द्वार को देखते हुए पूछा, “ क्या हम उस दरवाज़े को खोलकर इस घर से भाग नहीं सकते? ”


नैना की आवाज़ सुनते ही वह पीछे मुड़ा। वह अपनी ही सुध-बुध में खोया हुआ था। नैना ने पुनः पूछा, “ हम उस दरवाज़े को खोलकर इस घर से भाग नहीं सकते क्या? ”


“ अगर ऐसा हो सकता तो मैं अपने दस साल इस घर में बर्बाद नहीं करता। ” अश्वत ने एक सपाट उत्तर दिया।


“ तुम इतना परेशान क्यों हो? तुम तो दस सालों से इस घर में हो, तो तुम्हें तो इस सब की आदत पड़ गई होगी, फिर तुम्हें कौन सी चिंता है। ” अश्वत के विचलित और परेशान चेहरे को देखकर नैना ने पूछा।


“ कुछ नहीं, बस कुछ पुरानी यादें। ” अश्वत ने अपने चेहरे पर एक नकली मुस्कान खिलाते हुए उत्तर दिया क्योंकि वह अपने दुख को नैना से छुपा कर रखना चाहता था।


नैना उसकी झूठी मुस्कान देखकर यह समझ चुकी थी कि वह उससे कुछ छुपा रहा था, लेकिन उसने उस पत्र पर अपनी दृष्टि डालते हुए पूछा, “ आगे क्या लिखा है? ”


“ शिक्षा - अक्सर जो गड्ढा हम दूसरों के लिए खोदते हैं, उसमें हम स्वयं गिर जाते हैं। ” अश्वत ने उस पत्र में लिखा अंतिम वाक्य पढ़ा, उस पत्र की अंतिम बात सुनते ही नैना चिढ़चिढ़ा कर बोली, “ ये बुड्ढा अपने आप को कोई संत महात्मा समझता है क्या। ”


कुछ समय पश्चात नैना ने उस हाॅल को ध्यान से देखने के बाद बोलना शुरू किया, “ अब समझ में आया उसने ऐसा क्यों लिखा है! मुझे लगता है, वह बुड्ढा मेरे स्वागत के लिए ही हमसे खाना बनाने के लिए कह रहा है क्योंकि यह वही समय है जब मैं इस घर में आई थी, लेकिन तब मैं नहीं जानती थी कि अपने ही स्वागत के लिए मुझे खुद खाना बनाना पड़ेगा। सच में यह बुड्ढा तो बहुत बड़ा वाला कमीना है। मुझे मिर्च वाली चाय पिलाई थी न, लेकिन मैं भी अब उससे अपना बदला लेकर ही रहूँगी, ऐसा खाना बनाऊँगी कि जिंदगी भर मुझे याद करेगा। ”


“ नहीं! हमें कोई जरूरत नहीं उसकी बात मानने की। ” यह दूसरी बार था जब अश्वत नैना को किसी कार्य के लिए मना कर रहा था, वह इस विचार में डूबा हुआ था कि नैना की मृत्यु टालने के लिए जो भी संभव हो सकता है वह करेगा, लेकिन उलझन यह थी कि वह नहीं जानता था - कौन सा कार्य उसका और नैना का भविष्य बदल सकता था, आखिर नैना का भोजन बनाने से उसके भविष्य से क्या लेना देना था। हो सकता था, भोजन बनाने से नैना की मृत्यु टल जाए या संभव था कि भोजन ना बनाने से नैना की मृत्यु टल सकती थी, लेकिन अश्वत के लिए किसी एक निर्णय तक पहुँचने में बहुत कठिनाई हो रही थी।


“ भले ही हम अभी उसकी बात ना माने, लेकिन मैं यह सोच कर डर रही हूँ, जो आदमी हमें अपने इस घर में कैद कर सकता है, समय को काबू में कर सकता है, तो उसकी बात ना मानने के लिए वह हमें दंड भी तो दे सकता है! ” नैना की बात में छुपा हुआ प्रश्न अश्वत भली-भाँति समझ गया। वह दस साल से उस घर में कैद था इसलिए वह अच्छे से जानता था कि उस आदमी की बात ना मानने का दंड क्या हो सकता था, जो नैना उससे जानना चाहती थी।


लेकिन अश्वत के पास कोई उत्तर नहीं था, न तो वह नैना को डराना चाहता था और न ही उसे उकसाना चाहता था, लेकिन भोजन मानव की सबसे बड़ी आवश्यकता होती है और इस बात को अश्वत बहुत अच्छे से समझता था क्योंकि उस घर में उसने कई रातें खाली पेट गुजारी थीं। ‘ नैना भूखी होगी! ’ अचानक से यह विचार उसके मन में कौंधा और उसने अंत में भोजन बनाने का ही निर्णय लिया।


अश्वत ने बिना कुछ बोले हॉल से रसोई के अंदर प्रस्थान कर दिया और भोजन बनाने के लिए रसोई में भोजन के लिए उपलब्ध सामग्रियों को खंगालने लगा।


“ समझ नहीं आ रहा यह बुड्ढा समय के साथ खेल कैसे सकता है? ” नैना भी बड़बड़ाती हुई रसोई में चली आई।


“ तुम क्या बनाने जा रहे हो? ” नैना ने पूछा।


“ शाही पनीर, बिरयानी और चाय… ” अश्वत ने फटाक से उत्तर दिया।

“ रोटी और सिंगोरी तुम बनाओगी। ” उसने नैना को आदेश देते हुए कहा।


“ लेकिन सिंगोरी बनाने के लिए मालू के पत्ते चाहिए… या फिर केले के भी हों तो चलेंगे। ” नैना ने अपनी समस्या बताई।


“ फ्रिज खोल कर देखो उसमें सब कुछ है। ” अश्वत ने सपाट उत्तर दिया। “ वो जब भी कुछ बनाने के लिए कहता है, तो रसोई में वो सारा सामान उपलब्ध होता है, जो उसे चाहिए इसलिए मालू के पत्ते ज़रूर फ्रिज में होंगे। ”


नैना ने फ्रिज‌ खोलकर देखा, फ्रिज‌ खोलते ही मदहोश कर देने वाली ऐसी सुगंधित हवा बाहर निकली जैसे फ्रिज‌ में कोई इत्र छिड़का गया था। नैना की दृष्टि सबसे पहले पानी की बोतलों पर पड़ी और उसने पानी की बोतल निकालकर सबसे पहले अपनी प्यास बुझाई।


फ्रिज में ढेर सारी सब्जियाँ और फलों को देखकर नैना ने आश्चर्य से पूछा, “ आखिर इस घर में यह सब्जियाँ लाता कौन है? ”


अश्वत ने नैना के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया, मानो उसने नैना की बात सुनी ही न हो। वह चुपचाप अपना कार्य करता रहा।


“ अच्छा सच-सच बताओ, जब भी उस बुड्ढे की बात कोई नहीं मानता तो वो उसके साथ क्या करता है? सजा देता है? ” नैना ने सिंगोरी मिठाई बनाने के लिए रसोई में सारी सामग्रियों को ढूँढ़ते हुए पूछा। लेकिन अश्वत फटाफट चुपचाप अपना काम करता रहा।


“ हेलो! तुम्हें हुआ क्या है, इतने अजीब ढंग से पेश क्यों आ रहे हो? ” नैना ने अश्वत के कंधे को थपथपाते हुए उसका ध्यान खींचते हुए पूछा।


“ कुछ नहीं बस ऐसे ही… ” अश्वत ने उदासी भरे स्वर में उत्तर दिया।


अश्वत की चुप्पी के कारण नैना भी काफी देर तक शांति से अपना कार्य करती रही। कुछ देर बाद नैना का मासूम चेहरा देखकर अश्वत से रहा नहीं गया और स्वयं को स्वस्थ करते हुए, उसने नैना से बातें करना शुरू कर दिया।


“ तुम्हें भूख लगी है न! ” अश्वत नैना के चेहरे को देखकर समझ गया कि भूख के कारण उसके पेट में चूहे दौड़ रहे थे।


“ नहीं! ” पहले तो नैना ने मना किया लेकिन अचानक अपना उत्तर बदलते हुए कहा, “ हाँ! भूख तो लगी है पर तुम्हें कैसे पता? ”


“ तुम्हारी हर एक आदत को जानता हूँ मैं, कब भूख लगती है कब प्यास लगती है सब तुम्हारे चेहरे पर दिख जाता है। लेकिन टेंशन मत लो खाना बनाने के बाद हम इस खाने को खा भी सकते हैं। ”


“ सच में! ” नैना ने चौंकते हुए कहा।


“ तुम्हें क्या लगता है इतनी मेहनत मैं उस बुड्ढे के लिए कर रहा हूँ। मैं इतने सालों से इस घर में हूँ, अगर कुछ खाता नहीं तो अब तक जिंदा नहीं रहता। ” अश्वत ने कहा।


जब तक अश्वत ने अपना काम पूरा किया तब तक नैना भी रोटियाँ बना चुकी थी और सिंगोरी बनाने के अंतिम चरण में थी, अब केवल मीठे पैड़ों को मालू के पत्तों में लपेटना बाकी था।


“ तुम्हें याद है! बचपन में… मैं अपनी माँ के साथ जब भी तुम्हारे घर आता था, तब आंटी हमेशा मीठे में सिंगोरी बनाती थीं। ” अश्वत बोला।


“ मैं जब भी इस घर में अकेला पड़ जाता था, तब मुझे अपनी मम्मी, पापा, मेरी छोटी बहन आंचल और तुम्हारी बहुत याद आती थी, लेकिन जब मुझे इस घर में तुम्हारा साथ मिला तो मेरा अकेलापन कहीं दूर हो गया। और तुम जब भी मेरे साथ होती हो मुझे किसी बात की कमी नहीं रहती। ” अश्वत उदासी भरे स्वर में बोला।


अश्वत की बातें सुनकर नैना की आँखों से आँसू टपकने लगे, वह रोना तो बहुत देर से चाहती थी, लेकिन अश्वत की भावुक बातों ने उसे रोने पर मजबूर कर दिया क्योंकि उसे भी अपने माता-पिता की याद आ रही थी और उसका दुख यह सोचकर ओर भी गहरा हो गया कि अब वह भी अपने माता-पिता से जीवन में दुबारा कभी नहीं मिलने वाली थी।


“ हेई, नैना! तुम्हें क्या हुआ। ” नैना की आँखों से टपकते आँसुओं को देखकर अश्वत ने पूछा।


“ पता नहीं तुमने इस घर में इतने साल कैसे काट लिए! ” नैना ने रुआँसी आवाज़ में बोलना शुरू किया। “ मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि अब मैं इस घर से कभी बाहर नहीं निकल पाऊँगी और न ही अब कभी अपने माता-पिता से मिल पाऊँगी, न ही कभी अपने दोस्तों को देख पाऊँगी और न ही कभी अपने मंगेतर से मिल पाऊँगी। अपने साथ-साथ मैंने रचित की जिंदगी भी बर्बाद कर दी। ”


नैना रोते-रोते अश्वत के गले लग गई, विश्वास का आश्रय अजनबी को भी अपना बना देता है, उस समय नैना को प्यार और सहारे की बहुत आवश्यकता थी और अश्वत के गले लगने के बाद नैना का दुख थोड़ा कम हुआ जैसे उसने किसी अपने को गले लगा रखा था। अश्वत ने भी नैना को अपनी बाहों में भर लिया। अश्वत उसे हमेशा खुश और सुरक्षित देखना चाहता था। उसने प्रेम से अपनी बाजुओं की पकड़ को और अधिक कस लिया। वह नैना को किसी भी कीमत पर दुबारा खोना नहीं चाहता था, उसके प्रेम आलिंगन से नैना को गहरी सांत्वना मिली और कुछ समय के लिए वह अपनी परेशानियों और दुखों को भूल गई।


जब पलकों पर आँसुओं का भार अधिक हो जाता है तब हमारी अंतरात्मा का दुख बिना कुछ कहे दूसरों को दृष्टिगत हो जाता है। नैना के लिए यह थोड़ा मुश्किल समय था लेकिन अश्वत वर्षों से इन परिस्थितियों में ढल चुका था और अब उसे इस सब की आदत थी।


“ कभी-कभी अपनों से दूर होकर ही अपनों की कीमत पता चलती है। ” नैना अपने आप को संभालते हुए अश्वत से दूर हट कर बोली।


“ लेकिन आजकल के लोगों ने तो अपनों को समय देना ही छोड़ दिया है, सब अपनी-अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त हो गए हैं कि अपने माता-पिता के साथ को

ई समय बिताना ही नहीं चाहता। मेरा व्यवहार भी उनके साथ कुछ ऐसा ही था, लेकिन आज मुझे अपनी गलतियों पर पछतावा हो रहा है। काश! मैं बस एक बार उनसे यह कह सकती, I love you mummy, I love you papa. ”


नैना का दुःख कम कर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए, अश्वत ने भोजन करने के आशय से पूछा, “ भूख लगी है! ” 



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