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chapter 4 Kotla house

 अश्वत, रचित, विक्रम और मेघना, वे सभी इस बात से अनजान थे कि अब वे लोग उस मनहूस घर में हमेशा के लिए कैद हो चुके थे और उन्हें बचाने आए पुलिस वाले भी, वहाँ से निकल पाने में असमर्थ थे। उस घर के रहस्यों को समझ पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था।


घर का मुख्य दरवाज़ा स्वतः बंद होने के बाद, वे सभी घबरा गए और उस दरवाज़े को खोलने के लिए रचित और विक्रम दरवाज़े पर झपट पड़े और दरवाज़े के हैंडल को पकड़ कर अपना पूरा बल लगाते हुए उसे खींचने लगे, लेकिन पूरा प्रयास करने के बाद भी वे दोनों मिलकर भी उस दरवाज़े को खोल नहीं पाए।


“ माद***, खुल जा माद***, खुल जा। ” विक्रम गुस्से में अनाप-शनाप गालियाँ बक रहा था।


मेघना ने आगे बढ़कर घबराते हुए, दरवाज़े को पीटना शुरू कर दिया, वह डर के मारे जोर-जोर से चीखने लगी, “ कोई है? प्लीज़ हेल्प। कोई है? कोई तो दरवाज़ा खोल दो यार! प्लीज़! ”


अचानक घर के भीतर जितने भी रोशनदान थे, प्रज्वलित हो उठे और पूरा घर रोशनी से जगमगा उठा। उन लोगों ने डरकर यहाँ-वहाँ देखना शुरु कर दिया लेकिन कोई नज़र नहीं आया। यह समझना बहुत मुश्किल था कि रोशनदान किसी ज्वलनशील पदार्थ से प्रज्वलित हो रहे थे या फिर बिजली से संचालित हो रहे थे क्योंकि उन रोशनदानों को संचालित करने वाले बिजली के किसी भी प्रकार के संयंत्र या उपकरण किसी भी दिवार पर मौजूद नहीं थे।


इससे भी बड़ा प्रश्न यह था कि उन रोशनदानों को प्रज्वलित किसने किया था क्योंकि वहाँ उनके अलावा और कोई नहीं था। यह कार्य किसी भूत-प्रेत का नहीं हो सकता था, क्योंकि किंवदंतियों के अनुसार भूत-प्रेत आग या रोशनी से दूर ही रहते हैं।


उन रोशनदानों के जलने के बाद, वे सभी ओर अधिक घबरा गए और वहाँ से निकलने के लिए बिलकने लगे।


“ शायद! घर के पीछे बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता हो सकता है! ” अश्वत बोला।


“ चलो चलकर देखते हैं। ” विक्रम ने तुरंत प्रतिक्रिया दिखाई।


घर का पिछला हॉल, मुख्य हॉल से भी बड़ा था। दोनों हॉल के बीच में एक गलियारा घर के दाएँ और बाएँ हिस्से को एक साथ जोड़ता था। चार कदम चौड़ा वह गलियारा बहुत विचित्र था जिसे देखकर वे सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि उस गलीयारे कि दीवारें अनेकों दरवाजों से भरी पड़ी थीं, संभवतः वे कक्ष मात्र एक व्यक्ति के विश्राम के लिए बने हों।


जब वे लोग उस घर के पिछले हिस्से में पहुँचे तो वहाँ कि भव्यता देख दंग रह गए। पिछले हॉल में विशाल और चौड़ी लकड़ी कि सीढ़ियाँ थीं, जो वर्षों से धूल चाट रही थीं, हॉल के एक कोने में एक ड्रिंक काउंटर था जिसमें रखी सारी बोतलें खाली पड़ी थीं। दो मंजिल ऊँची छत के बीचों-बीच बनी प्रिज्म कि भाँति एक पारदर्शी काँच की खिड़की से आती सूर्य की रोशनी, उस हॉल को रोशनदान कर रही थी।


उस हॉल में भी ठीक वैसा ही एक बड़ा सा दरवाज़ा था, जो शायद जंगल के पिछले हिस्से को उस घर से जोड़ता था। उस दरवाजे के बाहर दाएँ और बाएँ तरफ, मानव स्वरुपी गैंडों कि दो मूर्तियाँ रक्षकों कि भाँती एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल लिए खड़ी थीं।


उस द्वार के पटल पर बीच में गैंडे कि एक लंबवत सींग उभरी हुई थी, जो नीचे से ऊपर तक संकरी होती चली गई। उस द्वार को खोलने के लिए कोई हैंडल नहीं था बल्कि गैंडे की सींगों कि आकृति के दो खाँचे बने हुए थे, मानो वह द्वार किसी विशेष प्रयोजन से निर्मित किया गया था, क्योंकि बाकी सभी दरवाजों पर बड़े ही विशिष्ट ढंग से हाथी का मुख उकेरा हुआ था।


“ शायद, यह दरवाजा जंगल के पिछले हिस्से में खुलता हो! ” मेघना उस बड़े से विचित्र दरवाज़े को देखते ही आशाभाव से बोली।


पहले तो वे सभी उन विचित्र गैंडों कि मूर्तियों को देखकर घबराए लेकिन जैसे ही रचित और विक्रम थोड़ी सी हिम्मत करते हुए दरवाज़ा खोलने के लिए आगे बढ़े, वैसे ही उन मूर्तियों में भी अचानक जान फूट पड़ी और दोनों मूर्तियाँ उस द्वार कि रक्षा करने के लिए सजग हो गईं। उन मूर्तियों को ज़िन्दा देख विक्रम और रचित ने तुरंत अपने कदमों को पीछे हटा लिया और उनके पीछे हटते ही वे मूर्तियाँ भी पुनः आपने स्थान पर वापस स्थापित हो गईं। उन्होंने किसी भी प्रकार का कोई हमला नहीं किया। ऐसा अद्भुत चमत्कार देखकर, वे सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि इससे पहले किसी ने भी मूर्तियों को ज़िन्दा होते हुए नहीं देखा था।


रचित पीछे खड़ा रहा लेकिन विक्रम को विश्वास नहीं हुआ इसलिए उसने एक बार पुनः अपने कदमों को आगे बढ़ाकर देखा और जैसे-जैसे विक्रम उस दरवाज़े कि तरफ बढ़ा, वैसे-वैसे उन मूर्तियों की चेतना वापस लौटने लगी और वे दोनों मूर्तियाँ उस दरवाज़े की ओर बढ़ने वाले का प्रतिरोध करने के लिए दरवाजे के सामने खड़ी हो गईं।


अचानक विक्रम को उसकी बहन ने उसे पीछे खींच लिया। वह डरी हुई थी कि कहीं उसके भाई का जीवन संकट में ना पड़ जाए।


“ पागल हो गए हो क्या! अगर वो तुझे कुछ कर दें तो। ” मेघना चिंता से बोली।


“ मुझे लगता है कि इस दरवाज़े के पीछे जरूर कुछ Important है। ” विक्रम अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाते हुए बोला।


“ शायद! वे सभी बातें सच थीं जो हम लोग इस घर के बारे में सुनते आए थे। शायद सच में यह घर भूतिया है! ” रचित ने अपना विचार व्यक्त किया।


“ सही कहा, लेकिन अब हम यहाँ से बाहर कैसे निकलेंगे? ” मेघना ने घबराते हुए पूछा।


डर के कारण पसीने से लथपथ, वे सभी निराश और परेशान दिख रहे थे लेकिन अश्वत उन तीनों से अधिक परेशान था, क्योंकि वह उन सब में सबसे छोटा था और उस बच्चे को वहाँ सांत्वना देने वाला कोई नहीं था, वे तीनों तो अपनी ही धुन में लगे हुए थे। उसे बार-बार यही सोचकर पछतावा हो रहा था कि क्यों वह खिड़की से बाहर देख रहा था, क्यों वह कक्षा से बाहर घूम रहा था, क्यों वह विद्यालय से भागा और क्यों वह उन लोगों के साथ उस मनहूस घर में आया।


“ हमारे माता-पिता हमारे लिए परेशान हो रहे होंगे, वे तो यह भी नहीं जानते कि हम लोग कोटला हाउस के भीतर कैद हो चुके हैं, वे लोग हमें ढूँढेंगे कैसे? उन्हें कैसे पता चलेगा कि हम लोग कोटला हाउस में हैं? ” अश्वत के विचार शब्दों में फूट पड़े।


“ लेकिन उनके हिसाब से तो अभी हम सब स्कूल में ही हैं। वह लोग हमें यहाँ कभी ढूँढने नहीं आएंगे। ” रचित का हृदय भय से भरा हुआ था।


“ अब हम क्या करेंगे? ” मेघना ने विचलित होकर पूछा।


“ अब शायद! वही होगा, जो हम दूसरों के बारे में सुनते आए थे। ” रचित घबराहट में अनाप-शनाप बकने लगा। “ अब हम सब भी इसी घर में मारे जाएंगे। हमारे घर वालों को कभी हमारी लाश तक नहीं मिलेगी। उस यूट्यूबर ने हमें पागल बनाया, वह कभी इस घर में नहीं आया था क्योंकि जो घर उसने अपनी वीडियो में दिखाया था, वो ऐसा नहीं था, ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। ”


“ तु पागल हो गया है क्या? ” विक्रम रचित कि बातों से चिढ़कर बोला।


“ सही कहा, मैं पागल ही था जो पाँच लाख के लालच में यहाँ आ गया। अब तुम लोगों कि वजह से मैं भी इस घर में मारा जाऊँगा। ” रचित अपना होश खो बैठा था।


“ रचित! मेरे भाई! तू शांत हो जा। फालतू बकवास मत कर। ” विक्रम ने गुस्से में कहा।


मेघना ने अपना मोबाइल निकाला और उसके नेटवर्क चेक किए लेकिन अभी तक उसके मोबाइल में नेटवर्क वापस नहीं आए थे।


“ तुम लोगों के फोन में नेटवर्क आ रहा है क्या? ” मेघना ने पूछा। विक्रम और रचित ने अपना मोबाइल चैक किया, पर बेचारे अश्वत के पास मोबाइल नहीं था, वह तो उन सबको ही आस लगाकर देखता रहा, लेकिन सभी के मोबाइल के नेटवर्क लापता थे।


रचित हाथ जोड़कर रुआँसी आवाज़ में भगवान से विनती करने लगा, “ हे भगवान! बस एक बार दरवाजा खोल दो, उसके बाद मैं कभी इस घर कि तरफ मुड़कर भी नहीं देखूँगा। प्लीज़! ”


तभी अचानक उन लोगों को दरवाज़ा खुलने कि एक भूतिया आवाज़ आई, ऐसा लगा जैसे भगवान ने उसकी पुकार सुन ली हो। उस विशाल हॉल का दाएँ तरफ का एक दरवाज़ा खुला, जिसमें से एक खूबसूरत लड़की बाहर निकली, जो बहुत परेशान दिख रही थी। वह लड़की ओर कोई नहीं, बल्कि नैना थी। नैना को देखते ही वे लोग चौंक गए।


जब नैना और रचित ने उस घर में प्रवेश किया था, तो उसके बाद, उस वृद्ध व्यक्ति ने बड़ी ही सतर्कता से बाहर देखा और जब वह इस बात से निश्चिंत हो गया कि उन दोनों के अलावा बाहर अन्य कोई नहीं था, तब उसने दरवाज़ा बंद कर दिया।


“ क्या हुआ? आप बाहर क्या देख रहे थे! ” रचित को उस व्यक्ति पर विश्वास नहीं था और उसके प्रति संदेह के बीज अभी भी उसके मन में पनप रहे थे। 


“ कुछ नहीं। ” उस व्यक्ति ने व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ एक सपाट उत्तर दिया। “ आइए, बैठकर बातें करते हैं। ” उसने हॉल में पड़े एक विशाल टेबल कि तरफ इशारा करते हुए कहा।


नैना कि दृष्टि उस अद्भुत टेबल पर पड़ी जो आम के फल कि आकृति का था। किसी फल कि आकृति वाला टेबल उसने अपने जीवन में पहली बार देखा था, उस टेबल पर लगभग दस-पँद्रह लोग एक साथ भोजन कर सकते थे। उस टेबल के ठीक ऊपर एक विशाल झूमर जो नयनाभिराम सुंदरता से दमक रहा था, जिसपर एक पल के लिए नैना और रचित कि आँखें अटक सी गईं थीं।


टेबल काफी अच्छे से व्यवस्थित था और पूर्ण रुप से अलग-अलग सामग्री से भरा पड़ा था, बीयर कि कई बोतलें, काँच के खाली क्लास व चीनी मिट्टी कि प्लेटें, कई तरह के फल व पेय पदार्थ और विभिन्न प्रकार के पकवान ढके रखे थे। सारे बर्तन ऐसे चमक रहे थे जैसे अभी ही खरीदे गए हों। टेबल पर रखी सबसे आकर्षक चीज़ थी उसके बीचों बीच रखा काँच का जार, जिसमें भरे साफ पानी में कई तरह के रंग बिरंगे फूल साँस ले रहे थे।


उस अत्यंत विचित्र घर को भीतर से देखने के बाद, वे दोनों गहरी सोच में पड़ गए। ऐसा अजीब घर उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था, जहाँ दुनिया भर का सामान केवल एक टेबल पर लाकार सजा दिया गया था, लेकिन वहीं दूसरी ओर पूरा घर मानो उपेक्षित पड़ा था।


उस घर में अधिक सामान नहीं था। एक टेबल और उससे सटी बारह कुर्सियों व उसके ऊपर लटक रहे अति आकर्षक झूमर, जो हवा में झूलता प्रतीत हो रहा था, के अलावा पूरा हॉल खाली पड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे उस व्यक्ति ने खास तौर पर उन दोनों के लिए ही इतनी व्यवस्था और तैयारी की थी।


घर में पेंट कि महक अभी भी ताज़ा थी, दिवारें केसरिया रंग से चमक रही थीं, तभी नैना का ध्यान एक विचित्र बात पर गया कि दीवारों पर न तो किसी प्रकार कि कोई खिड़की थी और न ही कोई पेंटिंग। वे खिड़कियाँ जो उस घर की बाहरी दीवार पर लगी हुई थीं, बड़े बड़े पर्दों से ढकी हुई थीं। श्रृंगार रहित उस घर में सब कुछ सूना-सूना सा लग रहा था।


रचित और नैना, दोनों एक-दूसरे को घर कि विचित्रता का कनखियों से विस्मय व्यक्त कर रहे थे कि तभी वह आदमी आगे बढ़कर टेबल के नीचे से एक कुर्सी बाहर खींचते हुए बोला, “ नैना! आप यहाँ आकर बैठिए। ”


यह शालीनता केवल नैना के लिए थी, ऐसा लग रहा था जैसे रचित से उसकी कोई पुरानी दुश्मनी थी। यहाँ तक कि उसने रचित को बैठने के लिए भी नहीं कहा इसलिए रचित अपना कैमरा लिए चुपचाप खड़ा रहा। मगर वह आदमी खुद नैना के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया। वह टेबल के उस सिरे पर बैठा जिसके कारण उसका मुख नैना कि तरफ रह सके।


“ आपने अपने घर का सारा सामान बेच दिया क्या! ” नैना इधर-उधर देखते हुए विस्मयादिबोधक स्वर में बोली।


“ बेचा तो नहीं है, बस कुछ दिनों के लिए छुपा दिया है। ” सुमित ने उत्तर दिया।


“ मतलब! ” नैना ने उनकी बात ना समझते हुए पूछा।

“ पेंट! घर में पेंट हुआ है, इसलिए हॉल खाली करना पड़ा। वैसे... कितने समय बाद मिल रहे हैं ना हम! तीन साल बीत गए। कभी-कभी प्रेम बड़ी प्रतीक्षा करवाता है। ” उस व्यक्ति ने नैना को घूरते हुए बोला। जबकि नैना के अनुसार वह नैना से तीन दिन पहले ही मिला था।


“ आप अच्छा मज़ाक करते हैं! ” नैना हल्के से मुस्कुराते हुए बोली। सुमित भी नैना को देखकर मुस्कुराने लगा। लेकिन रचित को वह आदमी कुछ ठीक नहीं लग रहा था।


“ हाँ! मैं काफी देर से एक बात सोच रही थी। ” नैना अचानक झटके से बोली। “ आपने बाहर दरवाज़े पर एक विचित्र सूचना लिखी हुई है, वो किसलिए? ”


“ आप तो जानती ही हैं कि... ” सुमित ने बोलना शुरू ही किया था कि अचानक नैना बीच में टोकते हुए बोली, “ एक मिनट! क्या हम आपकी बातचीत को कैमरे पर रिकॉर्ड कर सकते हैं? ”


“ ज़रुर! क्यों नहीं! जो आपका काम है आपको ज़रूर करना चाहिए। ” उस व्यक्ति ने अपनी सहमति जताने में तनिक भी देर नहीं लगाई, उसे इस बात कि कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि वह जानता था कि वे लोग अब दुबारा कभी भी बाहर का सूरज देखने वाले नहीं थे और ना ही वह रिकॉर्डिंग कभी उस घर से बाहर जाने वाली थी।


रचित ने अपना कैमरा सेट करने के लिए उस टेबल पर थोड़ी जगह खाली करके, अपना कैमरा सही से स्थापित कर, रिकॉर्डिंग शुरू कर दी और पुनः किसी स्तंभ कि भाँति खड़ा हो गया।


“ तुम खड़े क्यों हो? बैठ जाओ। ” नैना के ऐसा कहते ही रचित उस आदमी को घूरते हुए, नैना कि बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया।


“ हाँ, तो आप क्या कह रहे थे? लेकिन सबसे पहले आप हमारे दर्शकों के लिए अपना नाम बता दीजिए। ” नैना ने हाँलही में एक छोटे मोटे न्यूज़ चैनल के लिए पत्रकारिता शुरू की थी। इसलिए वह उस घर से जुड़ी एक भी बात को मिस नहीं करना चाहती थी।


“ मेरा नाम ‘ सुमित सक्सेना ’ है और मैं इस कोटला हाउस का मालिक हूँ। ” सुमित ने केतली से तीन प्यालों में चाय डालने के बाद, एक कप नैना और एक कप रचित कि तरफ बढ़ाते हुए बोलना शुरू किया और इतना बोलते ही उसने अपना कप उठाकर कर्कश भरी आवाज़ के साथ होठों से चाय सुड़ोकना शुरु कर दिया।


सुमित को ऐसी विचित्र आवाज़ के साथ चाय पीते देख, नैना और रचित एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे। सुमित ने नैना को भी चाय पीने का इशारा किया। रचित ने तो अभी अपना कप होठों से लगा भी नहीं पाया था कि उसने देखा कि नैना ने चाय का एक घूँट पीते ही, वापस अपने कप में उगल दिया।


“ क्या हुआ? ” रचित ने अकबकाकर नैना से पूछा।

“ यह चाय है या मिर्च का शरबत! ” नैना भौंहें चढ़ाकर बोली। “ इससे अच्छा तो आप मुझे सिधा मिर्च खिला देते। ” 


नैना कि बात सुनते ही रचित ने अपनी चाय पीकर देखी और फिर चाय पीने के बाद उसने भी वही किया जो नैना ने किया था। रचित उस आदमी पर भड़कता, उससे पहले ही वह अपनी गलती कि माफी माँगने लगा। उसकी उम्र के कारण रचित अपना गुस्सा शांत कर चुपचाप अपना जबड़ा दबाए बैठा गया, वह नैना का इंटरव्यू खराब नहीं करना चाहता था।


“ माफ करना! लेकिन मेरी पत्नी ऐसे ही मसाला चाय बनाती थी और मैं बरसों से ऐसी ही चाय पीता आ रहा हूँ, इसलिए मुझे इसकी आदत है। आपको यह अच्छी नहीं लगेगी इस बात पर मैंने ध्यान नहीं दिया, मुझे माफ करना। आप... आप ये पीजिए, आपको अच्छा लगेगा। ” उसने नैना को एक काँच के गिलास में संतरे का जूस डाल कर दिया।


“ मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि आप ऐसी घटिया चाय इतने आराम से पी रहे हैं। कोई अपनी पत्नी से इतना प्यार कैसे कर सकता है! ” नैना अपना गुस्सा शांत करके बोली।


“ वैसे... आपकी पत्नी हैं कहाँ? ” 


“ अब वो इस दुनिया में नहीं है। वो सालों पहले गुज़र गई। ” उस व्यक्ति ने बड़े निराश मन से कहा।


“ इसलिए आप आज भी उनकी याद में ऐसी चाय पीते हैं। काश! मेरा मंगेतर भी मुझे ऐसा ही प्यार करे। ” नैना अपने भविष्य के बारे में सोचते हुए बोली।


“ प्यार कि कोई सीमा नहीं होती, नैना! इसके लिए तो पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है। मेरे जैसा प्यार तुमसे कोई नहीं कर पाएगा लेकिन मैंने जिसको भी प्यार किया, उसको खो दिया। ” उस व्यक्ति कि बातें सुनकर नैना असमंजस के साथ मुस्कुरायी, उसे यही नहीं समझ में आ रहा था कि सुमित केवल अपने प्यार का उदाहरण दे रहे थे या फिर परोक्ष रूप से उसे प्रपोज कर रहे थे।


“ मुझे लगता है कि हम अपनी दिशा से भटक चुके हैं और आपने अभी भी मेरे पहले प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। ” नैना थोड़ा गंभीरता से बोली।


“ मेरे इस घर को कई बार, लोग अपने गलत मनसूबों के लिए प्रयोग करने का प्रयास करते हैं। कई बार पुलिस से छुपने और आश्रय की तलाश में चोर, आतंकवादी और कई खतरनाक लोग इस घर में घुस आते हैं और आप तो जानती ही हैं, मेरे इस घर के बारे में लोग क्या-क्या बातें करते हैं, लोग इस घर को भूतिया समझते हैं इसलिए लोगों को ओर डराने के लिए मैंने बाहर उस विशेष सूचना को लिखा है, ताकि कोई भी मेरे घर में यूँ ही घुसता न चला आए, लेकिन फिर भी कुछ निडर और उद्दंड लोग नहीं मानते। एक बार तो दो आतंकवादी घर में घुस आए थे, जिन्हें मैंने पुलिस के हवाले कर दिया था। ”


“ लेकिन ऐसी कोई खबर हमने तो आज तक नहीं सुनी। ” नैना ने अविश्वास के साथ पूछा।


“ ये बात बहुत पुरानी है। ” व्यक्ति ने व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ उत्तर दिया।


“ इस घर का नाम ‘कोटला हाउस’ कैसे पड़ा? ” नैना ने अपना अगला प्रश्न पूछा।


“ मैं इस प्रश्न का उत्तर तभी दूँगा, जब आप अपना ग्लास खाली करेंगी। ” सुमित ने मज़ाक में कहते हुए, नैना पर संतरे का जूस पीने के लिए दबाव डाला। नैना को कुछ संदेह हुआ, लेकिन वो संदेह उसकी जिज्ञासाओं से बड़ा नहीं था और उस आदमी कि एक अच्छी मेज़बानी समझकर, नैना ने फटाफट पूरा ग्लास खाली कर दिया।


“ अब बताइए! इस घर का नाम ‘कोटला हाउस’ कैसे पड़ा? ” नैना ने दृढ़ता से पूछा।


“ अठाहरवीं शताब्दी में जब आदित्य नारायण कोटला ने इस घर का निर्माण करवाया था, तब उन्होंने अपने नाम पर ही इस घर का नाम कोटला हाउस रखा था। ” उस आदमी ने उत्तर दिया।


“ उन्होंने इस घर का निर्माण शहर से इतनी दूर इस जंगल में क्यों करवाया था। ” नैना ने फिर से अपना एक प्रश्न पूछा।


“ अब यह तो उनका मन था, हम क्या जाने और आप लोग तो कुछ खा-पी ही नहीं रहे हैं। बातें तो चलती रहेंगी, यह लीजिए आप एक ग्लास नारियल का जूस पीजिए, बहुत अच्छा बना है। ” सुमित नारियल के जूस से भरा हुआ, ग्लास जबरदस्ती नैना के मुँह तक ले जाकर बोला।


“ लाइए यह मैं पी लेता हूँ। ” रचित उस आदमी के हाथ से ग्लास छीनते हुए बोला। रचित कि उस हरकत से उसकी आँखें चढ़ गईं और माथे पर बल पर गए, क्रोध के भाव स्पष्ट रुप से प्रकट होने ही वाले थे‌ कि अचानक नैना का प्रश्न सुनकर वह फिर से प्रसन्न हो उठा।


“ अह्... वॉशरूम किस तरफ है? ” नैना ने संकोच से पूछा। सुमित कि खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा, मन ही मन वह बहुत प्रसन्न हुआ। जो वह चाहता था, वही हो रहा था। भले ही रचित ने उसके लक्ष्य में बाधा डालने का प्रयास किया था, लेकिन वह आदमी, नैना और रचित, दोनों को बिना किसी बल के अलग करना चाहता था। यही उनकी नियति थी और नैना के जीवन कि नई शुरुआत थी।


सुमित चाहता था कि नैना खुद इस घर में रह कर, यहाँ के रहस्यों को प्रत्यक्ष रुप से जाने और समझे। 


“ दाएँ या बाएँ किसी भी तरफ चले जाओ। ” सुमित ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।


नैना ने दोनों तरफ देखा, दोनों दरवाजों का रंग और उस पर बनी विचित्र आकृतियाँ एक समान थीं। उन आकृतियों के बीचों बीच में एक प्यारे से हाथी का मुख बड़े ही अद्भुत तरीके से उकेरा गया था।

नैना ने अधिक न सोचते हुए, दाएँ तरफ के वाशरूम कि ओर प्रस्थान किया।


“ नैना! ” सुमित ने अचानक नैना को पीछे से आवाज़ दी। “ फिर मिलेंगे। ” उसने नैना कि आँखों में आँखें डालकर कहा, लेकिन नैना उसकी बात पर ध्यान न देते हुए, हल्के से मुस्कुराती हुई, फटाफट वाॅशरूम चली गई।


“ तू उससे प्यार करता है? ” सुमित ने रचित से पूछा। अब केवल वे दोनों ही उस हॉल में अकेले बैठे थे।


“ आप से मतलब। ” रचित ने अकड़ कर जवाब दिया।


पहले तो सुमित मुस्कुराया और फिर बोलना शुरु किया, “ यह लड़की बस तेरा फायदा उठा रही है, सच कह रहा हूँ। आज तक इसने, किया क्या है तेरे लिए? लेकिन तू... तू इसके बस एक इशारे पर कुत्ते की तरह अपनी दुम हिलाने लगता है, पर यह तेरे लिए क्या करती है? काम निकलने के बाद उसी दुम को अपने पैर से कुचल देती है। समझा! ”


उसकी बातें सुनने में बड़ी कड़वी और क्रोधित कर देने वाली थीं, लेकिन रचित विचार कर रहा था कि वह आदमी उससे ऐसी बातें कर क्यों रहा था? और उसे नैना के खिलाफ क्यों भड़का रहा था?


“ बस! अब एक शब्द भी नैना के खिलाफ बोला तो मैं तुम्हारी उम्र का लिहाज भूल जाऊँगा। ” रचित ने आवेश में आकर कहा।


“ देखो, मैं बस तुम्हारी भलाई चाहता हूँ और मुझे वॉशरूम जाना है, तो मैं अभी आता हूँ। ” सुमित इतना कहते ही अपनी कुर्सी से उठकर चल दिया।


अचानक उसे कुछ स्मरण आया और उसने वापस आकर टेबल से एक प्लेट को उठाया जिसमें सिंगोरी नामक विशेष मिष्ठान रखा हुआ था, जो उसे बहुत प्रिय था। उस प्लेट को उठाकर, रचित से “ फिर मिलेंगे! ” कहता हुआ, वह बाएँ तरफ के वॉशरूम कि ओर चल दिया। 


रचित कुछ बोलने को हुआ लेकिन शब्द उसके मुँह में ही रह गए। उसके लिए यह बहुत अजीब बात थी कि वह आदमी उस मिठाई को खाने के लिए वॉशरूम में ले गया था। उसने विचार किया कि जब तक सुमित वॉशरूम से बाहर आएगा, तब तक नैना भी बाहर आ जाएगी। वे लोग अपना इंटरव्यू पूरा करके वहाँ से फटाफट निकल जाएंगे। सुमित रचित के मन में नैना के खिलाफ बीज बोकर जा चुका था।


सुमित के वॉशरूम जाते ही रचित की नज़र उसके कप पर पड़ी जिसमें अभी भी कुछ चाय शेष बची थी। उसे विश्वास नहीं था कि कोई व्यक्ति इतनी तीखी चाय इतनी सरलता से कैसे पी सकता था, इसलिए उसने सुमित के कप कि चाय पीकर देखी, “ ये तो मीठी है! ” वह स्वयं से विस्मयकारी स्वर में बोला।


“ यह असंभव है। ” उसने मन में विचार किया। रचित बहुत हैरान था, ऐसी विचित्र घटना उसके साथ पहली बार घटी थी। उसने अपनी आँखों के सामने सुमित को एक ही केतली से तीनों कप में चाय डालते हुए देखा था, लेकिन केवल एक कप कि चाय मीठी और बाकी कपों कि चाय जुबान जला देने वाली कैसे हो सकती थी।


लगभग आधा घण्टा बीत गया लेकिन न तो नैना बाहर आई और न ही सुमित बाहर आया, उस घर में जो एक बार किसी दरवाज़े से किसी कक्ष में प्रवेश करता था, तो वह उसी दरवाज़े से कभी भी बाहर नहीं आता था। 


नैना उस घर के चक्रव्यूह में फंस चुकी थी, लेकिन इस बात से अनभिज्ञ रचित ने परेशान होकर, चिंतित स्वर में, नैना के वॉशरूम के बाहर उसे आवाज़ देना शुरु कर दिया, लेकिन उसे अंदर से नैना का एक बार भी कोई उत्तर नहीं मिला।


अंदर नैना के कानों में भी जैसे रुई घुसी पड़ी थी, उसे भी रचित की हल्की सी भी आवाज़ सुनाई तक नहीं दी, क्योंकि उस चमत्कारी घर में किसी की भी आवाज़ उन दरवाजों के आर पार नहीं जाती थी। रचित ने कई बार दरवाज़ा खटखटाया लेकिन नैना को किसी भी प्रकार की कोई भी आवाज़ नहीं सुनाई दी।


“ पहले तो चाय के नाम पर मिर्च पिला दी और फिर जूस पर जूस। ” नैना शीशे के सामने खड़ी होकर हाथ धोते हुए स्वयं से बड़बड़ा रही थी। “ घूर-घूर के तो ऐसे देख रहा था, जैसे खा ही जाता! ” 


लड़कियाँ जब भी शीशे में अपना चेहरा देखती हैं, तो उन्हें अपने चेहरे पर कोई ना कोई कमी अवश्य दिखाई दे जाती है। नैना ने अपनी आँख के नीचे से, हल्का सा काजल साफ किया, जो किसी भी अन्य व्यक्ति के लिए ठीक ही था और अपने बाल ठीक किए।


तभी उसे अपने होठों पर लिप बाम लगाने की इच्छा हुई, जो उसके पर्स में रखा हुआ था, तब उसका ध्यान अपने पर्स पर गया, जो वह गाड़ी में ही भूल आई थी।


“ मेरा पर्स तो गाड़ी में ही रह गया! ” वह स्वयं से अपने माथे को पीटते हुए बोली।

“ मेरा मोबाइल! ” उसने झटके से अपनी जेब पर हाथ मारा, खुशखबरी यह थी कि कम से कम उसका मोबाइल उसके पास था, क्योंकि वह अपना मोबाइल भी कभी-कभी अपने पर्स में ही रखती थी, जब उसने अपना मोबाइल चालू करके देखा, उसके नेटवर्क कहीं छूमंतर हो चुके थे।


कुछ देर बाद, उसने अपने बाल-वाल ठीक करके बाहर निकलने के लिए दरवाज़ा खोला, लेकिन पहली बारी में दरवाज़ा नहीं खुला। उसने फिर से प्रयास किया, लेकिन फिर से वही हुआ।


उसने कई बार झटके से दरवाज़े को खींचकर खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाज़ा खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था। नैना को लगा कि रचित बाहर से दरवाज़े कि कुण्डी लगा कर उसके साथ मज़ाक कर रहा था।


“ रचित दरवाज़ा खोलो। ” नैना दरवाज़ा खड़खड़ाते हुए बोली।


लेकिन काफी देर बाद भी रचित द्वारा दरवाज़ा न खोलने के कारण, उसने संदेह भरे स्वर से रचित को पुकारा, “ रचित! ”


किंतु रचित ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया, वह परेशान होकर जोर-जोर से रचित को पुकारते हुए दरवाज़ा पीटने लगी। ऐसे ही लगभग एक घण्टा बीत गया, लेकिन न तो रचित ने दरवाज़ा खोला और न ही अपने बाहर होने का कोई संकेत दिया। नैना लगातार अपने मोबाइल के नेटवर्क भी चेक करती रही, उसने नेटवर्क ढूँढ़ने की कोशिश में उस वॉशरूम का एक भी कोना नहीं छोड़ा, लेकिन नेटवर्क वापस आने का नाम ही नहीं ले रहे थे।


दरवाज़ा पीटते-पीटते उसके हाथ दुखने लगे, इसलिए उसने दरवाज़े को लात मार-मारकर तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन उसके प्रहार में इतना बल नहीं था कि वह दरवाज़ा तोड़ सके।


कुछ देर बाद वह निराश होकर उस दरवाज़े के सहारे बैठ गई और डरावने विचारों ने उसके मन को परेशान करना शुरू कर दिया, उसने सोचा - कहीं रचित को कुछ हो तो नहीं गया! अगर वह बाहर होता तो आवाज़ जरूर देता, लेकिन साला यह दरवाज़ा खुल क्यों नहीं रहा है, कहीं उस आदमी ने रचित के साथ कुछ गलत तो नहीं कर दिया। पता नहीं, यह मुझे कब तक बंद रखेगा। आखिर क्या मकसद हो सकता है उस बुड्ढे का? या फिर कहीं वह बुड्ढा ही इस घर का भूत तो नहीं, नहीं! नहीं! ऐसा नहीं हो सकता। मैं कुछ ज्यादा ही सोच रही हूँ।


सोचते-सोचते कुछ घण्टों के बाद उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह झपकियाँ लेने लगी, जब भी वह होश में आती हर बार द्वार खोलने का प्रयास अवश्य करती, नैना कि पूरी रात उस वॉशरूम में ही कट गई। प्रातः अचानक उसकी आँख खुली और आँखें खुलते ही उसने सबसे पहले उस दरवाज़े को खोलकर देखा, जो उसकी चिंता का सबसे बड़ा कारण था।


अचानक बिना किसी मेहनत के, पहले ही प्रयास में दरवाज़ा खुल गया, उसने विस्मय से धीरे-धीरे दरवाज़ा खोला।


उसने अपने सामने, एक बड़े से हॉल में स्कूल के कपड़े पहने, कुछ बच्चों को खड़ा देखा, नैना आश्चर्य से उन बच्चों को देखती हुई, वॉशरूम से बाहर आई।


“ माफ करना दीदी! ” मेघना ने नैना को देखते ही उसे कोटला हाउस का मालिक समझ लिया और उससे माफी माँगते हुए, फटाफट बोलती हुई, वहाँ से बाहर जाने का आग्रह करने लगी।


“ हम लोग आप के घर में बिना पूछे घुस आए, हमें नहीं पता था कि यह घर आपका है। लेकिन अब हम लोग बाहर जाना चाहते हैं, तो प्लीज़ आप दरवाज़ा खोल दीजिए। हम तो बस… ”


वह ओर कुछ भी कहती लेकिन नैना को उसकी बात समझ ही नहीं आ रही थी इसलिए नैना उसे टोकते हुए बोली, “ यह घर मेरा नहीं है और मैं तो खुद कई घण्टों से इस बाथरूम में फसी हुई थी। ” नैना ने उस दरवाज़े कि तरफ इशारा किया, जिस दरवाज़े से वह बाहर आई थी।


“ मुझे तो ऐसा लगने लगा था जैसे मैं हमेशा के लिए इस बाथरूम में कैद हो गई हूँ, दरवाज़े को पीटते पीटते मेरे हाथ दुखने लगे, चिल्लाते चिल्लाते मेरा गला दर्द करने लगा, लेकिन किसी ने भी दरवाज़ा नहीं खोला। क्या तुम लोगों ने दरवाज़ा खोला? ” नैना ने पूछा। उन सभी ने एक साथ अपने सिर ना में हिलाए।










“ यह जगह कौन सी है? और तुम लोग कौन हो? और रचित कहाँ है? ” नैना ने प्रश्नों की बौछार लगा दी। उसने बड़ी हैरानी से अपनी दृष्टि इधर-उधर घुमाई, किसी खंडहर की बातें यहाँ वहाँ मकड़ियों के जाले और धूल-धूसरित ऐसा लग रहा था जैसे वह उस हॉल को पहली बार देख रही थी। जिस हाॅल को छोड़कर वह वॉशरूम गई थी, यह वह हाॅल नहीं था। वो झूमर और टेबल कहीं अदृश्य हो गया था, उसे उसका मित्र ‘ रचित ’ और उस घर का मेज़बान ‘ सुमित ’ कहीं नहीं दिखाई दिए।








“ मेरा नाम रचित है! ” रचित ने उत्तर दिया, वह मन में यही विचार कर रहा था कि वह लड़की उसे कैसे जानती थी। मेघना ने यह सोचते हुए रचित को विस्मय से देखा की उस लड़की को भला रचित से क्या काम।


“ तुम नहीं! मेरा दोस्त, उसका नाम भी रचित है। वो‌ मेरे साथ इस घर में आया था और अब न जाने कहाँ गायब हो गया! ”


उसकी दृष्टि उन अद्भुत गोल पेट वाली गैंडों कि मानव स्वरूपी योद्धा मूर्तियों और उस विशाल द्वार पर पड़ीं, जिस पर गैंडे कि एक विशाल सींग उभरी हुई थी।


“ ये सब क्या है? ” नैना ने आश्चर्य से पूछा।


“ क्या आपको नहीं पता? ” मेघना ने पूछा। नैना ने ना में सिर हिलाया।


“ कुछ देर पहले हमने इन मूर्तियों को जिंदा होते हुए देखा था। ” मेघना ने नैना को आश्चर्य से बताया।


नैना ने मेघना की बात पर विश्वास करने के लिए बाकी बच्चों को देखा, बाकियों ने भी सहमति में अपना सिर हिला दिया।


“ अच्छा मज़ाक करते हो तुम लोग। ” नैना अविश्वास से बोली।


“ पर आप कौन हैं? ” अश्वत ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा, जो इतनी देर से कोई नहीं पूछ रहा था। तभी अचानक नैना की दृष्टि अश्वत पर आकर ठहर गई।


“ आपको बाथरूम में बंद किसने किया था और आप की आँखों पर पट्टी बँधी थी क्या, जब आपको उस बाथरूम में बंद किया जा रहा था? ” मेघना ने नैना के विस्मित हाव भाव देखकर पूछा।


नैना ने मेघना के प्रश्न पर ध्यान ही नहीं दिया, बल्कि उसका पूरा ध्यान तो अश्वत पर टिका हुआ था, वे सभी नैना को घूर रहे थे क्योंकि नैना लगातार अश्वत को घूर रही थी, उसकी दृष्टि से अश्वत असहज महसूस करने लगा।


भले ही नैना, रचित, विक्रम और मेघना को जानती तक नहीं थी, लेकिन पता नहीं क्यों वह काफी देर तक अश्वत को घूरते हुए याद करती रही कि उसने उस लड़के को पहले भी कहीं देखा था और वह उसे अच्छे से जानती थी।


“ अश्वत! ” नैना बहुत हैरान हो कर बोली। उसे झटके से याद आया और याद आते ही, उसकी प्रतिक्रिया ऐसी थी जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो। उसने अश्वत को उसके स्कूल के कपड़ों से पहचान लिया। उसकी यादों में अश्वत का चेहरा थोड़ा धुंधला पड़ चुका था, लेकिन अब यह स्पष्ट था कि उसके सामने खड़ा लड़का अश्वत ही था। उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अश्वत ही था।


“ तुम अश्वत ही हो ना? ” नैना ने आश्चर्यचकित भाव से पुष्टि करते हुए पूछा। अश्वत ने हाँ में अपना सिर हिलाया, उसके चेहरे पर भी विस्मय का भाव प्रकट हो रहा था क्योंकि वह नहीं जानता था कि वह लड़की उसे कैसे जानती थी।


“ नहीं, नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता! ” नैना स्वयं को समझाते हुए बोली मानो उसके सामने एक ऐसा सत्य था जो उसे दिख तो रहा था लेकिन वह उस सत्य पर विश्वास नहीं कर पा रही थी।


“ आप मुझे देख कर इतना हैरान क्यों हो रही हैं और क्या नहीं हो सकता? और आप मुझे कैसे जानती हैं? ” अश्वत ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की। यही प्रश्न बाकी लोगों के मन में भी उठ रहे थे।


“ मेरा नाम नैना है, तुम्हें याद है! मैं तुम्हारी क्लासमेट थी। ” नैना ने उत्साहित होकर उत्तर दिया।


“ नैना! ” अश्वत हल्के स्वर में बोला। “ थी नहीं, है। नैना मेरी क्लासमेट है और आप मज़ाक मत कीजिए। आप कौन हैं सच सच बताइए? ” अश्वत ने नैना कि बात का प्रतिरोध करते हुए कहा।


आश्चर्य के भाव उन सब के चेहरे पर उभरते नज़र आ रहे थे, अभी तक तो केवल उस घर कि माया को समझना मुश्किल था, लेकिन अब नैना की उलझन भरी बातें भी उन सबको विचलित कर रही थीं।


“ ये उसी लड़की कि बात कर रही हैं न, जो तेरे साथ तेरी क्लास में पढ़ती है? ” रचित ने अश्वत से पुष्टि करते हुए पूछा। अश्वत ने हाँ में अपना सिर हिलाया लेकिन वह इस विचार में डूबा हुआ था कि उस लड़की कि उम्र नैना से बहुत अधिक ‌थी, फिर वह स्वयं को नैना बताकर, उन लोगों से कौन सा लाभ अर्जित करना चाहती थी।


“ मैं सच ही कह रही हूँ, मेरा नाम नैना गोस्वामी है, मुझे अच्छे से याद है वो दिन, जिस दिन तुम स्कूल से ही लापता हो गए थे। ” नैना ने अश्वत की आँखों में देखते हुए कहा।


“ उस दिन पाण्डे सर ने पूरी क्लास के सामने तुम्हें डाँट कर, तुम्हें क्लास से बाहर निकाल दिया था और उसी दिन से तुम हमेशा हमेशा के लिए लापता हो गए। तुम्हारे साथ-साथ स्कूल के तीन विद्यार्थी ओर भी थे जो उसी दिन गायब हुए थे, शायद तुम तीनों वही हो! फिर कुछ दिन बाद, तुम्हारे बारे में पूछताछ करने स्कूल में पुलिस भी आई थी। लेकिन तुम्हारे बारे में कभी किसी को कुछ पता नहीं चला और तुम्हें ढूँढ़ने निकले दो पुलिस वाले भी लापता हो गए। फिर बाद में इस केस को बंद करवा दिया गया। ” नैना कि बातें सुनकर अश्वत के अलावा किसी पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे सभी नैना को अविश्वास से घूर रहे थे।


“ हमें पागल समझा है क्या? ” विक्रम ने नैना से अड़ियल स्वर में कहा। “ आपकी कहानी अच्छी है, लेकिन आपकी कहानी का कोई मतलब नहीं बनता क्योंकि अगर आप वही लड़की हैं जो आप बता रहीं हैं, तो आपकी उम्र भी इस चूज़े के बराबर होनी चाहिए थी। ” विक्रम ने अश्वत कि तरफ संकेत करते हुए कहा।


“ विश्वास तो मुझे भी नहीं हो रहा है क्योंकि उस दिन से अब तक लगभग आठ साल बीत चुके हैं, लेकिन तुम लोगों में एक परसेंट भी कोई बदलाव नहीं आया है, तुम अभी भी बिल्कुल वैसे ही दिख रहे हो जैसे आठ साल पहले थे। ” नैना ने अश्वत को हैरानी से देखते हुए कहा।


“ कमाल है! अभी हमें इस घर में आए आठ मिनट नहीं हुए और आपके हिसाब से आठ साल भी बीत गए। ” विक्रम ने उपालंभ भरते हुए कहा।


“ मेरा विश्वास करो, मैं नैना ही हूँ और तुम लोगों के लापता हुए आठ साल बीत चुके हैं। मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती, जिस दिन मेरा करीबी दोस्त गायब हो गया था। पाण्डे सर हमें उस दिन बेरोजगारी के बारे में पढ़ा रहे थे और उन्होंने तुमसे इसी बारे में प्रश्न भी पूछा था, जिसका तुम उत्तर नहीं दे पाए थे ‌और उसके बाद उन्होंने तुम्हें क्लास से बाहर निकाल दिया था। मैंने तुम्हें कागज पर लिखकर भी बताया था, तुम्हें क्या जवाब देना है लेकिन तुम पूरा पढ़ पाते उससे पहले ही पाण्डे सर तुम पर फिर से भड़क उठे थे। ”


“ पर! पर, आप मेरी वाली नैना, मतलब! आप नैना कैसे हो सकती हैं। नैना तो सिर्फ पंद्रह साल कि है। ” अश्वत ने बड़ी ही हैरानी से पूछा क्योंकि उसे अब नैना कि बात पर कुछ कुछ विश्वास होने लगा था,‌ उसे दूसरों पर विश्वास करने में अधिक समय नहीं लगता था।


“ प्रश्न तो यही है कि आठ साल के बाद भी तुम लोगों कि उम्र में कोई बदलाव क्यों नहीं आया? कहीं तुम लोग भ, भू, भूत तो नहीं! ” नैना स्वयं उन लोगों को भूत मानकर अपना अंतिम वाक्य डरते-डरते बोली, क्योंकि वे भूत ही होते हैं जिनकी उम्र कभी नहीं बढ़ती।


अचानक से वह‌ उस घर कि भूतिया अफवाहों के कारण, उन लोगों को भूत समझकर डरने लगी, जबकि उसे भूत-प्रेतों पर विश्वास तक नहीं था।


“ एक मिनट! ” विक्रम अचानक चीख पड़ा। उसकी चीख से नैना डरकर अपने स्थान से थोड़ा पीछे हट गई। “ राम छोटा रह गया, सीता बाड़ी हो गई और वनवास के आठ साल भी हो गए, यहाँ रामायण चल रही है! और हम लोग आपको भूत नज़र आ रहे हैं क्या? ” विक्रम को नैना पर तनिक भी विश्वास नहीं हुआ।


“ अश्वत तू इनसे कोई ऐसी बात पूछ, जो सिर्फ तू और नैना ही जानते हों। ” विक्रम ने अश्वत से कहा। लेकिन अश्वत उससे कुछ पूछता, उसे पहले नैना ही डर कर सब कुछ बताने लगी।


“ तुम्हें याद है! तुम मुझे प्यार से ‘नैनू’ बुलाते थे, तुमने 2016 को वैलेंटाइन डे पर मुझे प्रपोज़ भी किया था और यह बात तो सिर्फ हम दोनों ही जनते हैं। ” नैना ने तुरंत ऐसी बात बोली जिससे अश्वत को पूरा विश्वास हो गया कि वह नैना ही थी। लेकिन वह इतनी बड़ी कैसे हो गई थी, यह बात अभी भी एक रहस्य बनी हुई थी।


नैना कि बात सुनने के बाद, मेघना ने अश्वत को ऐसे देखा जैसे उस भोले चेहरे के पीछे, कोई बहुत चालाक व्यक्ति छुपा हो। अश्वत उन सभी के सामने असहजता महसूस कर रहा था क्योंकि वह ऐसी बातें सबसे छुपा कर रखता था, उसे डर था कि कहीं रचित उसका यह रहस्य उसके माँ-बाप के सामने न खोल दे। जबकि रचित ने यह बात सुनने के बाद, अश्वत कि पीठ थपथपाई।


“ लेकिन फिर भी हम आप को नैना कैसे मान लें? रचित ने अविश्वास से पूछा। “ क्योंकि हो सकता है कि नैना ने ही आपको ये सब बताया हो और वैसे भी लड़कियों के पेट में कोई बात नहीं रुकती और आठ साल बीतने वाली बात तो सच हो ही नहीं सकती। ” 


इधर नैना, उन‌ सभी को आत्माएँ समझकर, यह उम्मीद कर रही थी कि अब वह आत्माएँ उसे वहाँ से सही सलामत जाने देंगी, लेकिन उन बच्चों के प्रश्न समाप्त ही नहीं हो रहे थे।


“ लेकिन मुझे तुम लोगों से झूठ बोलकर क्या फायदा? ” नैना ने झुंझलाकर कहा।


उसने मन में विचार किया, “ ऐसा तो नहीं कि इन्हें अभी भी मेरी बातों पर विश्वास न हुआ हो, कहीं रचित के गायब होने के पीछे… कहीं इन आत्माओं ने रचित को मार तो नहीं डाला। नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। लेकिन वो आदमी और रचित अचानक गायब कहाँ हो गए? ” 


दोनों तरफ समय अविश्वास का कारण बना हुआ था, एक तरफ नैना के लिए आठ साल बीत चुके थे, जबकि वे बच्चे अभी कुछ देर पहले ही अपने विद्यालय से भागकर उस घर में पहुँचे थे। नैना को अपनी कल्पनाओं के कारण रचित कि चिंता सताने लगी इसलिए उसने घबराते हुए पूछा, “ अच्छा, त्… तुम लोग मुझे बता सकते हो कि रचित कहाँ है? ”


“ आप पहली इंसान हैं जिसे हमने इस घर में अभी तक देखा है, क्योंकि हमें तो लगा था यह घर खाली पड़ा होगा। ” मेघना ने बोलना शुरू किया।


“ लेकिन हमने सोचा भी नहीं था की हम लोगों के अंदर आने के बाद अचानक मैन डोर अपने आप बंद हो जाएगा, हमने उसे खोलने की बहुत कोशिश की‌ पर वो दरवाज़ा नहीं खुला और फिर जब हम इस दरवाज़े के पास पहुँचे तो हमें रोकने के लिए, ये मूर्तियाँ ज़िन्दा हो गईं, जैसे इस दरवाज़े के पीछे अलादीन का चिराग छिपा हो। ” मेघना बिना रुके एक साँस में बोलती चली गई, अभी तक उन बच्चों को नैना पर विश्वास नहीं था, लेकिन मेघना कि बातें सुनने के बाद, अब नैना को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।


“ अभी तक हमनें इस घर को ठीक से देखा भी नहीं है, हो सकता है बाहर निकलने का कोई न कोई दूसरा रास्ता ज़रूर हो। ” विक्रम ने रचित और मेघना से कहा।


“ क्या तुम लोग सच में जीवित हो या तुम लोगों को ऐसा लगता है। ” नैना ने उन बच्चों कि चलती स्वाँस को देखते हुए पूछा। उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वे लोग आठ वर्ष के बाद भी उसी रूप में जीवित थे और उस घर से बाहर निकलने कि बातें कर रहे थे।


“ हम लोग कोई भूत-प्रेत नहीं हैं, जो आप हमसे इतना डर रही हैं। ” मेघना बोली, लेकिन नैना कि आँखें अभी भी अविश्वास से चमक रही थीं।


“ आपको विश्वास नहीं है न! ” मेघना ने नैना से पूछा, नैना ने सिर हिलाया। नैना से इतना पूछते ही मेघना ने विक्रम को एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया।


“ तू पागल है क्या! ” विक्रम गुस्से में चीख पड़ा।


“ देखा! अगर हम लोग भूत होते तो मेरे थप्पड़ से इसे दर्द नहीं होता और ना तो गुस्सा आता, इसलिए आप हमसे डरना बंद कीजिए। ” मेघना समझाते हुए बोली, लेकिन विक्रम उसकी इस हरकत से अत्यंत क्रोधित होकर मेघना को गुस्से से घूर रहा था। 


“ सॉरी! ” मेघना ने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ मासूम सा चेहरा बनाते हुए, विक्रम से

 माफी माँगी। लेकिन मेघना के समझाने के बाद भी, नैना उलझन में पड़ी रही, एक मन कहता कि वे लोग भूत थे तो दूसरा मन कहता भूत होते ही नहीं हैं।


अचानक ड्रिंक काउंटर के पास वाले दरवाज़े से, जो हॉल के बाएँ तरफ था, एक पुलिस वाला दरवाज़े पर ज़ोर से लात मारते हुए पूरे आत्मविश्वास से बँदूक तान कर बाहर निकला, जिसे देखकर अचानक वे सभी डर गए।



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