अमन सीढ़ियों से होता हुआ नीचे पहुँचा, नीचे एक और दरवाज़ा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। जब उसने सिर उठाकर ऊपर देखा, तो वह दरवाज़ा स्वयं बंद हो चुका था, जिस दरवाज़े से वह वहाँ तक पहुँचा था।
अमन को लगा कि जो दरवाज़ा उसके सामने था, उसके पीछे कोई तहखाना होगा, जहाँ अवश्य कोई खतरा हो सकता था, उसे उस अज्ञात संकट से डर तो लग रहा था, किंतु उसने अधिक न सोचते हुए अपनी खाली बंदूक तानकर उस दरवाज़े पर एक ज़ोरदार लात मारी।
दरवाज़ा खुलते ही जो दृश्य उसे दिखा, उसने कल्पना में भी नहीं सोचा था कि उस दरवाज़े के पीछे एक विशाल हॉल होगा। उस स्थान को देखकर वह दंग रह गया, गरीबी में अपना जीवन काटने वाले अमन ने इतना विशाल और भव्य हॉल पहली बार देखा था। उसे वह हॉल किसी भूतिया फिल्म के सेट के समान ही लग रहा था, जहाँ काँच की खाली बोतलों से भरा हुआ एक ड्रिंक काउंटर था, जहाँ भूतिया फिल्म की तरह ऊपर जाती हुई विशाल और चौड़ी सीढ़ियाँ लकड़ियों की थीं, जहाँ युद्धक मुद्रा में गेंडों की दो प्रतिमाएं भी थीं जो किसी रहस्यमई द्वार की रक्षा कर रही थीं।
अमन ने उस हॉल में कुल पाँच लोगों को खड़ा देखा। अमन ने हॉल में खड़े उन बच्चों को देखते ही पहचान लिया, क्योंकि उसके पुलिस स्टेशन के बाहर उन बच्चों का पोस्टर कई महीनों से लगा हुआ था।
“ ऐ! तुम लोग तो वही बच्चे हो न जो… नौं महीने पहले लापता हुए थे! ” अमन ने अपनी बंदूक नीचे करते हुए आश्चर्य से पूछा।
“ ये लो! अब ये नए आए हैं। अभी हमें इस घर में आए नौ मिनट नहीं हुए, और हम नौ महीनों से गायब हैं, इस घर में सारे पागल हैं क्या! ” विक्रम अपनी बहन मेघना से बोला, लेकिन अमन ने उसकी बात सुन ली।
“ ऐ, फालतू नहीं, हाँ! ” अमन विक्रम को घूरते हुए बोला। “ और तू अपने हाथ ऊपर कर। ” अमन ने नैना को बँदूक दिखाते हुए कहा।
“ पर… पर मैंने क्या किया है, सर? ” नैना ने हैरान होकर पूछा।
“ मैंने क्या किया है! ” अमन नैना कि नकल करते हुए बोला।
“ नो महीनों से इन बच्चों का किडनैप कर रखा है और मुझसे पूछ रही है कि मैंने क्या किया। लेकिन अब इन बच्चों का गर्भगृह से बाहर निकलने का समय आ गया है। सोचा नहीं था, तुम जैसी लड़कियाँ भी ऐसा काम करती हैं। चल, अब यह बता सागर कहाँ है और ओर कितने लोग हैं तेरे साथ। ” अमन ने नैना पर शक करते हुए पूछा।
जिस तरह कुछ देर पहले वे बच्चे नैना कि बात नहीं समझ पा रहे थे, वैसे ही, अब नैना और वे बच्चे अमन कि बात नहीं समझ पा रहे थे, क्योंकि वे सभी अलग-अलग समय कि बातें कर रहे थे, नैना के लिए वे बच्चे आठ साल पहले गायब हुए थे, जबकि उस पुलिस वाले के हिसाब से उन बच्चों के लापता हुए केवल नौ महीने ही हुए थे और उन बच्चों को, नैना और अमन, दोनों की ही बातें झूठी लग रही थीं, क्योंकि उनके हिसाब से वे अभी लापता ही नहीं हुए थे। इसलिए वे लोग इस उलझन में पड़े हुए थे कि जो भी आता है, अजीब बातें ही क्यों करता है।
“ सर, मैंने इन बच्चों का किडनैप नहीं किया है! ” नैना अपने ऊपर लगे आरोप को गलत ठहराते हुए दृढ़ता से बोली। “ और मैं किसी सागर को नहीं जानती, मैं तो खुद अपने दोस्त रचित के लिए परेशान हूँ। मैं तो रचित के साथ यहाँ सिर्फ... ”
अमन नैना की बात काटते हुए बोला, “ देख, मैं लड़का लड़की में फर्क नहीं करता इसलिए चुपचाप बता दे, सागर कहाँ है? वरना मिंटो पुलिस स्टेशन की पूरी महिला जेल खाली पड़ी है। ”
“ हमें तो लगा था कि यह घर खाली पड़ा होगा, लेकिन यहाँ तो सारे पागल भरे पड़े हैं। ” विक्रम ने हल्के से मेघना के कान में कहा, वह अमन को कोई पागल समझकर उसे हल्के में ले रहा था।
“ सर, आप कौन से सागर के बारे में पूछ रहे हैं, अरब सागर या अण्डमान सागर! ” विक्रम ने ऐसा प्रश्न अमन का मज़ाक उड़ाने के लिए पूछा, लेकिन अमन को विक्रम कि व्यंग्यात्मक मुस्कान ज़रा भी पसंद नहीं आयी। उसका सारा ध्यान विक्रम पर आ गया, अमन ने उसे क्रोध से देखा। उसे सब समझ में आ रहा था कि विक्रम उसका मज़ाक बनाने का प्रयास कर रहा था।
“ क्या नाम है तेरा? ” अमन ने विक्रम के बिल्कुल सामने खड़े हो कर, आँखों में आँखें डाल कर पूछा।
“ विक्रम! ” विक्रम ने नजरें झुका कर घबराते हुए उत्तर दिया।
“ तेरे पिछवाड़े में कोई कीड़ा है क्या! अब अगर तु कुछ भी बोला, तो बोलना भूल जाएगा, समझा! ” अमन ने विक्रम को लताड़ते हुए कहा, जिसके बाद विक्रम की बोलती बंद हो चुकी थी।
अमन ने एक टेढ़ी दृष्टि रचित पर डालते हुए, उसका नाम भी पूछ ही लिया, “ और तेरा नाम क्या है? ”
“ सर, मेरा नाम रचित है। ” रचित ने तुरंत अपना नाम बताया।
“ इसका मतलब तू इस लड़की के साथ है! ” अमन ने रचित पर संदेह करते हुए पूछा, क्योंकि कुछ देर पहले ही नैना ने रचित को अपना दोस्त बताया था।
“ नहीं-नहीं सर! मैं मैं हूँ, वो कोई दूसरा रचित है, मैं इनके साथ नहीं हूँ, बल्कि मैं तो इन्हें जानता तक नहीं। ” रचित अपने आप को बचाते हुए बोला।
रचित की बात सुनने के बाद अमन ने एक क्षण के लिए अपनी दृष्टि अश्वत पर डाली, वह अपने हाथ में दो स्वेटर लिए, मेघना का गुलाबी रंग का बैग टांगे, भोली शक्ल बना कर खड़ा था, जैसे उससे शरीफ बच्चा इस दुनिया में अन्य कोई था ही नहीं।
“ ह्म्… वैसे तुम लोगों की हालत देख कर लग नहीं रहा कि तुम लोग नौ महीनों से लापता हो। न चेहरे पर कोई परेशानी है, न टॉर्चर का नामोनिशान है और सेहत भी बिल्कुल ठीक-ठाक लग रही है। ” अमन उन बच्चों की अच्छी खासी हालत देखकर बोला, जो उसके लिए एक आश्चर्य की बात थी, क्योंकि नौ महीने के अपहरण के बाद भी, वे लोग तंदुरुस्त लग रहे थे, उनके चेहरे व शरीर पर कोई घाव तक नहीं था और कपड़े अभी भी चमक रहे थे, जैसे कल ही धोकर पहने हों।
“ वैसे..! मानना पड़ेगा। काफी अच्छा ध्यान रखा है तुमने इन बच्चों का। ” अमन ने नैना को देखते हुए कहा।
“ सर, आप समझ नहीं रहे हैं। आप जैसा सोच रहे हैं वैसा कुछ भी नहीं है। यह बच्चे लगभग आठ साल पहले गाय हुए थे और... ”
“ यह बच्चे आठ साल से गायब हैं। ” नैना की बात सुनकर अमन ज़ोर ज़ोर से ठहाके मारकर हंसने लगा। आठ साल की बात पर उसे तनिक भी विश्वास नहीं हुआ और विश्वास होता भी कैसे क्योंकि उसके अनुसार उन बच्चों के लापता हुए केवल नौ महीने ही हुए थे।
तभी उस हॉल में गलियारे के दाएँ तरफ से, पागलों जैसे ढीले ढाले काले कपड़े पहने, घनी दाढ़ी मूँछ वाले, एक अजीब से आदमी ने प्रवेश किया, जिसे देख अमन के मुख पर पुनः गंभीरता छा गई।
एक-एक कर उस घर के सारे गिरदार सामने आ रहे थे, उस आदमी को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसने नहाना तो दूर, वर्षों से मुँह भी नहीं धोया था। उसके माथे पर दाएँ तरफ एक चोट का निशान था तथा बाएँ गाल पर एक लंबा सा चाकू का निशान था।
भले ही अमन ने विक्रम को अपना मुँह बंद रखने को कहा था, लेकिन विक्रम कि दृष्टि जैसे ही हॉल में प्रवेश करने वाले उस नए आदमी पर पड़ी, उसके मुँह से हल्की सी आवाज़ निकली, “ अब यह कौन है? ”
वह आदमी देखने से भले ही पागल दिख रहा था लेकिन वह काफी शांत और निर्बल दिख रहा था। वह उस हाॅल में आकर चुपचाप खड़ा हो गया और चेहरे पर विचित्र भाव बना-बना कर उन लोगों को बड़ी ही अजीब दृष्टि से घूरता रहा।
“ यह कौन है? ” अमन ने नैना से बिना किसी स्वर के सांकेतिक भाषा में पूछा। नैना ने भी बिना कुछ बोले अपने कंधे उचकाते हुए जताया कि वह उस आदमी को नहीं जानती थी। सबकी नज़रें उस आदमी पर थीं, लेकिन वह तो केवल नैना को घूर रहा था।
“ हेलो! सुनाई दे रहा है? ” अमन ने उस आदमी से पूछा। उसने अमन की आवाज़ पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और अपनी आँखें बंद कर सिर लटकाए चुपचाप खड़ा रहा, इसलिए अमन धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा।
अचानक उस आदमी ने झटके से अपना सिर उठाया और आँखें खोलते ही सीधे अमन पर दृष्टि डाली, एक पल के लिए अमन भी डर गया। वह आदमी आँखें खोलते ही अमन कि तरफ किसी भूखे भेड़िए की तरह दौड़ पड़ा, अमन ने उसके प्रतिरोध में उसे डराने के लिए बंदूक भी दिखाई लेकिन वह नहीं रुका, जैसे उस पागल को बंदूक का कोई डर ही नहीं था और अपनी कमर के पीछे से छह इंच लंबा चाकू निकालते हुए, सीधे अमन के पेट में घुसाने का प्रयास किया। किंतु उसके प्रतिरोध में अमन ने तीव्रता से उसका हाथ पकड़ लिया।
किसी को भी इस बात कि उम्मीद नहीं थी कि वह आदमी ऐसा कुछ करेगा, अमन को तो कुछ पल के लिए महसूस ही नहीं हुआ किंतु वह चाकू उसके पेट को हल्का सा चीरकर बाहर भी आ चुका था। उस सनकी आदमी का ऐसा करने का क्या कारण था, कोई नहीं जानता था, लेकिन उसकी इस हरकत से बाकी सभी डर गए चुके थे।
उस सनकी ने झटके से अमन के हाथ से अपना हाथ छुड़ाकर उसे एक ज़ोरदार धक्का देकर जमीन पर गिराने का प्रयास किया, लेकिन उसके धक्के में इतना बल नहीं था, जिससे अमन ज़मीन पर गिर पाता।
उसके बाद उसने बार-बार अमन को चाकू से मारने का प्रयास किया, लेकिन अमन उसके हर प्रहार से बचता रहा। पर अमन जब भी उसका हाथ पकड़ने की कोशिश करता, वह सनकी फुर्ती से अपने आप को अमन के हाथों में आने से बचा लेता।
अमन पर विजय प्राप्त न कर पाने के कारण, वह उन बच्चों की तरफ दौड़ा और उस सनकी आदमी से अपनी जान बचाने के लिए वे सभी भाग खड़े हुए, किसी को भी वहां से भागने के अतिरिक्त कुछ समझ नहीं आ रहा था कि करना क्या है, इसलिए वे लोग हड़बड़ा कर इधर-उधर भागने लगे।
विक्रम ने अपनी बहन का हाथ पकड़ा और उसे लेकर सीढ़ियों की तरफ भागा, रचित भी उनके साथ भागा। नैना भी अश्वत को अकेला छोड़ उसी दिशा में भागी, लेकिन ऊँची हील वाली सैंडल के कारण उसे स्वयं पर विश्वास नहीं था कि वह उन बच्चों कि तरह फटाफट सीढ़ियाँ चढ़ पाएगी, इसलिए उसने दिशा बदलते हुए, हॉल से बाहर भागने का निर्णय लिया।
जब वह पीछे मुड़ी तो वह आदमी चाकू ताने उसके सामने ही खड़ा था, नैना उसे अपने सामने देख चीख पड़ी। उसने नैना कि छाती पर चाकू घोपने का प्रयास किया, लेकिन सौभाग्यवश नैना उससे बचकर भाग निकली, परंतु दुर्भाग्य कि बात यह थी कि वह पागल नैना के पीछे ही पड़ गया।
नैना उस हाॅल से बाहर भागी और उस सनकी ने भी अपनी दिशा बदल कर, नैना के पीछे भागना शुरू कर दिया। अमन ने उस पागल को पुनः अपने सामने तीव्र गति से भागता हुआ आता देख, उसके पैरों में अपना पैर लड़ाकर उसे गिरा दिया, नैना ने पीछे मुड़ कर देखा तो वह सनकी पेट के बल ज़मीन पर गिरा पड़ा था।
लेकिन उसने हार नहीं मानी और वह तीव्रता से उठा तथा पुनः नैना के पीछे पड़ गया। नैना भी फिर से डरकर भाग खड़ी हुई और उस हाॅल से निकलकर गलियारे में मुड़ गई, जिसमें हर दो कदम पर एक दरवाज़ा था।
इधर अमन और अश्वत, जो अभी हॉल में ही थे। अचानक एक और दाढ़ी वाला आदमी उस हाॅल में प्रकट हुआ और अश्वत का मुँह बंद कर उसे अपने साथ बलपूर्वक पकड़कर उसी द्वार के भीतर लेजा रहा था जिस द्वार से अमन उस हॉल में पहुंचा था। अश्वत का मुँह बंद होने के कारण उसकी नाक से निकलने वाली एक अजीब सी आवाज़ ने अमन का ध्यान खींच लिया।
ज़मीन पर घायल पड़े अमन को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उस घर में चल क्या रहा था। लेकिन उसके पास यह सब सोचने के लिए अभी समय नहीं था, वह तो इस समय अजीब सी विडंबना में पड़ चुका था, एक और नैना थी जिसे बचाकर वह उसकी नज़रों में ऊपर उठ सकता था और एक प्यारी सी लड़की का दिल जीत सकता था तथा दूसरी और अश्वत था, एक बालक, जिसे बचाकर अमन उसका सुपरहीरो बन सकता था, इसलिए अमन इस उलझन में पड़ा था कि किसे बचाकर उसका अधिक लाभ होने वाला था, लेकिन उसने विचार किया कि कहीं यह सब उस लड़की और उसके साथियों का कोई षड्यंत्र तो नहीं।
अमन के अनुसार - नैना एक व्यस्क थी जो अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकती थी, लेकिन अश्वत अभी एक बालक था, जो स्वयं की सुरक्षा नहीं कर सकता था, इसलिए यह विचार उसके मन में आते ही, उसने अश्वत को बचाने का निर्णय लिया। अच्छी बात यह थी कि रचित, विक्रम और मेघना ऊपर किसी कमरे में शांति से सुरक्षित छुप कर बैठ गए जाकर।
लेकिन इधर अब नैना को उस गलियारे में घुसना अपनी सबसे बड़ी मूर्खता लग रही थी, क्योंकि उस गलियारे में हर दो कदम पर एक दरवाज़ा था, किंतु वे सभी दरवाज़े बंद पड़े थे। उसे गलियारे के अंत में एक दरवाज़ा दिखाई दिया, उसने मन में ईश्वर से यही प्रार्थना की कि वह दरवाज़ा बस उसके धक्का देते ही खुल जाए।
अमन अपने पेट पर लगे घाव से बहते हुए खून को रोकने के लिए उस पर हाथ रख कर अश्वत को बचाने के लिए भगा। लेकिन वह उस आदमी को रोक पाता, उससे पहले ही उस आदमी ने ड्रिंक काउंटर के पास वाले कक्ष में घुसकर, दरवाज़ा बंद कर लिया।
दरवाज़ा बिल्कुल अमन के मुँह पर ही बंद हुआ, उसने तुरंत दरवाज़ा खोलकर देखा, जैसे ही उसने द्वार खोला वह हैरान रह गया, क्योंकि जिन सीढ़ियों से होता हुआ वह उस विशाल हॉल में पहुंचा था, उस दरवाज़े के पीछे से वे सीढ़ियाँ कहीं लुप्त हो चुकी थीं। अब उसके सामने एक काफी बड़ा बाथरूम था, जिसमें उसे अश्वत और वह आदमी कहीं नहीं दिखाई दिए। उस घर कि माया ही कुछ ऐसी थी की द्वार बंद होते ही।में एक बार कोई किसी कक्ष में चला जाता तो द्वार बंद होने के बाद, दुबारा मिलता ही नहीं था।
उस बाथरूम में एक बड़ा सा अर्धपारदर्शी पर्दा लगा हुआ था, जिसके पीछे उसे किसी कि परछाई तो नहीं दिखाई दी लेकिन स्वयं कि संतुष्टि के लिए, उसने पर्दे को समेटकर, अच्छे से यहाँ वहाँ देखा लेकिन पर्दे के उस पार, खाली बाथटब और इस्नान सामग्री से अधिक कुछ नहीं था।
लेकिन तब तक वे दोनों उस घर के चक्रव्यूह में कहीं गायब हो चुके थे।
नैना बिना रुके भागती हुई सीधे गलियारे के अंतिम द्वार से धड़ाम से जा टकराई और दरवाज़ा खुल गया। उस द्वार के खुलते ही वह अंदर घुस गई और जितनी तीव्रता से हो सकता था दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया, लेकिन अंदर उस दरवाज़े पर कोई कुण्डी नहीं थी, भीतर भी दरवाज़े पर वही आकृतियाँ और उनके बीच हाथी का मुख बना हुआ था, जैसा उस दरवाज़े के बाहर था।
नैना ने एक विचित्र घटना महसूस की, वह अभी भी उसी गलियारे में खड़ी थी जहाँ से वह भागकर गई थी और जब उसने अपने बाईं तरफ देखा, तो वह पागल अभी भी बाहर से ही वही दरवाज़ा खोलकर किसी कमरे में झाँक रहा था, जिसमें नैना ने प्रवेश किया था।
नैना उस विचित्र घटना को समझ पाती कि अचानक पीछे से एक दाढ़ी-मूँछ वाले दूसरे आदमी ने नैना के दाएँ कंधे पर अपना हाथ रखा और नैना डरकर चीख पड़ी। वह डरकर उस आदमी से दूर हट गई और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगी, “ प्लीज़! मुझे मत मारो, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। प्लीज़! मुझे मत मारो। प्लीज़! ”
उसकी चीख अति भयानक थी, भय के कारण वह तीव्रता से हाँफ रही थी। आश्चर्य की बात यह थी की नैना के समक्ष खड़ा दाढ़ी वाला वह दूसरा आदमी वही था, जो अमन के सामने ही अश्वत का मुँह बंद कर उसे बलपूर्वक पकड़कर किसी दूसरे कक्ष में अपने साथ ले जा चुका था।
लेकिन नैना के सामने खड़े उसी आदमी ने, अश्वत की तरह, नैना को मारने या घायल करने का कोई प्रयास नहीं किया, लेकिन चमत्कार तो यह था कि वह एक ही समय पर दो स्थानों पर उपस्थित था।
नैना कि भयानक चीख सुनकर वह पागल पीछे मुड़ा जो अभी भी गलियारे में ही उपस्थित था। नैना को मारने के लिए वह पुनः उसकी तरफ दौड़ने को हुआ, लेकिन उसके समक्ष खड़े उस दाढ़ी-मूँछ वाले आदमी को देख, वह एक पल के लिए ठहर गया।
नैना पुनः किसी अन्य दरवाज़े से भागने को हुई, लेकिन उसके समक्ष खड़े उस आदमी ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया और बड़ी दृढ़ता से बोला, “ नैना! मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा, बस मेरे साथ रहो। ”
अचानक एक अन्य दरवाज़े से एक और आदमी खून में लथपथ ऐसे बाहर निकला जैसे कोई जंग लड़कर आ रहा हो, बाहर निकलकर उसने नैना को ऐसे देखा मानो अपने दुश्मन को ही देख रहा था। उसे देखते ही नैना डर कर सहम गई और पूछा, “ यह लोग हैं कौन और मुझे मारना क्यों चाहते हैं और तुम कौन हो? ”
नैना ने जब ध्यान से उस घायल व्यक्ति को देखा, तो उसने महसूस किया कि जो सनकी आदमी उसे मारने का प्रयास कर रहा था तथा उसके सामने खड़ा वह घायल व्यक्ति, वे दोनों दिखने में हुबहू एक जैसे थे। उस घायल व्यक्ति के माथे पर दाएँ तरफ गहरी चोट लगी थी जिसमें से खून भी बह रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे वह घायल आदमी, उस सनकी का छोटा भाई था।
नैना ने देखा कि जिस स्थान से उस घायल व्यक्ति के माथे से खून निकल रहा था, ठीक उसी स्थान पर उस दूसरे सनकी के माथे पर एक गहरी चोट का निशान था।
• उसके चेहरे पर किसी घाव का कोई निशान नहीं था और वह उस आदमी का प्रतिरूप था, जो नैना को मारने के लिए उसके पीछे पड़ा था। वे दोनों अलग-अलग समय के एक ही व्यक्ति थे, जिन्हें देखकर नैना अचरज में पड़ गई।
वे दोनों नैना को मारने के लिए एक साथ उसकी तरफ भागे, क्योंकि अब वे दो थे, अर्थात शक्ति अब दोगुनी हो चुकी थी और अपने जवान प्रतिरूप को देख कर, पहले वाले प्रतिरूप का आत्मविश्वास पुनः जाग उठा। वे दोनों नैना को छू भी पाते, उससे पहले नैना के समक्ष खड़े व्यक्ति ने कसकर उसकी बाज़ू पकड़ कर खींचते हुए कहा, “ ये हार नहीं मानेंगे, हमें यहाँ से निकलना होगा। ”
पता नहीं क्यों! नैना को उस आदमी पर विश्वास हो गया, वह कसकर नैना कि बाजु पकड़ कर, गलियारे में उपस्थित इतने सारे दरवाजों में से किसी एक दरवाज़े का प्रयोग करते हुए, उसे वहाँ से खींच कर किसी अन्य कक्ष में ले गया और दरवाज़ा धड़ाम से बंद कर दिया और बाहर वे दोनों सनकी निराश हो कर एक दूसरे को देखते खड़े रह गए।
अमन उस बाथरूम में खड़ा यह समझने का प्रयास कर रहा था कि आख़िरकार वह आदमी उस बच्चे को लेकर अकस्मात कहाँ उड़न छू हो गया था, जो उसके सामने ही उस बाथरूम के भीतर आया था। उस एक दरवाज़े के अतिरिक्त वहाँ से भागने का
कोई अन्य विकल्प भी नहीं था।
सागर की ही तरह अश्वत भी उस विचित्र घर में ऐसे खो गया, जैसे किसी मेले में कोई बालक खो जाता है।
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