अश्वत और नैना सारा खाना तैयार करने के बाद पेट पूजा भी कर चुके थे। अच्छे से पेट फुल होने के बाद अचानक नैना के पेट में गुड़गुड़ होने लगी। उसके चेहरे पर अजीब से भाव उत्पन्न होने लगे, उसके पेट की गुड़गुड़ाहट अश्वत के कानों तक जा रही थी।
“ क्या हुआ? ” अश्वत ने पूछा। नैना ने बिना कुछ बोले ना में अपना सिर दिया। अचानक फिर से उसके पेट से एक अजीब सी आवाज़ आई।
“ शायद तुम्हारा पेट तुमसे कुछ कह रहा है। ” अश्वत ने मज़ाक में कहा।
“ मैं जानता हूँ तुम्हें वॉशरूम जाना है, है ना? ” अश्वत ने पूछा और इस बार नैना ने अश्वत की बात से सहमत हो कर शर्म से अपना सिर हिलाया।
“ देखो तुम्हें जो भी करना है यहीं करना होगा। ” अश्वत ने कहा।
“ पर मुझे वॉशरूम जाना है, इस किचन में मैं कैसे… तुम समझते सकते हो मैं क्या कहना चाहती हूँ। ” नैना अश्वत से अपनी बात कहने में हिचक रही थी।
“ यहीं कर लो जो भी करना है। ” अश्वत ने नैना को कूड़ेदान की ओर संकेत करते हुए कहा।
“ यीयू! पागल हो, यहाँ किचन में और वो भी इस कचरे के डिब्बे में और तुम्हारे सामने, कभी नहीं! ” नैना अश्वत से नजरें चुराते हुए बोली।
“ हाँ तो, कचरे के डिब्बे में नहीं तो… कढ़ाई में करलो और कढ़ी बताकर अपने प्यारे-प्यारे हाथों से उस बुड्ढे को खिला देना। ” अश्वत ने उपालंभ भरते हुए कहा।
“ छी! कितने गंदे हो तुम! ” नैना उगलाते हुए बोली।
नैना को अश्वत के सामने पॉटी करने के विचार से ही शर्म आ रही थी और अश्वत भी उसके इस लज्जा के कारण को समझ रहा था। अभी उसे इस घर में अश्वत के साथ अपनी प्रेम कथा का ज्ञान नहीं था इसलिए वह अश्वत से शर्मा रही थी।
“ ठीक है मैं किचन के बाहर खड़ा रहूँगा लेकिन तुम्हें दरवाज़ा हल्का सा खुला रखना होगा। ” अश्वत नैना का ध्यान रखते हुए गंभीरता से बोला, किंतु नैना असमंजस में पड़ी थी।
“ देखो मेरी बात समझने की कोशिश करो, जो भी करना है यहीं कर लो क्योंकि अगर हम एक बार बिछड़े, तो हो सकता है हम कभी न मिलें। हम्! ” अश्वत ने बड़े प्रेम से समझाया। नैना ने सहमति में अपना सिर हिलाया।
“ ठीक है, लेकिन तुम अपने कान बंद रखोगे! ” नैना ने मासूमियत से कहा, उसकी बात सुनकर अश्वत के मुँह से अचानक हवादार हँसी छूट पड़ी। अश्वत नैना से पुनः बिछड़ना नहीं चाहता था, इसलिए वह रसोई से बाहर आकर दरवाज़े पर ही खड़ा रहा।
नैना को यह सब बड़ा अटपटा लग रहा था, लेकिन जब उसने उस कचरे के डिब्बे में झाँक कर देखा तो उसे उसमें एक चूहा दिखाई दिया, जो बहुत देर से उसमें छुपा अश्वत और नैना की बातें सुन रहा था। उसने नैना को एक बनावटी मुस्कान के साथ देखा।
नैना उस विचित्र चूहे को देखकर चीख पड़ी, जो उसे देख मुस्कुरा रहा था। नैना की चीख सुनते ही अश्वत बेझिझक दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गया।
“ क्या हुआ? ” अश्वत ने हड़बड़ी में पूछा।
“ वो… वो… ” नैना कुछ कहती इससे पहले ही उस कूड़ेदान से एक चूहा बाहर फर्श पर खुदा। वह सामान्य चूहों की तरह चार पैरों पर खड़ा न होकर, दो पैरों पर खड़ा होकर अश्वत को देख मुस्कुराने लगा।
“ अबे साले! तू यहाँ क्या कर रहा है। इतनी देर से तू इस कचरे के डिब्बे में छुपा हुआ था, बताया क्यों नहीं? ” अश्वत चूहे से बड़े याराना ढंग से बोला।
“ मुझे लगा तुम लोग रोमांस करोगे इसलिए मैं तुम लोगों के रोमांस में कबाब की हड्डी नहीं बनना चाहता था। ” चूहे ने अपने व्यर्थ के विचारों को व्यक्त करते हुए कहा।
“ मतलब तू हमारा रोमेंस देखना चाहता था। ” अश्वत बोला। वह उस चूहे को अच्छे से जानता था।
“ क्या बकवास कर रहा है यह और यह बकवास कर कैसे रहा है? ” नैना सकपकाकर हैरानी से बोली। “ एक चूहा ऐसे बात भी कैसे कर सकता है या फिर मैं कोई सपना देख रही हूँ। ”
“ तुम इतना चोंक क्यों रही हो? यह तो ऐसे ही बात करता है! ” अश्वत ने नैना से कहा। उसके लिए यह सब सामान्य था, लेकिन जैसे ही उसे याद आया कि नैना के लिए अभी एक बोलता हुआ चूहा देखना नया और विचित्र था, बोला, “ अच्छा! अच्छा! समझ गया, तुम इसे पहली बार देख रही हो शायद इसीलिए इतना चौक रही हो न? ”
“ मतलब यह कोई सपना नहीं है? ” नैना प्रश्नवाचक भाव से बोली। अश्वत ने सहमती से अपना सिर हिलाया।
नैना और अश्वत एक दूसरे को देखने में मग्न थे, इसलिए चूहे ने अपने छोटे छोटे हाथों से ताली बजाकर उनका ध्यान खींचते हुए पूछा, “ एक मिनट! पहली बार का क्या मतलब है? ”
“ नैना इस घर में आने के बाद तुमसे पहली बार मिल रही है इसलिए इतना हैरान हो रही है। ” अश्वत ने जवाब दिया।
“ सिर्फ मुझे देखने से यह इतना डर गई, तो जब यह अपने गुरु को देख लेगी तब तो इसकी फट के हाथ में आ जाएगी। ” उस चूहे ने अपनी बात पूरी करते ही हँसना शुरू कर दिया।
उसकी घटिया हँसी नैना से बर्दाश्त नहीं हुई और बोली, “ अगर हंसना बंद नहीं किया तो अभी अपने पैर से कुचल दूँगी तुझे। ”
“ गणेश गायतोंडे नाम है मेरा, मैं किसी के बाप से नहीं डरता। ” उस चूहे ने बेधड़क होकर निडरता से कहा।
नैना ने खिसियाते हुए उस चूहे को, जिसका नाम गणेश गायतोंडे था, अपने पैर से कुचलना चाहा, जो वह सच में नहीं करने वाली थी और यह बात अश्वत भी जानता था, लेकिन अश्वत ने दिखावा करते हुए उसे पकड़ कर रोक लिया। नैना की प्रतिक्रिया से गणेश डरकर चार कदम पीछे हट गया।
“ नैना! नैना! शांत हो जाओ। ” अश्वत ने नैना को रोकते हुए कहा।
“ तो तेरा वह गुरु है कहाँ? वैसे तो तू हमेशा उसके साथ दिखाई देता है, फिर आज क्या हुआ! ” अश्वत ने गणेश से पूछा।
“ अब वो अपना पहले वाला गुरु नहीं रहा क्योंकि अब वो मुझे अपने दोस्त की नज़र से नहीं बल्कि अपने शिकार की नज़र से देखने लगा था। ” गणेश ने अपने भीतर छुपी व्यथा को बाहर निकालते हुए कहा।
“ कौन है इसका गुरु? ” नैना ने अश्वत से पूछा।
इससे पहले अश्वत नैना के प्रश्न का उत्तर देता, गणेश बोला, “ अपना गुरु एक ऐसा खूंखार जानवर है जिसे तुम लोग शेर कहते हो। उसकी नज़रों में मैं अब एक निवाला बन चुका था। इस घर में कई दिनों से भूखा रहने के कारण वह मुझे ही अपना शिकार समझने लगा और उसकी हर अंतिम बात मुझ पर ही खत्म होने लगी थी कहता था ‘ जी करता है तुझे ही खाजाऊँ ’ और एक दिन ऐसा ही हुआ, वो मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ गया था, जैसे-तैसे मैंने उस जंगली जानवर से अपना जीवन बचाया। इसलिए उस दिन से वो अपना गुरु नहीं रहा और अपने जीवन को उसके जबड़ों से बचाने के लिए मुझे उसका साथ छोड़ना पड़ा। ”
“ क्या यह चूहा सच कह रहा है, इस घर में एक शेर भी है? ” नैना ने चौंकते हुए पूछा।
“ ऐ!… मेरा नाम गणेश गायतोंडे है, दोबारा चूहा नहीं बोलने का। ” गणेश भड़कते हुए बोला।
“ तू आज इतना फट क्यों रहा है, तेरा दिमाग खराब हो गया क्या। ” अश्वत ने गणेश को डाँटते हुए कहा।
अचानक किसी ने रसोई का दरवाज़ा खटखटाया और एक ओर लिफाफा आया।
जिसमें लिखा था - आप लोगों को अब तक खाना बनाने और खाने का भरपूर समय दिया गया, जिसके लिए आपको मेरा धन्यवाद करना चाहिए। अब यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप इस घर का बिल्कुल अपने घर की तरह ही ध्यान रखें और इस घर में आने वाले मेहमानों को अपना ही मेहमान समझें इसलिए आप लोगों को मेरे सबसे प्रिय मेहमानों के लिए हॉल के डाइनिंग टेबल पर खाना लगाना है।
तुम्हारा प्रिय बुड्ढा - सुमित सक्सेना।
“ शायद यह तुम्हारी बात कर रहा है! ” अश्वत उस संदेश में लिखी बातों को समझते हुए नैना से बोला।
“ यह बुड्ढा अपने आप को भगवान समझता है क्या? इसको ऐसा मज़ा चखाऊँगी कि दोबारा मेरे हाथों का खाना नहीं मांगेगा। ” नैना भड़कते हुए पटर-पटर किसी षड्यंत्र के बारे में सोचते हुए बोली।
नैना ने गुस्से में सबसे पहले अश्वत द्वारा बनाई गई चाय में एक मुट्ठी मिर्च डाल दी। अचानक उसे रोकते हुए अश्वत बोला, “ तुम पागल हो गई हो क्या! तुम्हें पता है, इसके कितने बुरे परिणाम हो सकते हैं हमें इसकी सज़ा मिल सकती है। ”
“ सज़ा! जिंदगी भर इस घर में कैद रहने से ज्यादा बुरा और क्या हो सकता है? ” नैना ने कहा।
अचानक वह शेर जिसने बचपन में अश्वत को मारने की कोशिश की थी। उसने एक ज़ोरदार धक्का देकर द्वार खोला। अचानक द्वार खुलते ही उस शेर को अपने सामने देख वह सभी भयभीत हो उठे।
सबसे अधिक भय तो नैना को लग रहा था, क्योंकि एक भयानक शेर उनके सामने खड़ा था और वह जीवन में पहली बार एक शेर को इतने करीब से देख रही थी। अपने गुरु को देखकर गणेश का पता ही नहीं चला कि वह एकाएक कहाँ गायब हो गया।
“ क्या यही वह शेर है
या क्या यह भी उस चूहे की तरह बात कर सकता है।
यह बात अश्वत भी जानता था कि वह शेर ( गुरु ) किसी कारणवश अश्वत को जान से नहीं मार सकता था, किंतु वह कारण क्या था यह कोई नहीं जानता था, क्योंकि गुरु और गणेश ने उस कारण को आज तक अज्ञात रखा हुआ था। लेकिन मुख्य संकट नैना पर बना हुआ था इसलिए अश्वत नैना के सामने खड़ा हो गया, जैसे वह अपने जीते जी नैना को कुछ नहीं होने देने वाला था। उस शेर ने बहुत दिनों से कुछ खाया नहीं था, इसलिए वह बहुत कमज़ोर पड़ चुका था और उसका शरीर भी पहले से क्षीण दिख रहा था।
“ क्या यह शेर भी उस चूहे की तरह बात करता है। ”
“ तुम्हें याद है न मैंने तुमसे क्या कहा था! मैं जब भी तुम्हें भागने के लिए कहूँ तो बस तुम्हें भाग जाना है, कोई सवाल जवाब नहीं, बस भाग जाना है। ” अश्वत हल्का सा मुँह मोड़ कर अपने पीछे खड़ी नैना से फुसफसाया।
“ विचारों का आदान प्रदान कर तुम मनुष्यों को लगता है कि तुम हमसे जीत सकते हो, तो यह असंभव है। भले ही मैं तुम्हें मार नहीं सकता लेकिन अपना बदला लेने के लिए तुम्हें घायल अवश्य कर सकता हूँ। ” शेर ने अश्वत को डराने का प्रयास किया।
“ देखो, तुम्हारी दुश्मनी सिर्फ मुझसे है नैना को यहाँ से जाने दो। ” अश्वत ने आग्रह करते हुए कहा।
“ हाँ! सही कहा, मैं भी यही सोच रहा था। यही तो कार्य है मेरा, इस घर में तुम्हें और इस लड़की को हमेशा अलग रखना। लेकिन मैं कब तक बार-बार यही करता रहूँगा, मैं तुम्हें अलग करता हूँ - तुम दोनों फिर से मिल जाते हो, मैं तुम्हें फिर से अलग करता हूँ और तुम लोग फिर से एक हो जाते हो। क्यों न आज मैं तुम में से एक को खत्म कर दूँ, फिर न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी। ” शेर ( गुरु ) नैना की तरफ घूरते हुए बोला।
“ एक कम
भले ही तू उसे कितनी भी बचाने की कोशिश कर ले लेकिन यह बात तो भी जानता है आज नहीं तो कल उसकी मृत्यु निश्चित है।
कई दिनों से उस भूख के कारण दुर्बल हो चुके उस शेर से अश्वत भिड़ गया और उनकी घमासान उठा-पटक को नैना असमंजस में असहाय खड़ी देखती रही। बीच-बीच में वह जब भी उस खूंखार शेर से अश्वत का जीवन संकट में देखते तो चीख पड़ती।
गुरु का मुख्य उद्देश्य नैना को मार कर अश्वत को जीवन भर का दुख देना था, किंतु अश्वत के लिए तो नैना का जीवन बहुत पहले ही समाप्त हो चुका था, वह तो केवल नैना का भविष्य बदलना चाहता था, जो असंभव था।
अश्वत ने नैना से रसोई से भाग जाने का कई बार संकेत किया, लेकिन मैंने वहाँ से भागने को तैयार नहीं थी।
गुरु अचानक
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