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Chapter 11 Arpita wakes up part 2

 अर्पिता ने अपनी आँखें खोलीं और अंगड़ाई लेते हुए बड़े आराम से ऐसे उठी जैसे कोई सामान्यता अपनी नींद पूरी करने के बाद उठता है।


उसके उठते ही डॉक्टर को आभास हो गया कि अर्पिता होश में आ चुकी थी। अमन, सागर और डॉक्टर तीनों कि नजरें उस हरे पर्दे पर ही टिकी हुई थीं, जिसके पीछे अर्पिता हलचल कर रही थी।


डॉक्टर का हृदय इस चिंता में तीव्रता से धड़क रहा था कि कहीं अर्पिता उसका यह सच ना समझ जाए कि उसने ‌उसे बेहोश क्यों किया ‌था और वह उसके साथ क्या करने ‌वाला था। 


पुरुष जब स्त्री कि बिना अनुमति के अपनी मर्यादा पार करते हैं, तो वह मानवता कि सबसे निचली श्रेणी में गिर जाते हैं, किंतु डॉक्टर इस ज्ञान से अछूता नहीं था, परंतु फिर भी उसने वो करने कि चेष्टा की थी जिस कृत्य का विचार करना भी पाप था। 


जब अर्पिता मिनी हॉस्पिटल के कक्ष में अपनी बेटी पीहू के साथ पहुँची थी, तब उसे अपनी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, उसका शरीर ज्वार से तप रहा था। डॉक्टर ने उसे कुछ दवाइयाँ देकर आराम करने के लिए कहा जिसके कुछ क्षण बाद वह अचेत हो गई और उसके बाद क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं था, लेकिन वह उसके साथ कुछ गलत कर पाता उससे पहले अमन और सागर उस कक्ष में आ पहुंचे थे। डॉक्टर ने जानबूझकर उसे नशीली दवाइयाँ दी थीं और इसी कारण से उसे अर्पिता से नजरें मिलाने से डर लग रहा था कि कहीं वह उसकी सच्चाई समझ ना जाए।


वह विचार कर रहा था कि यदि उसका भांडा अमन और सागर के समक्ष फूट गया तो भविष्य में उस घर में उसके लिए काफी समस्याएं खड़ी हो सकती थीं।


जो चीज़ दिखाई नहीं देती थी, उसे देखने कि उत्सुकता अमन को बहुत सताती थी। वह बहुत देर से उस महिला को देखने की प्रतीक्षा कर रहा था जिसकी बेटी अत्यंत सुंदर और प्यारी थी। इसलिए उसकी नजरें उस हरे पर्दे से हट ही नहीं रही थीं। वह भी जिस बेड पर लेटा हुआ था, उसी बेड पर अपने पैर लटका कर बैठ गया।


पूर्ण रुप से होश में आने के बाद अर्पिता को बस इतना याद आया कि दवाइयाँ खाने के बाद वह गहरी नींद में सो गई थी और उसके बाद क्या हुआ - क्या नहीं उसे कुछ भी ज्ञात नहीं था।


“ पीहू! ” उसने उठते ही सर्वप्रथम अपनी बच्ची को स्मरण किया और हड़बड़ा कर उसे ढूँढ़ने के लिए बेड से नीचे उतर कर, उस हरे पर्दे के पीछे से निकलकर सबके सामने आई।


जिस स्त्री को देखने के लिए अमन इतनी देर से लालायित हो रहा था, वह स्त्री अब उसके सामने खड़ी थी। कोमल, सौम्या और आकर्षक शरीर वाली वह स्त्री, सामान्य स्त्रियों से थोड़ी लंबी-चौड़ी थी। 


उसे देखते ही अमन के मन में सर्वप्रथम यही विचार आया कि वह स्त्री एक वीरान जंगल के बीचों-बीच स्थित कोटला हाउस जैसे उस मायावी घर में अपनी बेटी के साथ कैसे आ पहुँची थी। 


इधर अर्पिता कि दृष्टि उस कक्ष में उपस्थित तीन व्यक्तियों पर पड़ी, किंतु उसकी दृष्टि अमन पर आकर ठहर गई और अमन ने भी जैसे ही अर्पिता को पहली बार देखा वह सम्मोहित भाव से उसे देखता ही रह गया।


अपने विचारों में मग्न अमन उसके माथे पर दृष्टि डालते हुए यह ज्ञात करने का प्रयास कर रहा था कि क्या वह शादीशुदा थी या नहीं। किंतु उसके सूने माथे को देख वह स्वयं में ही विचार करने लगा कि संभवतः वह मुस्लिम या क्रिस्टियन हो। परंतु अमन के मन में एक प्रश्न अभी भी खटक रहा था कि यदि वह शादीशुदा थी तो उसका पति कहाँ था।


बिना किसी मेकअप के वह स्त्री खूबसूरत तो लग रही थी लेकिन धूल से उसका चेहरा मंद पड़ चुका था। गहरे काले बाल, हल्की भूरी आँखें, और तंदुरुस्त शरीर। अमन को आभास तक नहीं हुआ, लेकिन प्रेम कि सुंदर छाया उसके मन में घर गई थी। वह एक ऐसी स्त्री के प्रेम मोह में पड़ चुका था, जिसे वह जानता तक नहीं था और ऊपर से उसकी एक दो वर्षीय बेटी भी थी।


अचानक अमन कि खाकी रंग कि कमीज़ को खून के लाल रंग से रंगा देख, अर्पिता विचलित हो उठी और क्षण भर के लिए पीहू को भूल, उसने अमन के पास आकर बड़े चिंतित स्वर में पूछा, “ तुम ठीक तो हो ना! और यह खून कैसा है? ”


अर्पिता का अपने प्रति ऐसा व्यवहार देख अमन हैरान था। उसकी वाणी में अमन को एक अपनापन सा लगा। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो अर्पिता उसे पहले से ही जानती हो। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह स्त्री उसके लिए इतनी चिंतित क्यों हो रही थी। परंतु उसके ऐसे व्यवहार का कारण जानने के लिए अमन ने बड़े असमंजस से पूछा, “ क्या आप मुझे जानती हैं? ”


“ क्या मतलब है तुम्हारा जानती हूँ से! तुम्हें नहीं पता मैं कौन हूँ और पीहू कहाँ है? ” अर्पिता ने कक्ष में अपनी नजरें इधर-उधर दौड़ाते हुए पूछा। सागर भी संदेह भरी दृष्टि से यह विचार करते हुए अमन को ही घूर रहा था कि वह स्त्री संभवतः अमन को जानती थी।


अमन अपना सिर ना में हिलाते हुए बोला, “ मैं नहीं जानता तुम कौन हो, मैं तो तुमसे पहली बार मिल रहा हूँ और हम नहीं जानते कि तुम्हारी बेटी अचानक कहाँ गायब हो गई। हमने आखरी बार उसे उस टेबल पर बैठे देखा था। ”


अर्पिता ने कक्ष में अपनी नजरें इधर-उधर दौड़ाईं, पर उसे अपनी बेटी पीहू उस कक्ष में कहीं भी नहीं दिखाई दी। उस कक्ष में उसे अपनी बेटी का ना दिखाई देने के कारण यह बेचेन हो उठी


“ क्या मतलब है गायब हो गई! मेरी बेटी कहाँ है डॉक्टर? ” अर्पिता बेचैनी से बोलते हुए अचानक अमन से दूर हटकर खड़ी हो गई और माथे पर प्रश्नात्मक भाव लिए कभी सागर को देखती तो कभी अमन को, तो कभी उस डॉक्टर को। मिनी हॉस्पिटल के उस कक्ष में डॉक्टर के अतिरिक्त अमन और सागर को उपस्थित देख, अर्पिता को अधिक आश्चर्य नहीं हुआ था, क्योंकि वह उस घर कि माया से भली-भांति परिचित थी, वहीं अमन और सागर, जिन्हें उस मायावी घर में आए अभी अधिक समय भी नहीं हुआ था, उस घर के रहस्यों से अनिभिज्ञ थे और उस घर कि माया ने उन्हें भ्रमित‌‌ व चकित करना प्रारंभ कर दिया था। वह समझ चुकी थी कि जिस अमन के समक्ष वह खड़ी थी, वह उसे जानता तक नहीं था। पर वह, अमन और सागर, उन दोनों को अच्छे से जानती थी।


“ पीहू कहाँ है डॉक्टर? ” अर्पिता ने बड़ी आस लगाकर डॉक्टर से पूछा।


“ पता नहीं। ” डॉक्टर ने एक निराशाजनक उत्तर दिया।


“ पता नहीं का क्या मतलब है! ” अर्पिता रुआँसी आवाज़ में बोली।

“ वह सिर्फ 2 साल कि है। इस दरवाज़े को खोलकर यहाँ से बाहर चले जाना उसके लिए असंभव है, तो आपके होते हुए मेरी बेटी जा कहाँ सकती है। ” 


सागर एक पिता था और उसकी भी पीहू के समान एक पुत्री थी, इसलिए वह अर्पिता कि ममता और व्यथा को अच्छे से समझ सकता था। बोला, “ देखिए इस समय आप कैसा महसूस कर रही हैं, यह मैं अच्छे से जानता हूँ, आपकी बेटी जहाँ भी होगी सही सलामत होगी। ”

“ हाँ! सही कहा। ” अमन ने भी बड़प्पन दिखाने कि कोशिश में सागर कि बात में अपनी सहमति जताई।


“ क्या मतलब है सही सलामत होगी! आखिर मेरी बेटी के साथ हुआ क्या है? आप लोग ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं जैसे कोई अनहोनी गठित हो गई। मुझे बहुत बेचैनी हो रही है। सच-सच बताइए हुआ क्या है? ”


“ आपकी बेटी यहीं टेबल पर बैठी थी, लेकिन नजाने अचानक कहाँ गायब हो गई। ” सागर ने उत्तर दिया।


“ गायब हो गई, पर कैसे? कौन ले गया उसे और आप लोगों ने कुछ किया क्यों नहीं। ” अर्पिता बेचैन हो रही थी उसे डर लगने लगा था कि कहीं उसकी बेटी को कुछ हो न गया हो। मां से अधिक एक मां की भावना और कौन समझ सकता है।

अर्पिता उस घर की माया को अच्छे से समझती थी और वह अमन और सागर से भलीभांति परिचित थी।


“ Calm down अर्पिता Calm down


यह सब हूए कितनी देर हो चुकी है?


लगभग दो घण्टे और आप लोग इस कमरे में कितनी देर से हैं,


“ मैं दो घण्टे से बेहोश थी। ” अर्पिता को यह बात जान कर एक बड़ा झटका लगा कि वह दो घण्टों से बेहोश थी। उसने याद किया कि उस डॉक्टर ने उसे बुखार के नाम पर कुछ दवाइयाँ दी थीं और कहा था कि उन‌ दवाइयों से उसे आराम मिलेगा, लेकिन उन दवाइयों को ग्रहण करने के बाद वह धीरे धीरे अपने ऊपर से अपना नियंत्रण खोने लगी थी।


“ आराम से लेट जाओ


“ पीहू! पीहू! पीहू! ” वह लगातार उस कक्ष में अपनी बेटी पीहू को ढूंढने का प्रयास करती रही। अपनी बच्ची पीहू के न मिलने के कारण, उसने डॉक्टर का कॉलर पकड़ लिया और उसपर क्रोध से चीखने लगी।




“ मेरी बेटी कहाँ है? ” अर्पिता ने डॉक्टर से दृष्टि मिलती



कुछ नहीं बस, कमजोरी की वजह से तुम्हें चक्कर आ गए थे,


पर मैंने तो कुछ तो पहले ही खाना खाया था और मेरी बच्ची कहां है।

पीहू कहां है डॉक्टर


नहीं नहीं है तुमने मुझे कोई दवाई दे जिसके बाद मैं बेहोश हो गई तुमने मेरी बेटी साथ क्या किया।




 • 


 • 











“ तो आप यहाँ कैसे आए? ” अमन ने हल्के से पूछने का प्रयास किया, लेकिन डॉक्टर उसे डाँटते हुए फिर से शांत रहने के लिए बोला, 


“ मुझे एक बूढ़ा आदमी इस घर में लाया, यह कह कर की उसे अपने बेटे के इलाज के लिए एक डॉक्टर की जरूरत है और उसके बाद मुझे यहाँ लाकर कैद कर दिया। मैं परेशान हो गया हूँ, अपनी इस जिंदगी से, जहाँ कोई दोस्त नहीं है, कोई प्यार नहीं है ,कोई अपना नहीं है, ऐसा लगता है जैसे जिंदगी एक जगह ठहर सी गई है।


तुम लोगों को लगता है कि तुम इस घर में कैद हो चुके हो, पर मेरी नज़र में तुम लोगों की जिंदगी मुझसे बहुत बेहतर है, क्योंकि उस बुड्ढे ने मुझे इस कमरे में कैद करके मेरी जिंदगी नरक बना दी है।


मेरा हर दिन इस कमरे में किसी जानवर की तरह बीतता है, कब सुबह होती है - कब रात कोई फर्क नहीं पड़ता, हर दिन एक जैसा निकलता है। आज़ादी क्या होती है! इस घर में आने के बाद मैंने जाना, इससे अच्छा तो जेल होता है, कम से कम वहाँ कभी छूटने की उम्मीद तो होती है। कई बार निराश होकर आत्महत्या करने का मन करता है, लेकिन मैं आत्महत्या का विचार यह सोचकर त्याग देता हूँ कि जिस दिन वह बुड्ढा मेरे सामने आया मैं उसे छोडूंगा नहीं। ”



तो आपके हिसाब से इस घर का एक मालिक भी है पर हमने कभी भी किसी ऐसे आदमी के बारे में नहीं सुना।


मैं जानता हूं क्योंकि ऐसे बहुत कम लोग हैं जिसने उस कमीनी को अपनी आंखों से देखा है।











क्या हो रहा था यहां पर


कुछ नहीं मैं बस इनकी आंख चेक कर रहा था।









ये कौन है, ये भी patient है









अर्पिता कि बेटी को ढूंढते हुए, अमन और अर्पिता एक ऐसे कक्ष में जा पहुंचे जहां घोर अंधेरा फैला हुआ था। चारों तरफ एक विचित्र शांति फेली हुई थी। उस कक्ष में दीवारों पर किसी तहखाने कि तरह छोटे छोटे गोल रोशनदान बने हुए थे, जिनसे आती हल्की रोशनी के कारण अमन और अर्पिता उस कक्ष में देख पा रहे थे।


उस कक्ष में बिजली से संचालित होने वाले सभी रोशनदान बंद पड़े थे, लेकिन उनमें से कुछ लक्षित कर रहे थे। वह कक्ष किसी हाॅल कि भाँति अत्यंत विशाल और बड़ा था। वह कक्ष उस घर का गुप्ता तहखाना था जहां वर्षों पुराना सामान यहां वहां ढेर के रूप में पड़ा हुआ था और बीच-बीच में किसी भूल भुलैया की भाँति गलियाँ बनी हुई थीं, उन सामानों की ढेर को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उस घर का सारा सामान वही लाकर डाल दिया हो।


उस तहखाने में बड़े-बड़े चूहे थे, जिनकी चुँ-चुँ चें-चें साफ सुनाई दे रही थी। मकड़ियों ने उन पुराने सामानों पर अपने जाल किसी चादर की तरह बिछा रखे थे, जैसे वर्षों से वे इसी कार्य में संलग्न थीं। उस कमरे में भयानक बदबू फैली हुई थी, जैसे हजारों चूहे एक साथ मर गए हों।


पीहू पीहू पीहू, अर्पिता ने अपनी बेटी पीहू को आवाज लगाई और आवाज लगाते लगाते वह रोने लगी।


वे दोनों उन सामानों के ढेर के बीच मैं बनी हुई गलियों से होते हुए पीहू को आवाज लगाते हुए उसे ढूंढ रहे थे




अचानक अमन कि दृष्टि वहाँ रखे गिलोटिन पर पड़ी जो वर्षों पहले लोगों को उनकी गर्दन काटकर उन्हें सजा देने के लिए प्रयोग किया जाता था। उस लकडी के ढांचे के सिरे पर रस्सी से बंधा हुआ एक बड़ा सा ब्लेड लगा हुआ था और उसके दूसरे से सिरे पर अपनी गर्दन अटकाने के लिए एक खाँचा बना हुआ था, जिस पर व्यक्ति अपनी गर्दन रखता था और सिर वह भारी ब्लेड उसकी गर्दन पर गिरा दिया जाता था, शरीर का आभास भी नहीं होता था और सिर धड़ से अलग हो जाता था।


इधर अर्पिता के पैर अपनी बेटी को ढूंढते हुए किसी चीज से टकराकर लड़खड़ाए, लेकिन उसने संतुलन बनाते हुए स्वयं को गिरते-गिरते बचाया।


उसने जैसे ही नीचे दृष्टि डालर उस चीज को ध्यान से देखा जिससे वह टकराई थी, उसे देखते ही वह स्तब्ध रह गई और अचानक ज़ोर से चीख पड़ी।


उसकी चीख सुनकर अमन डर गया और वह भाग कर तुरंत अर्पिता के पास पहुँचा। उसने जमीन पर एक सड़ा हुआ है पड़ा देखा, जिसने से असहनीय दुर्गंध निकल रही थी, जांघ से लेकर कि उंगलियों तक वह पूरा एक साबुत पैर था जिसे किसी की शरीर से जानबूझकर उखाड़ कर वहां फेंका गया था। 


अमन उसे देखते ही किसी अनजाने खतरे को भाँप गया और यदि पैर यहाँ पड़ा है तो पूरा शरीर भी यहीं कहीं होगा।


“ कहीं मेरी बेटी को कुछ न‌ हुआ हो, है वाहेगुरु! मेरी बच्ची तों अपनी मेहर बनाए राखीं।”


“ तुम चिंता मत करो, पीहू को कुछ नहीं होगा। लेकिन एक बात साफ है, पीहू यहां नहीं है और इसलिए हमें यहां से फटाफट निकल जाना चाहिए।”


“ आओ।” अमन ने अर्पिता का हाथ पकड़ा और उसे लेकर अपने लंबे कदमों के साथ तेज़ी से वहां से बाहर निकलने के लिए उस द्वार की तरफ बढ़ा जिससे वे भीतर आए थे।


अचानक उनके सामने एक दानव प्रकट हुआ, उसका विशालकाय बलिष्ठ शरीर लाल रंग का था, जो अंधेरे में गहरा लाल दिख रहा था। उसके गोल कंधे और कसरती शरीर, उस दानव का बाहुबल निखार रहा था। उसके काले बाल साँप कि पूंछ कि तरह मोटे थे और उसके सारे बाल हिल रहे थे जैसे उनके भीतर भी कार्यशील मांसपेशियाँ अपना कार्य कर रही थीं, ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपने सिर पर ढेर सारे सांपो कि पूंछ काटकर लगा ली हो, जो अभी भी प्राण छोड़ने से पहले तड़प रही थीं।


उसने अपने एक हाथ में द्वीशूल पकड़ा हुआ था, वह एक त्रिशूल ही था जिसका एक शूल टूटा हुआ था।


उसकी पीली आंखें अंधेरे में चमक रही थीं जिसे देखते ही नैना भयानक रुप से डर गई। 


उसके पास एक द्विशूल शस्त्र था, जिसका एक फूल टूट चुका था, अपने उस शस्त्र को उसने अपने बाएं हाथ में पकड़ा हुआ था। 


उस विचित्र घर में अमन ने कई चमत्कार देखे थे लेकिन उनमें से यह सबसे ज्यादा भयानक और झटके दार था। एक विचित्र दानव अपने चौड़े वक्ष के साथ तनकर उनके सामने खड़ा था, जैसे किसी मनुष्य से तो उसे कोई भय ही नहीं था।


उसे देखते ही इस बा

र अर्पिता और भी तीव्रता से सीखी इस भयानक चीज़ से उस दानव के शरीर में सिरहन दौड़ गई उसके कान फट जा रहे थे कि उसमें अर्पिता का मुंह बंद करने के लिए कुछ की तरफ दौड़ लगा दी। 






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