शहर से दूर, रात के किसी समय, जंगल के बीच से गुजरती हुई सड़क पर, एक गाड़ी तेजी से कोटला हाउस कि तरफ जा रही थी।
उस जंगल के बीचों बीच, ठीक उस सड़क से लगभग दो सौ मीटर दूर, जंगल के भीतर, एक बहुत पुराना घर था। गाड़ी ठीक उस घर के सामने आकर रुकी।
उस काली गाड़ी से एक लड़की बाहर निकली। उसने गर्म कपड़े पहने हुए थे, एक मोटी गलाबंद सफेद टी-शर्ट पर गहरे रंग का नीला ब्लेज़र पहना हुआ था, जो रात के अंधेरे में लगभग काला ही नज़र आ रहा था। अत्यधिक कसी हुई काली जींस मानो उसकी कमर का खून जाम कर रही थी।
गाड़ी कि दूसरी तरफ से एक लड़का बाहर निकला, उसके चेहरे पर डर के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। वह उस लड़की को पूरे रास्ते समझाता हुआ आया था कि हमें उस घर से दूर रहना चाहिए जिसके नाम से ही पूरा शहर डरता था।
कहते हैं वह घर दो सदियों से भी अधिक पुराना था, अर्थात लगभग दो-तीन पीढ़ियाँ गुज़र चुकी थीं लेकिन कोई भी नहीं जानता था कि उस घर का निर्माता या वारिस कौन था।
लोग उस घर को भूतिया मानते थे उस घर की अलग-अलग भ्राँतियाँ और कई कहानियाँ पूरे शहर में प्रचलित थीं। वह घर कोटला हाउस के नाम से मशहूर था।
“देख नैना, अभी भी टाइम है हम वापस चल सकते हैं।” उस लड़के ने गाड़ी से निकलते ही एक बार फिर से नैना को अंतिम बार चेतावनी देते हुए वापस चलने का आग्रह किया। वह कतई उस घर में नहीं जाना चाहता था जिसका नाम सुनने से भी लोगों को डर लगता था।
“आज तो मैं इस घर के रहस्यों से पर्दा उठाकर ही रहूँगी। मैं जानना चाहती हूँ, आखिर इस घर में ऐसा क्या है जो लोग इस घर से इतना डरते हैं।” नैना ने अपने दृढ़ शब्दों में कहा। अंदर ही अंदर नैना भी उस घर में जाने से घबरा रही थी। रहस्य छोटा हो या बड़ा जब तक खुल न जाए, जिज्ञासा समाप्त नहीं होती। नैना के भीतर भी उस घर को लेकर जिज्ञासा का भयानक कोतूहल मचा हुआ था। डरी और सहमी हुई नैना उस भूतिया घर को घूरने कि एक नाकाम कोशिश रही थी, जो उन पेड़ों कि आड़ में छुपा हुआ था।
लोगों का कहना था कि जो उस भूतिया घर में एक बार अंदर गया, वह कभी बाहर नहीं आया और जीवित मनुष्य का लौटना तो दूर, मरने वाले की लाश तक नहीं मिलती।
लोगों ने कई बार सरकार को कोटला हाउस को उस जंगल से हटाने के लिए याचिका दायर की, लेकिन हर बार याचिका को मंजूरी प्रदान करने का मन बना चुके अधिकारियों का, मंजूरी देने से पहले ही तबादला हो जाता या फिर किसी अनजान डर से उन अधिकारियों द्वारा याचिका को खारिज कर दिया जाता रहा।
इसलिए बाद में सरकार यह बयान देकर बचने लगी कि दो सदियों से भी अधिक पुराना कोटला हाउस हमारे इतिहास कि एक सुरक्षित और अविस्मरणीय धरोहर है, जिसे हमें आदरतापूर्वक संभाल कर रखना चाहिए। लेकिन यह तो अपनी असफलता छुपाने के लिए बोला गया, एक सोचा समझा झूठ था।
नैना ने अपने चेहरे पर लटक रहे, अपने बालों को संभालते हुए पीछे किया। तभी अचानक उसके दोस्त ने उसका ध्यान खींचते हुए कुछ पूछा “कहाँ है वो आदमी जिसने तुझे यहाँ बुलाया था?”
“हाँ!” नैना अपने आप में ही कहीं खोई हुई थी कि अचानक उसका ध्यान टूट गया। “वो... वो, उसने अपना नाम सुमित बताया था और वो अपने आप को इस घर का मालिक बता रहा था। उसने कहा था, वो हमें इस घर के बारे में सब कुछ बताएगा।”
“क्या! उसकी बात झूठ भी तो हो सकती है।” उस लड़के ने बड़े तीखे स्वर में कहा। “ज़रा ध्यान से देख इस घर को, देखने से लगता है कोई अंदर होगा, नहीं ना?”
“कम से कम हमें एक बार चलकर तो देखना चाहिए। अगर वो आदमी सच में इस घर का मालिक हुआ, तो हो सकता है वो घर में ही हो।” नैना अपने निर्णय पर अटल थी।
उस लड़के ने ज़ोर से कार के बाॅनट पर हाथ मारा। मन मार कर, वह नैना कि बात मान रहा था। वह नैना को वहाँ अकेला छोड़ कर भी नहीं जा सकता था और उस भूतिया घर के अंदर भी नहीं जाना चाहता था। उसके लिए एक तरफ खाई थी तो दूसरी तरफ कुआँ।
उसने फटाफट गाड़ी से अपना भारी-भरकम कैमरा निकाला। वे लोग वहाँ कैमरा लेकर आए थे, ताकि वहाँ घटित होने वाली हर गतिविधि, वे लोग कैमरे में कैद कर वहाँ के रहस्यों को दुनिया के सामने उजागर कर सकें। किसी अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने स्वयं को उस भूतिया घर का मालिक बता कर, नैना को इंटरव्यू के लिए कोटला हाउस बुलाया था।
नैना एक पत्रकार थी और ऐसे रहस्यों का भांडाफोड़ करना ही उसका कार्य था, जिससे लोग डरते हों।
“चलें!” उस लड़के ने पूछा। उस भूतिया घर में प्रवेश करने के लिए नैना ने सिर हिलाकर हामी भरी। उन दोनों ने गर्म कपड़े पहने हुए थे और सर्दी के कारण बोलते समय उनके मुँह से भाप निकल रही थी।
रात के उस अंधेरे में, वातावरण में, हल्की ठंड के साथ घना कोहरा विद्यमान था और जंगल पूरी तरह से कोहरे से ढका हुआ था। लेकिन उस घर के आसपास गर्मी महसूस हो रही थी, चारों तरफ से झींगुर और कीटों कि किटकिट - कटकट कि भिन्न-भिन्न डरावनी आवाजें आ रही थीं। ऐसे स्थान पर तो कोई भी डरपोक व्यक्ति हार्ट अटैक से ही मर जाता।
उस जंगल ने उस विशाल भूतिया घर को पूर्ण रूप से अपने साथ आत्मसात कर लिया था। बाहर से वह घर कई पौधों कि लताओं और बेलों से ढक चुका था।
वे दोनों हल्के कदमों के साथ घनी घास कि चादर पार करते हुए, घर के मुख्य द्वार तक जा पहुँचे, ऐसी घनी घास अक्सर ग्रीष्म ऋतु में ही देखने को मिलती है, इतनी कड़ाके कि सर्दी के बाद भी यह आश्चर्य कि बात थी कि उस स्थान पर ऐसी सुहानी घास खिलखिला रही थी। घर कि किसी भी खिड़की से रोशनी कि एक किरण तक बाहर नहीं छलक रही थी, जैसे मानो पूरा घर अंधकार में डूबा हुआ था।
उन्होंने दरवाज़े पर एक गोल्डन प्लेट चिपकी देखी, जिस पर काले अक्षरों में कुछ लिखा हुआ था।
उस लड़के ने अपने मोबाइल कि फ्लैश जलाकर उस फ्लैट पर लिखी हुई सूचना को पढ़ा; विशेष सूचना - जो एक बार अंदर गया, वो कभी बाहर नहीं आया। सोच समझकर प्रवेश करें। धन्यवाद।
ऐसी विचित्र सूचना पढ़कर दोनों के शरीर में एक अजीब सी सिरहन दौड़ गई। दोनों डरे हुए उस घर के बाहर खड़े थे। यह बहुत अजीब बात थी, आखिर ऐसी विशेष सूचना अपने घर के बाहर कौन और क्यों लिखेगा।
उस लड़के से तो डर का घूँट निगला नहीं जा रहा था लेकिन नैना ने एक गहरी साँस ली, एक अच्छी खासी हिम्मत जुटाने के लिए। और अपने मन से नकारात्मक विचारों को निकालकर उसने उस विशेष सूचना को डराने का एक और माध्यम मानकर उसे नजरअंदाज कर दिया, वैसे भी उस घर के बारे में कई डरावनी मिथ्याएँ मशहूर थीं, तो यह तो एक छोटी सी बात थी।
नैना को घर के बाहर कहीं डोरबेल नज़र नहीं आई और फिर उसने खुद को समझाते हुए सोचा कि दो सौ साल पहले कौन डोरबेल लगवाया करता था।
इसलिए उसने दरवाज़ा खटखटाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया लेकिन दरवाज़ा खटखटाने से पहले, उसकी नज़र उसके हाथ कि उस उँगली पर गई जिसमें उसके मंगेतर ने उसे एक बेहद सुंदर सोने की अँगूठी पहनाई थी।
उसके मन में फिर से एक संशय कि भावना उठी कि जो मैं करने जा रही हूँ, वह सही है या गलत लेकिन नैना अपने संशय को दूर कर पाती, उससे पहले ही एक बुजुर्ग आदमी ने अंदर से उन दोनों के लिए दरवाजा खोल दिया।
दरवाज़ा खुलते ही एक तेज़ पीली रोशनी बाहर निकली जिस के प्रहार से कुछ देर के लिए उन दोनों कि आँखें चोंधिया गईं। घर के बाहर भयानक अंधेरा था लेकिन इसके विपरीत घर के अंदर रोशनी ही रोशनी थी।
“हेलो, मिस नैना! आपका स्वागत है।” ऐसा कहते हुए उस आदमी ने नैना से हाथ मिलाया। तभी रचित ने भी अपना हाथ आगे बढ़ाया लेकिन उस लड़के से हाथ ना मिलाकर, एक टेढ़ी दृष्टि देखकर सपाट शब्दों में उस आदमी ने कहा “और आपका भी।”
उस आदमी को देखकर नैना खुश हो गई और उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान खिल गई।
“देखो रचित! मैंने कहा था ना कि इस घर के मालिक यही हैं।” नैना बड़े उत्साह से बोली। अब उसका डर और संदेह कम हो चुका था।
“लेकिन आज आप थोड़े ज्यादा बूढ़े नहीं लग रहे हैं! जब तीन दिन पहले आप मिले थे तो ठीक-ठाक लग रहे थे।” नैना ने उसकी उम्र को लेकर अपना विस्मय व्यक्त किया।
जब वह उस आदमी से तीन दिन पहले मिली थी तब उसकी उम्र थोड़ी कम थी। लेकिन तीन दिन में ही नैना को उस आदमी में तीन साल का फर्क नज़र आ रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे उस आदमी की उम्र तेज़ी से बढ़ रही थी।
उसकी उम्र लगभग साठ साल के आसपास थी। उसके घने काले बाल थे और चेहरे पर दाढ़ी का नामोनिशान तक नहीं था।
उसने सफेद कोट-पैंट पहना हुआ था। वह एक सज्जन की भाँति इतने अच्छे से सुसज्जित था जैसे वह किसी विशेष समारोह में जाने की तैयारी कर रहा हो।
“मैं आप दोनों का ही इंतजार कर रहा था। आइए।” उसने बड़ी शालीनता से उन दोनों से अंदर आने का निवेदन किया।
“हम दोनों! आपको कैसे पता था कि मैं भी नैना के साथ आऊँगा?” रचित को उस आदमी पर कुछ संदेह हुआ।
“अब यह तो एक स्वाभाविक सत्य है कि कोई भी लड़की इतनी रात में ऐसे डरावने स्थान पर अकेली नहीं आएगी।” उस आदमी ने रचित का संदेह दूर किया।
“आइए, आगे कि बातें अंदर चलकर करते हैं।” उसने उन दोनों से अंदर आने का निवेदन किया।
उन दोनों ने बड़े संशय के साथ इधर-उधर अपनी नज़रें दौड़ाते हुए, उस घर में प्रवेश किया।
उन दोनों के अंदर आने के बाद दरवाजा बंद करने से पहले, उस आदमी ने बड़ी सतर्कता से एक नज़र बाहर दौड़ाई, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं बाहर कोई और तो नहीं था। लेकिन उसे बाहर अन्य कोई नहीं दिखाई दिया और फिर उसने दरवाज़ा बंद कर दिया।
उसके पश्चात कई दिन बीत गए, दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदल गए लेकिन नैना और रचित उस रहस्यमई भूतिया घर से कभी बाहर नहीं आए.......
कक्षा खचाखच बच्चों से भरी हुई थी। नया सत्र प्रारंभ हुए लगभग एक महा बीत चुका था। अश्वत को न दोस्त बनाना पसंद था और न ही उसका पढ़ाई लिखाई में कोई मन था, वह चुपचाप खिड़की के पास बैठा अपनी ही दुनिया में कहीं खोया हुआ था।
अश्वत नौवीं कक्षा में था। कक्षा में सभी बच्चों कि उम्र चौदह-पंद्रह वर्ष के आसपास थी। लड़कों ने हल्के पीले रंग कि कमीज़ व ग्रे रंग कि पैंट तथा काले जूते पहने हुए थे, जबकि लड़कियों ने सफेद जूते पहने हुए थे और उन्होंने भी हल्के पीले रंग कि कमीज़ पहनी हुई थी। लेकिन लड़कों कि भाँति लड़कियों ने पैंट नहीं बल्कि लाल रंग कि स्कर्ट पहनी हुई थी जिसकी लम्बाई उनके घुटनों के नीचे तक थी और सर्दी के कारण सभी बच्चों ने लाल रंग का स्वेटर पहना हुआ था। अश्वत को छोड़, कक्षा के सभी बच्चे अपनी गुटरगूँ में लगे हुए थे कि अचानक उनके प्रधान अध्यापक कक्षा में प्रकट हुए।
उनसे विद्यालय का हर बच्चा डरता था, इसलिए नहीं कि वह बच्चों को मारते ज्यादा थे, बल्कि इसलिए क्योंकि वह भरी कक्षा में बेज्जती अच्छी करते थे।
वह लगभग एक वर्ष पूर्व इस विद्यालय में आए थे, इससे पहले वह कहीं और पढ़ाते थे। उनके आते ही कक्षा में शांति काल शुरू हो गया, सभी बच्चे एकाएक शांत हो गए।
लेकिन उनके आने के बाद भी, दो लड़कियों ने अपनी खुफिया बातें करना बंद नहीं किया, उनका ध्यान अपनी ही दुनिया में था।
उन्हें देखते ही अध्यापक ने एक भयंकर गर्जना की “तुम दोनों! खड़ी हो जाओ।”
उनकी गर्जना भरी आवाज से कई बच्चों का दिल दहल उठा। वे दोनों लड़कियाँ हड़बड़ा कर फटाफट खड़ी हो गईं, दोनों को अपनी गलती का आभास था।
“जब तक मैं पढ़ाऊँ, तब तक ऐसे ही खड़ी रहो।” अध्यापक ने अपना आदेश सुनाया। लड़कियों का चेहरा निराशा से लटक रहा था। वह लड़कियों को बड़ी अटपटी दृष्टि से देखते थे। अफवाह थी कि उन्हें उनके पुराने स्कूल से लड़कियों से छेड़छाड़ के मामले में निकाला गया था।
“सभी बच्चे अपनी अर्थशास्त्र कि किताब निकालो।” अपना अगला आदेश देते ही उन्होंने पूरी कक्षा में अपनी नज़र घुमाई, अपना शिकार ढूँढने के लिए लेकिन उनके विषय कि किताब कोई भी बच्चा लाना नहीं भूलता था। प्रमुखतः कई बच्चे तो केवल अपने बैग में अर्थशास्त्र कि ही किताब लाते थे।
“आज मैं तुम्हें तुम्हारे भविष्य के बारे में पढ़ाऊँगा, जो तुम लोगों का आने वाला कल है, अर्थात् बेरोज़गारी।” अध्यापक ऐसी घमंडी मुस्कान के साथ बोला जैसे वह खुद को सर्वश्रेष्ठ समझता हो।
“भारत में लगातार कुछ मूर्ख बच्चे पैदा करने में लगे पड़े हैं जिसके कारण जनसंख्या तो बढ़ ही रही है, लेकिन जनसंख्या के विपरीत काम कम होता जा रहा है।” उनकी बातें सुनते ही बच्चों ने अपनी हँसी छुपाने के लिए अपने मुँह को अपने हाथ से ढक लिया। उनका प्रवचन सदैव उल-जलूल बातों के साथ हास्यास्पद और कड़वे शब्दों के साथ जागरूकता भर देने वाला होता था।
“मैं दूसरों के बारे में क्या कहूँ, मेरे माँ-बाप खुद गधे थे। मुझे पैदा तो किया, पर क्यों! क्योंकि मुझसे पहले उनकी पाँच लड़कियाँ जो हुईं थीं इसलिए लगे रहे… जब तक मैं पैदा नहीं हुआ। लड़का चाहिए है ना सबको।”
“मेरी बहनों कि शादी हो गई।” वह कुछ देर शांत रहकर अचानक बोले। “वे सभी नौकरी करें या ना करें लेकिन उनके पतियों को नौकरी करनी पड़ती है, अपने परिवार का पेट पालने के लिए, उनका ध्यान रखने के लिए। इसलिए सही मायनों में यह सवाल लड़कों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या... करोगे? क्योंकि नौकरी है तो छोकरी है। तुम में से कोई डॉक्टर बनेगा, कोई इंजीनियर बनेगा तो कोई नाली साफ करेगा, लेकिन सबका भविष्य अच्छा नहीं होने वाला है क्योंकि कुछ लोगों को तो नाली साफ करने का काम भी नहीं मिलेगा, तुम में से अस्सी प्रतिशत लोग बनोगे बे...रोज...गार। तुम्हें काम तो मिलेगा पर अपनी मर्ज़ी का नहीं… ”
कक्षा के सभी बच्चों का ध्यान अपने अध्यापक पर केंद्रित था लेकिन अश्वत का ध्यान कक्षा से बाहर था। उसकी दृष्टि तो खिड़की से बाहर पक्षियों को यहाँ वहाँ उड़ते देखने में संलग्न थी। वह लगातार खिड़की से बाहर देख रहा था।
अचानक एक डरा देने वाली आवाज़ उसके कानों में पड़ी, “अश्वत! अश्वत नाम ही है ना तुम्हारा!” अध्यापक ने बड़े कठोर स्वर में पूछा।
“जी सर।” अश्वत ने अकबकाते हुए अपना सिर हिलाया।
“मैंने क्या बताया अभी?” अध्यापक ने पूछा।
“आपने!” अश्वत ने एक मूर्खतापूर्ण सवाल पूछा।
“नहीं पड़ोसी ने।” अध्यापक ने तंग होकर कहा।
अश्वत के बगल में बैठी लड़की ने उसे एक खाली कागज़ पर उत्तर लिखकर इशारा किया। उस लड़की ने कागज़ पर लिखा था, ‘हम सभी बेरोजगार बनेंगे।’
“हम सभी बेरो...” अश्वत अपना सिर झुकाकर बस इतना ही पढ़ पाया कि अचानक उसके अध्यापक पुनः चीख पड़े, “सामने देखकर बता।”
“आ... हम सभी बेरोजगार हैं!” अश्वत ने खड़े होकर घबराते हुए जवाब दिया। यह जानते हुए भी कि वह गलत उत्तर दे रहा है, फिर भी उसने अध्यापक के सामने बोलने कि चेष्टा की।
“अबे गधे तेरा ध्यान कहाँ है। एक झापड़ में गाल लाल हो जाएगा, निकलजा मेरी क्लास से।” अध्यापक ने बड़ी क्रूरता से कहा, हर बच्चे कि दृष्टि अश्वत पर ही थी। अश्वत किसी से भी दृष्टि मिलाकर स्वयं को लज्जित महसूस नहीं करना चाहता था इसलिए अश्वत बिना किसी छात्र से नजरें मिलाए चुपचाप सिर झुकाकर कक्षा से बाहर निकल गया।
अश्वत अपना मन बहलाने के लिए विद्यालय के परिसर में अध्यापकों से नज़रें बचाते हुए इधर-उधर घूमने लगा। वह घूमते घूमते विद्यालय के पीछे बने क्रीड़ा स्थल पर जा पहुँचा जिसके द्वार पर ताला लगा हुआ था। उसने सतर्कता से इधर-उधर अपनी नजरें दौड़ाईं और बड़ी शीघ्रता से उस द्वार पर चढ़कर दूसरी तरफ कूद गया। वह अक्सर ऐसा करता था क्योंकि क्रीड़ा स्थल पर उसे अकेले घूमने में बहुत आनंद आता था।
क्रीड़ा स्थल चारों तरफ से छः फुट ऊँची दीवारों से घिरा हुआ था और दीवारों के ऊपर कांटे वाले तार लगाए गए थे, ताकि बच्चे दीवार कूदकर विद्यालय से भाग न सकें।
उस क्रीड़ा स्थल में आने जाने के लिए दो द्वार थे लेकिन जिस द्वार से अश्वत कूदकर अंदर आया था, उस द्वार के निकट ही एक बाथरूम बना हुआ था जिसके पीछे से अश्वत को कुछ बच्चों कि फुसफुसाहट सुनाई दी।
अश्वत ने बाथरूम के पीछे देखा जाकर तो वहाँ बारहवीं कक्षा के तीन छात्र विद्यालय से भागने का प्रयास कर रहे थे। अश्वत को वहाँ सिगरेट के धुएँ कि तीव्र दुर्गंध आ रही थी, उस स्थान पर सिगरेट के कई टुकड़े पड़े हुए थे। उन तीनों छात्रों कि उम्र सतरा-अठारहा के आसपास थी। एकाएक अश्वत के वहाँ प्रकट होते ही उन सभी कि बोलती बंद हो गई, तभी अश्वत कि दृष्टि अपने बड़े भाई पर पड़ी।
“अश्वत! तू यहाँ क्या कर रहा है?” उन तीनों में से एक लड़के ने अश्वत से पूछा, उसका नाम रचित था और वह अश्वत के मामा का लड़का था।
अश्वत कुछ बोलता उससे पहले ही रचित के पीछे खड़ा विक्रम आगे आकर बोला, “ये तो वही है जिसने एनुअल डे पर बाहुबली फिल्म का ‘ कौन है वो ’ गाना गाया था।”
“कौन है वो! कौन है वो! कहाँ से वो आया? और यहाँ क्या कर रहा है?” विक्रम ने गाते हुए पूछा।
“कुछ नहीं।” अश्वत के मुँह से बड़ी हल्की आवाज़ निकली।
“अच्छा, यहाँ आओ।” विक्रम प्रेमभरे स्वर में बोला। अश्वत का भोला चेहरा देखकर, विक्रम अपने मित्रों को कनखियों से देखकर मुस्कुराया जैसे उसके मन में अभी-अभी किसी नए विचार ने जन्म लिया हो।
“घूमने चलेगा हमारे साथ?” विक्रम ने अश्वत से पूछा।
“हम इसे अपने साथ ले जाकर क्या करेंगे।” रचित ने विरोध करते हुए कहा।
“तुम लोग जा कहाँ रहे हो और यहाँ से बाहर कैसे निकलोगे।” अश्वत ने पूछा।
“देखा! इसका मन भी है चलने का। क्या खुराफ़ाती सवाल पूछा है, यहाँ से बाहर कैसे निकलोगे?” विक्रम ने उत्साहित स्वर में रचित से कहा।
“वो कहीं नहीं जाना चाहता, बस ऐसे ही पूछ लिया उसने।” रचित बोला।
“चलना है या नहीं? हाँ या ना में जवाब दे।” विक्रम ने तुरंत अश्वत से पूछा।
अश्वत का भाई उसे अपने साथ ले जाने के लिए सहमत नहीं हुआ जिस कारण उसने अपना सिर ना में हिलाकर विक्रम को अपना जवाब दिया।
विक्रम बहुत ही अड़ियल और उद्दंड लड़का था। उसे ना सुनना पसंद नहीं था, अश्वत द्वारा उनके साथ जाने से मना करते ही विक्रम भड़क उठा और अपने दोनों हाथों से कसकर उसका कॉलर पकड़ लिया।
“क्या कर रहा है, भाई! पागल हो गया है क्या।” रचित तुरंत विक्रम को रोकने के लिए आगे आया। “इसे साथ ले जाकर क्या करना है।”
रचित और अश्वत अपनी पारिवारिक दुश्मनी के कारण आपस में बोलचाल नहीं रखते थे इसलिए रचित उसे अपने साथ ले जाना नहीं चाहता था। लेकिन मेघना जो विक्रम कि बहन थी, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि अश्वत कि हालत देखकर उसे मज़ा आ रहा था। दोनों भाई बहन एक जैसे ही थे। दूसरों को सताना और उनकी दयनीय हालत पर हँसने में उन्हें बहुत आनंद आता था।
“अब आखरी बार पूछता हूँ, चलेगा या नहीं?” विक्रम ने कठोरता से पूछा।
अश्वत ने इस बार अपना सिर हाँ में हिलाया क्योंकि वह भी विद्यालय से बाहर जाकर घूमना चाहता था। भले ही रचित और अश्वत के आपसी संबंध मधुर नहीं थे लेकिन जब रचित साथ में जा ही रहा था, तो अश्वत को भी साथ चलने में कोई समस्या नहीं थी।
“तेरा class teacher कौन है?” विक्रम ने पूछा।
“अमित जोशी!” अश्वत ने घबराते हुए जवाब दिया।
“बड़ा मा***** है वो।”
विक्रम ने रचित को कनखियों से कुछ इशारा किया और रचित उसकी बात समझ गया। रचित ने दीवार के सहारे इकट्ठे पत्तों को साफ किया और पत्तों के ढेर के पीछे छुपे, एक लकड़ी का फट्टा हटाया। फट्टा हटते ही अश्वत को दीवार में एक छेद दिखाई दिया।
रचित ने अपना बैग बाहर फेंका और फिर खुद भी उस छेद से बाहर चला गया और उसके बाद विक्रम ने मेघना को बाहर निकलने का इशारा किया।
मेघना के बाद, अश्वत बाहर निकला। वह उस छेद से बहुत आराम से बाहर निकल गया और उसके पीछे विक्रम भी बाहर निकल आया। अश्वत के बाहर आते ही मेघना ने तुरंत अपने बैग से एक छोटा सा आईना निकाला और बैग अश्वत को पकड़ा दिया। मेघना आईना देखते हुए अपना चेहरा और बालों को संभालने लगी।
सड़क पर निकलते ही विक्रम ने एक ऑटो आता देखा और उसे अचानक हाथ दिखाकर रोकने का प्रयास किया।
उस ऑटो वाले ने अचानक ब्रेक मारा, फिर भी ऑटो उन लोगों से कुछ आगे जाकर रूका। ऑटो रुकते ही ऑटो वाले ने केवल अपना सिर बाहर निकाल कर पीछे देखा और इशारे में अपनी भौंहें उचकाते हुए पूछा, “कहाँ जाना है?”
विक्रम उसके पास गया और उसे कोटला हाउस चलने के लिए कहा, “कोटला हाउस!”
“वहाँ जाके का करेगा?” ऑटो वाले ने हैरानी से पूछा।
ऑटो वाले के मुँह में पान भरा हुआ था, वह बार-बार अपना मुँह ऊपर उठाकर बात कर रहा था। ताकि उसका कीमती पान मुँह से निकल कर ज़मीन पर न गिर जाए।
“चलना है या नहीं!” विक्रम ने फिर से पूछा।
“तीन हजार लगेंगे।” ऑटो वाले ने एक बड़ी कीमत माँगी, जो सामान्य मूल्य से तीन गुना अधिक थी।
“पंद्रह सौ!” विक्रम ने आधा दाम लगाया। लेकिन उसके द्वारा पंद्रह सौ बोलते ही ऑटो वाला तुरंत मान गया, “बईठो।”
विक्रम को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऑटो वाला इतनी जल्दी मान कैसे गया? लेकिन अब कीमत तय हो चुकी थी जिसमें कोई फेर-बदल नहीं किया जा सकता था और उन्हें देर भी हो रही थी इसलिए विक्रम ने अपना सिर ऑटो कि तरफ झटकते हुए, अपने सभी साथियों को ऑटो में बैठने का इशारा किया।
रचित और मेघना तुरंत जानवरों कि तरह ऑटो में बैठ गए आकर, लेकिन अश्वत वहीं मेघना का बैग लिए खड़ा रहा।
“चलें!” विक्रम ने ऊँचे स्वर में अश्वत को भी ऑटो में बैठने का संकेत किया।
अश्वत भी ऑटो में बैठ गया आकर, लेकिन वे चारों सही से ऑटो में एडजस्ट नहीं हो पा रहे थे। अश्वत को छोड़, वे तीनों अपनी सुविधा अनुसार ऑटो कि सीट से अपनी कमर चिपका कर आराम से बैठ गए लेकिन अश्वत को सीट के किनारे पर अपना एक कूल्हा लटकाए चुपचाप बैठना पड़ा।
मेघना उसके ठीक बगल में बैठी थी, वह अश्वत से उम्र में बड़ी थी लेकिन अश्वत को उसके करीब बैठकर शर्म आ रही थी। उसके समीप बैठकर उसे बहुत अजीब महसूस हो रहा था।
अचानक मेघना ने अश्वत से अपना बैग छीनकर, अपने हाथ में पकड़ा आईना बैग में वापस डाल दिया और फिर उसमें से अपना मोबाइल निकालकर, वापस से बैग अश्वत को पकड़ा दिया। जहाँ एक ओर विद्यालय में मोबाइल लाने पर प्रतिबंध था, वहीं दूसरी ओर कुछ उद्दंड बच्चे विद्यालय के नियमों को तोड़ने में अपनी शान समझते थे। मेघना ने अपने मोबाइल से सेल्फी खींचना प्रारंभ कर दिया। अश्वत मेघना को कनखियों से देख रहा था। विक्रम और रचित चुपचाप बैठे हुए थे, उनके लिए यह सामान्य बात थी।
“वइसे तुम लोग कोटला हाउस का करने जा रहे हो?” ऑटो वाले ने पूछा।
फिर उसने महसूस किया कि उसके मुँह में पान का रस आवश्यकता से अधिक भर चुका था, इसलिए उसने किसी बँदूक की तरह अपने मुँह से ऐसी गोली चलाई जिससे उसके मुँह से निकलने वाला सारा तरल पदार्थ ऑटो से बाहर गिरा जाकर।
ऑटो वाले कि बात सुनकर अश्वत की आँखें विस्मय से फैल गईं।
वह कोटला हाउस का नाम सुनते ही चौंक गया।
“हम लोग कोटला हाउस जा रहे हैं?” उसने घबराते हुए पूछा। अब उसकी शर्म कहीं लुप्त हो चुकी थी।
“मुझे यहीं उतार दो, मैं कहीं नहीं जाऊँगा। प्लीज! मुझे यहीं उतार दो, मैं कहीं नहीं जाऊँगा।” अश्वत किसी मछली कि तरह छटपटाने लगा।
उसे छटपटाते देख विक्रम यह सोचने लगा कि कहीं ऑटो वाला यह न समझ ले कि वे लोग अश्वत को जबरदस्ती अपने साथ ले जा रहे थे। तभी विक्रम ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर मेघना को अश्वत को शांत कराने का इशारा किया।
मेघना अश्वत से चिपक कर बैठ गई और अपना एक हाथ उसके कंधे पर और दूसरा हाथ उसके गाल पर रखकर, अश्वत कि आँखों से आँखें मिलाकर बोलना शुरू किया, “सुनो, क्या तुम्हें हम पर भरोसा नहीं, हम लोग कोटला हाउस नहीं बल्कि गर्म पानी की झील देखने जा रहे हैं जो कोटला हाउस के ही पास है। उस घर को देखना तो दूर, हम उसके पास भी नहीं भटकेंगे, विश्वास करो।”
“पक्का!” अश्वत ने अविश्वास से पूछा। मेघना ने अपना सिर हिलाया।
“अब शांत रहोगे ना?” मेघना ने बड़े प्रेम से पूछा। अश्वत ने हाँ में अपना सिर हिलाया जैसे वह उसकी बात अच्छे से समझ चुका हो। मेघना ने अश्वत को इतने प्रेम से अपने वश में कर लिया मानो उसके पास लोगों को वश में करने कि कोई अमानवीय शक्ति हो।
“कोटला हाउस का नाम सुनते ही ये बऊरा काहे गया भाई!” ऑटो वाले ने विस्मयादिबोधक भाव से पूछा।
“कोटला हाउस का नाम सुनने से कौन नहीं डरता और उसके नाम से तो पूरा शहर डरता है।” विक्रम ने जवाब दिया।
“लेकिन हम किसी के बाप से नहीं डरते इसलिए हमारे सिवा तुम्हें दूसरा कोई कोटला हाउस लेकर भी नहीं जाता।” ऑटो वाले अपनी तारीफ करते हुए बोला।
“तुम लोग वहाँ कुछ भी करो जाकर हमें उससे का मतबल, हमारा काम है सवारी को उसकी मंजिल तक पहुँचाना, उन्हें उनकी मंजिल पर पहुँचाने के बाद हमारी जिम्मेदारी खतम और फिर ना तुम हमको जानो - ना हम तुमको जाने।
लेकिन कोटला हाउस जाना है बहुत खतरनाक, हमारी जगह कोई ओर होता तो तुम लोगों को कतई नहीं ले जाता लेकिन बो तो हम हैं जो ले जा रहे हैं, हमें देख के तो अच्छे-अच्छे भूत भाग जाते हैं, हम भूत से काहे डरें।
वइसे! हमें लगता है कि बस लोगन को डराने के लिए, सरकार ने ये सब खाली का हऊआ फैला रखा है। सुना है, सरकार ने उस घर में... बो का होता है जो पृथ्वी के बाहर से आते हैं? ऑटो वाले ने अचानक अपनी बात को अधूरा छोड़ते हुए पूछा।
“एलियन!” अश्वत ने सोचते हुए उत्तर दिया।
ऑटो वाले ने एक बार पुनः ऑटो से बाहर थूकते हुए अपना मुँह खाली किया और अश्वत के उत्तर से सहमत होते हुए बोला, “हाँ... आलियन, सरकार ने उस घर में आलियन कि जेल बना रखी है।”
“एलियन! सच में! उस घर में एलियन्स हैं?” अश्वत को ऑटो वाले कि रहस्यपूर्ण बातें सुनने में आनंद तो आ रहा था, पर विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन फिर भी वह कोटला हाउस के बारे में ओर अधिक जानना चाहता था। इसलिए केवल अश्वत ही था जो ऑटो वाले कि बातें सुन रहा था।
“तभई तो सरकार भी उस घर का संरक्षण कर रही है।” ऑटो वाले ने कहा।
“तो फिर सरकार वहाँ पर पुलिस या आर्मी को तैनात क्यों नहीं करती?” अश्वत ने बड़ी जिज्ञासा से प्रश्न पूछा।
“पुलिस कि का जरुरत है, जब लोगन के डर से ही काम चल रहा है।”
“लोगन! x-men वाला।” अश्वत ने ऑटो वाले का मजाक उड़ाते हुए कहा क्योंकि वह बार-बार लोगों को लोगन कह के संबोधित कर रहा था।
“का बकलोली कर रहा है, पागल! लोगन का मतबल नहीं पता?” ऑटो वाला अश्वत कि व्यंग्यात्मक मुस्कान देखकर गुस्से में बोला।
अश्वत को उम्मीद नहीं थी कि वह ऑटो वाला उसका अपमान कर देने वाला उत्तर देगा। अश्वत कि बेज्जती पर मेघना और रचित अपने होंठ दबाए मंद-मंद हस रहे थे। अश्वत ऐसा महसूस कर रहा था जैसे भरी सभा में उसे फिर से अपमानित किया गया हो, संभवता आज उसका दिन ही बुरा था।
उसके बाद अश्वत तो चुप हो गया लेकिन वह ऑटो वाला पूरे रास्ते लगातार पकर-पकर करता रहा। लगभग एक घण्टे में वे लोग कोटला हाउस पहुँच गए, ऑटो वाले कि बातें सुनते-सुनते अश्वत को समय का पता ही नहीं चला कि वे लोग कोटला हाउस कब पहुँच गए।
विक्रम पूरे रास्ते चुपचाप बैठा रहा लेकिन रचित और मेघना अपनी ही बातों में लगे रहे और मेघना ने तो पूरे रास्ते सेल्फी खींचने का रिकॉर्ड ही तोड़ दिया था। लेकिन अश्वत के पास ऑटो वाले कि बातें सुनने के अलावा दूसरा कोई अन्य विकल्प नहीं था।
ऑटो वाला बड़ा ही बड़बोला था, उसकी बात कोई सुने या ना सुने लेकिन वह पूरे रास्ते बोलता रहा और बार-बार थूकता रहा। अश्वत के मन में बार-बार विद्यालय का विचार आ रहा था कि अगर उसके प्रधान अध्यापक को पता चला कि वह विद्यालय से भाग चुका है तो वो उसकी बैंड बजा के रख देंगे और उसके माता-पिता से भी उसकी शिकायत कर देंगे, बस यही डर अश्वत कि चिंता का कारण था। अश्वत को ऑटो में बैठने से बहुत परेशानी हो रही थी, वह ठीक से बैठ नहीं पा रहा था, लेकिन इस बात से मेघना या विक्रम किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
“ यह रहा तुम्हारा कोटला हाउस, अब हियाँ तुम लोग जिओ या मरो, ब..ब.. हमारा मतबल है के तुम लोग हियाँ घूमो-फिरो, कुछ भी करो हमारा हैडक नहीं है।” ऑटो वाले ने अपनी जुबान को संभालते हुए बोला।
“ लेकिन कोटला हाउस गूगल मैप पर नज़र क्यों नहीं आ रहा है?” मेघना ने ऑटो वाले से पूछा। “अरे! ये नेटवर्क कहाँ चले गए, अभी तो आ रहे थे।” मेघना परेशान होकर बोली। उस स्थान पर नेटवर्क नहीं मिलते थे इसलिए वहाँ किसी को कॉल करके भी नहीं बुलाया जा सकता था।
“ नेटवरक नहीं मिलते हियाँ और गूगल मेप कि का जरुरत है, बो रहा तुम्हारा कोटला हाउस।” ऑटो वाले ने जंगल के भीतर इशारा करते हुए कहा।
वे चारों ऑटो से नीचे उतरे और विक्रम ने ऑटो वाले को पंद्रह सौ रुपए देते हुए कहा, “ यहीं रुकना, हम लोग अभी आते हैं।”
“ वापस जाने का पाँच हजार लगेगा।” इस बार ऑटो वाले ने अपना हुकुम का इक्का फेंका और दिल खोलकर एक तगड़ी रकम माँगी। उस मार्ग पर व्यापारिक वाहन बहुत कम ही आते थे और अगर आते भी थे, तो कोटला हाउस के सामने कभी नहीं रुकते थे। वह उन लोगों कि इसी बात कि मजबूरी का लाभ उठना चाहता था।
“ क्या? पाँच हजार!” विक्रम वापस जाने कि कीमत सुनकर अकबका गया और ऑटो वाले पर भड़क उठा। मेघना और रचित के होश उड़ गए लेकिन अश्वत के भाव एक समान ही बने रहे क्योंकि उसे आने-जाने के खर्चे से कोई लेना देना नहीं था।
“ पागल समझा है क्या? आने के पंद्रह-सौ और जाने के पाँच हजार। एक घण्टे में एक महीने कि कमाई करना चाहता है क्या?” विक्रम भड़कते हुए बोला, ऑटो वाला उससे उम्र में काफी बड़ा था लेकिन उसे इस बात कि कोई चिंता नहीं थी कि उसे अपने से बड़े से किस प्रकार बात करनी चाहिए। क्रोध आने पर, वह छोटा बड़ा नहीं देखता और किसी से भी भिड़ जाता था।
“ देखो बत्तमीजी तो हमसे करो मत, हम बहुत बत्तमीज आदमी हैं। केबल आने कि बात हुई थी, जाने कि नहीं। पाँच हजार देना है तो दो, बरना हम चले।” ऑटो वाले ने अड़ियल स्वर में जवाब दिया और अपना ऑटो घुमाया तथा वापस जाने का दिखावा करने लगा। तभी विक्रम ऊँची आवाज़ में ऑटो वाले को सावधान करते हुए चिल्लाया, “रुको! हम लोग वापस कैसे जाएंगे?”
ऑटो वाला अचानक रुक गया। विक्रम समझ चुका था कि ऑटो वाले से बहस करने का कोई फायदा नहीं था इसलिए उसने अपने दोस्तों से पाँच हजार रुपए इकट्ठा करना शुरु कर दिया।
“ यह ऑटो वाला तो बड़ा हरामी निकला यार!” रचित ने हल्के से विक्रम के समीप आकर कहा।
“ सही कहा तुने, लेकिन अभी इससे बहस करने का कोई फायदा नहीं है। तेरे पास कितने रुपए हैं?” विक्रम ने रचित से पूछा।
“ मेरे पास सिर्फ हजार रुपए हैं।” रचित बड़े फीके मन से बोला।
“ और तेरे पास।”
“ तू पागल है क्या! मेरे पास रुपए कहाँ हैं! और वैसे भी, अपनी छोटी बहन से कौई रुपए माँगता है क्या।” मेघना विक्रम को बड़े भाई का फर्ज़ याद दिलाते हुए बोली। विक्रम कभी भी मेघना से रुपए नहीं माँगता था और ना ही वह उससे अधिक बहस करता था।
“ और तेरे पास? कुछ है या नहीं!” अश्वत को अपनी अंतिम उम्मीद समझकर, विक्रम ने उससे भी पूछ ही लिया। वे तीनों अश्वत को ही घूर रहे थे और उसके उत्तर कि प्रतीक्षा कर रहे थे।
“ मेरे पास बस ये दस रुपए हैं।” अश्वत ने अपनी जेब से दस का नोट निकालकर, विक्रम को देते हुए कहा।
“ दस रुपए में क्या होता स्टूपिड!” मेघना ने अश्वत का दस का नोट छीनकर बोला। मेघना को छोटी-छोटी बातों पर दूसरों को पागल घोषित करने में अधिक समय नहीं लगता था।
“ का सोचा है? हम रुकें या जाएँ?” ऑटो वाला उनके निर्णय कि प्रतीक्षा करते हुए बोला।
“ रुको, हम अभी आते हैं।” विक्रम बडे़ धैर्य से बोला। सबके मन में यही प्रश्न उठा कि विक्रम पाँच हजार रुपए कहाँ से देने वाला था।
“ रुकने का हजार रुपए एक्स्ट्रा लगेगा, वो भी एडवांस।” ऑटो वाले ने बड़ी ही बेशर्मी से पुनः वहाँ खड़े रह कर केवल प्रतीक्षा करने के हजार रुपए माँग लिए।
उसकी यह बात सुनते ही विक्रम का खून खौल उठा, उसका मन किया कि पास में ही पड़ी ईंट उठाकर ऑटो वाले की खोपड़ी फोड़ दे, लेकिन रचित विक्रम का गुस्सा भाँप गया और उसे शान्त करते हुए, वह ऑटो वाले के पास गया और अपने हजार रुपए पकड़ा कर, उसे वहीं रुकने को कहा।
“चल यार! फटाफट अपना काम करते हैं और निकलते हैं यहाँ से।” रचित ने कहा। वे तीनों जंगल के भीतर कोटला हाउस कि तरफ बढ़े। अश्वत भी मेघना का बैग लिए उनके पीछे चल दिया।
उन सभी ने अपनी दृष्टि ऊपर उठाकर देखा तो वृक्षों कि आड़ में छुपा कोटला हाउस दिखना प्रारंभ हो गया। कोटला हाउस पर नज़र पड़ते ही वे तीनों खुश भी हुए और डरने भी लगे लेकिन उनके भीतर छुपा डर अभी चेहरे पर प्रकट नहीं हुआ था।
वे लोग फटाफट कोटला हाउस के बाड़े तक पहुँच गए, बाँस के टुकड़ों से बना हुआ वह बाड़ा, लक्ष्मण रेखा कि तरह उस घर कि सुरक्षा कर रहा था।
बाड़े कि परिधि के भीतर घुसते ही, वे चारों अचानक गर्मी का अनुभव करने लगे जबकि उन सभी ने सर्दी के कारण लाल रंग का स्वेटर पहना हुआ था।
“ अचानक गर्मी कैसे बढ़ गई!” मेघना ने विस्मय से बोला और अपना स्वेटर उतार दिया। उसके स्वेटर उतारते ही दिन कि रोशनी में हल्के पीले रंग कि उसकी कमीज़ दमक उठी। बिना स्वेटर के मेघना बहुत ही आकर्षक लग रही थी।
अश्वत और रचित कि दृष्टि मेघना पर ही टिकी हुई थी, वे दोनों घण्टों बिना पलकें झपकाए उसे देखते रह सकते थे, लेकिन विक्रम ने उन दोनों का ध्यान अपनी बहन से हटाने के लिए अचानक उनका ध्यान भंग करते हो बोला, “अब अंदर चलकर देखना है या नहीं!”
“हाँ! हाँ! चलना है, क्यों नहीं चलना, चलना है, ज़रुर चलना है। चलो!” रचित तुरंत मेघना से अपना ध्यान हटाते हुए, हड़बड़ाकर बोला।
“अंदर! अंदर चलकर क्या करना है, हम तो झील देखने आए थे ना?” अश्वत ने घबराते हुए पूछा।
“ कैसी झील!” मेघना परिहास करते हुए बोली। मेघना कि बात पर विक्रम भी मुस्कुराने लगा।
“ मिस्ट्रीडूम नाम के एक यूट्यूबर ने, जिसने इस घर के अंदर जाकर एक वीडियो बनाया था, उसने लोगों को एक चेलेंज दिया है कि जो भी उसकी तरह अंदर से कोटला हाउस का वीडियो बनाकर लाएगा, वो उसे पाँच लाख रुपए देगा इसलिए इससे पहले दूसरे शहरों से लोग यहाँ आने लगें, उनसे पहले हम ही यह वीडियो बनाकर पाँच लाख रुपए जीत लें।” रचित ने अश्वत को समझाया।
“पाँच लाख रुपए! अगर वो झूठ बोलता हुआ तो? क्या पता वो इस घर में आया हि न हो? इस घर को किसी ने भी अंदर से नहीं देखा है, तो तुम कैसे कह सकते हो कि उसने इसी घर में आकर वीडियो बनाया था।” अश्वत ने पूछा।
“उसने इस घर में वीडियो बनाया हो या ना बनाया हो लेकिन अगर हमारा इस भूतिया घर का वीडियो वायरल हो गया, तो हम अच्छा खासा पैसा कमा सकते हैं और अगर मिस्ट्रीडूम का वो विडियो झूठा है, तो हो सकता है कि उसका झूठ भी सबके सामने आ जाए। समझा!” मेघना ने अश्वत से कहा।
“और अगर इस घर में सच में भूत हुआ तो?” अश्वत ने घबराते हो पूछा।
“भूत-वूत कुछ नहीं होता है, स्टुपिड।” मेघना बोली। मेघना कि बात सुनने के बाद अश्वत चुपचाप चलता रहा।
“तुम्हारे पास पाँच हजार रुपए हैं भी या नहीं?” मेघना ने विक्रम से पूछा।
“नहीं।” विक्रम ने ना में सिर हिलाया।
“फिर ऑटो वाले को रुपए कहाँ से दोगे?”
“तुम दे देना, मैं तुम्हारे वापस कर दूँगा।” विक्रम ने कहा।
“पर मेरे पास कहाँ हैं? सच बताओ तुम्हारे पास रुपए हैं ना!” मेघना परेशान होकर बोली। विक्रम ने अपना सिर हाँ में हिलाया।
“और वो रुपए कहाँ से आए?” मेघना ने पूछा।
“बाद में बताता हूँ।” विक्रम ने उसकी बात को टालते हुए कहा।
उस बाड़े के भीतर घास से आवृत खुले मैदान को पार करते हुए, वे चारों बातें करते-करते उस घर के मुख्य द्वार पर जा पहुँचे। वे लोग वहाँ पहुँच तो गए लेकिन वह घर बाहर से इतना डरावना लग रहा था कि अब अंदर जाने के डर से ही सबके दिलों कि धड़कनें तीव्र हो चुकी थीं।
“ रचित! दरवाज़ा खोल जाकर।” विक्रम ने तानाशाही स्वर में कहा।
“ अच्छा! तो तू मुझे यहाँ, ये दरवाज़ा खुलवाने के लिए लाया है? रचित ने डरकर कहा।
“अश्वत! तू जा। तू खोल जा कर।” विक्रम ने अश्वत को आदेश दिया।
“ वो कहीं नहीं जाएगा, यह बात हमारे बीच कि है।” रचित ने विक्रम के आदेश कि अवेहलना करते हुए कहा। सब एक दूसरे का मुँह देख रहे थे। भले ही कोई दिखा नहीं रहा था लेकिन भीतर ही भीतर डर के मारे उन सबकी फटी पड़ी थी।
“अबे यार! यह तेरा सगा भाई थोड़ा न है जो तू इसकी इतनी चिंता कर रहा है।” विक्रम ने कहा।
“ तुझे पता है! अगर इसे कुछ भी हो गया, तो मेरे बुआ और फूफा मुझे छोड़ेंगे नहीं।” रचित ले हल्के से अश्वत से दूर हटकर विक्रम और मेघना को समझाया।
“ अबे तू इतना डर क्यों रहा है, मैं तो इसे इसीलिए लाया था। इससे दरवाज़ा खुलवाते हैं और अगर अंदर कोई खतरा हुआ, तो हम लोगों को पहले ही पता चल जाएगा और अगर इसे कुछ हो भी गया तो किसे पता कि यह हमारे साथ था।” विक्रम ने अपना घिनौना षड्यंत्र बताया। लेकिन उसकी बात से रचित सहमत नहीं हुआ।
“ मेरे पास एक आइडिया है!” मेघना उन दोनों के बीच में बोली और वे दोनो उसके आइडिया को सुनने के लिए सहमत हो गए।
“ तो जो सबसे पहले अपनी सिगरेट फूँक देगा, वो जीत जाएगा और जो हार जाएगा, वही दरवाज़ा खोलेगा।”
“लेकिन मैं सिगरेट नहीं पिता।” अश्वत ने बोला।
“तुझसे किसी ने पूछा?” मेघना अश्वत से चिढ़कर बोली।
वे तीनों सहमत हुए और विक्रम ने अपने पीछे वाली पॉकेट से एक सिगरेट कि डिब्बी निकाली तथा उसमें से तीन सिगरेट निकाल कर एक साथ जलाने लगा।
“ तीन कि गिनती पर शुरू करेंगे” विक्रम ने नियम बताते हुए दोनों को एक-एक सिगरेट पकड़ा दी। अश्वत खुश था क्यूंकि उसे उस सिगरेट प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए नहीं कहा गया था।
“एक, दो, तीन, गो!” तीन तक गिनने में विक्रम ने तीन सेकेंड भी नहीं लिए। सबसे पहले विक्रम ने अपनी सिगरेट खतम की और उसके बाद मेघना ने। ऐसा लग रहा था मानो दोनों भाई बहन बरसों से इसी क्षण कि तैयारी कर रहे थे।
रचित बिना किसी के कुछ कहे अपनी हार मान चुका था। हार के कारण, उसने अपनी नजरें झुका लीं, लेकिन एक ही क्षण के बाद उसने नज़रें उठाकर उस घर कि तरफ देखा। खंडहर जैसा दिखने वाला वह घर रचित कि जान सुखा रहा था, लेकिन उस घर का दरवाज़ा खोलने कि जिम्मेदारी अब रचित के कन्धों पर ही थी।
रचित को गर्मी लग रही थी, जो शायद उसके डरे हुए मस्तिष्क से पैदा हो रही थी। रिलेक्स होने के लिए, उसने भी अपना स्वेटर उतार दिया और अश्वत को पकड़ा दिया। जिसे देखो अपना फालतू सामान अश्वत को ही पकड़ाता जा रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे वह उन लोगों का कोई सेवक था।
उस घर के दरवाजे पर ना तो कोई ताला था और ना ही कोई विशेष सूचना। रचित धीरे-धीरे घर के दरवाज़े तक पहुँचा और उसे एक झटके में धक्का देकर खोलने का प्रयास किया। लेकिन वर्षों से बंद पड़ा वह दरवाज़ा जाम हो चुका था, उसके धक्के से वह हिला तक नहीं।
उसने बहुत दम लगाया लेकिन उस दरवाजे को अकेले खोल पाना उसके सामर्थ्य कि बात नहीं थी। रचित अपना पूरा बल लगा ही रहा था कि विक्रम भी उसका साथ देने आ गया।
दोनों एक साथ मिलकर अपना पूरा दम लगाते हुए धक्का दे रहे थे कि अचानक दरवाजा झटके से खुल पड़ा और रचित व विक्रम को संभलने का अवसर तक नहीं मिला और वे दोनों घर कि चौखट के भीतर जा गिरे।
उनकी इस स्थिति पर मेघना और अश्वत ठहाके मारकर ज़ोर ज़ोर से हसने लगे। वे दोनों फुर्ती से अपने कपड़े झाड़ते हुए खड़े हो गए। मेघना ने बिना डरे उन दोनों के बीच से होते हुए कोटला हाउस में प्रवेश किया। लेकिन अश्वत का मन अभी भी नहीं मान रहा था, पर सबको भीतर जाता देख, उसे बाहर अकेले खड़े रहने में डर लगने लगा, इसलिए वह भी उन लोगों के पीछे हो लिया।
अपनी नजरें इधर-उधर घुमाते हुए उन चारों ने घर के भीतर प्रवेश किया। ऐसा लग रहा था जैसे वह दरवाज़ा ही उस घर कि रोशनी का मुख्य स्रोत था क्योंकि उस घर के अंदर एक भी खिड़की नहीं थी, जहाँ से सूर्य कि किरणें उस घर में प्रवेश कर, घर को जगमगा सकें। घर के हर कोने पर मकड़ियों ने अपने आशियाने बसाए हुए थे और किसी खंडहर कि तरह पूरा घर धूल-धूसरित हो रखा था। उन सभी के कदमों से फर्श एक स्वर में बज रहा था। अश्वत ने अपने पैरों को फर्श पर दो-तीन बार ठोककर, उसे बजा कर देखा, पूरी फर्श लकड़ी कि बनी हुई थी। लेकिन पूरा घर लकड़ी से ही बना था, यह कह पाना मुश्किल था। ज़मीन पर इतनी धूल थी कि जहाँ वे लोगे पैर रखते, वहाँ उनके जूतों कि छाप छूट जाती।
घर का हॉल काफी बड़ा था, अश्वत ने महसूस किया कि हॉल उसके घर से भी बड़ा था। उन्होंने सिर ऊपर उठाकर देखा तो छत पर लगे वर्षों पुराने सूखे पेंट कि पपड़ियाँ छुटती नज़र आ रही थीं।
हरे रंग कि वे दीवारें इतनी पुरानी थीं कि अब उनका रंग भी फीका पड़ चुका था। उन्हें दाईं और बाईं दिवारों के बीचों-बीच एक ही दरवाज़ा नज़र आया। सभी दरवाजों के अगल-बगल में बहुत पुराने रोशनदान लगे हुए थे, जो अभी बंद पड़े थे। वह घर जितना विशाल बाहर से नहीं लगता था, उससे कहीं अधिक भीतर से था लेकिन पूरा घर खाली पड़ा था। हॉल में आगे तीन पग ऊँची सीढ़ियों के बाद, घर के पिछले हिस्से का हॉल था।
उन सभी के अंदर प्रवेश करने के बाद, अचानक से घर का मुख्य दरवाज़ा एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ स्वतः ही बंद हो गया और घर में अचानक हल्का अंधेरा छा गया। उनका दिल दहल उठा अचानक से चेहरे के हाव-भाव ही बदल गए, अब भीतर छुपा भय चेहरे पर साफ-साफ प्रकट हो चुका था। वे सभी उस दरवाजे कि तरफ भागे।
हाईवे कि चिकनी काली सड़क पर जंगल के बीचों-बीच, धुंध उड़ाती हुई, एक गाड़ी रुकी आकर जिसमें से खाकी वर्दी पहने, दो पुलिस वाले गाड़ी से नीचे उतरे। वे दोनों पुलिस वाले उन बच्चों कि तलाश में वहाँ पहुँचे थे, जिन्हें गायब हुए कई महीने बीत चुके थे।
अमन रोय जिसे पुलिस कि नई नौकरी और सब इंस्पेक्टर के नए पद के साथ अभी कुछ दिन ही हुए थे। वर्दी पर दो सितारों का गुरूर उसकी आंखों में चमकता था। उसे कुछ ऐसा चाहिए था जिससे पुलिस विभाग में उसका नाम रोशन हो सके और अति शीघ्र उसकी पदोन्नति भी हो सके। अमन स्वयं को एक मसीहा समझता था, लोगों को बचाने वाला हीरो, जिसे अपने जीवन से अधिक दूसरों के जीवन कि चिंता होती है, लेकिन उसमें ऐसा कोई गुण नहीं था।
एक दिन एक ऑटो वाला पुलिस स्टेशन आया।
“सर, मेरा नाम बिपिन कुमार है और मैंने बाहर ये पोस्टर लगा देखा।” ऑटो वाले ने एक हवलदार को एक पोस्टर दिखाते हुए कहा, जिसमें अश्वत, रचित, विक्रम और मेघना कि तस्वीरें थीं।
“हाँ तो, यह तो कई महीनों से लगा है।” हवलदार ने जवाब दिया।
“लेकिन सर, आखिरी बार मैंने इन बच्चों को कोटला हाउस के रास्ते पर छोड़ा था। उन लोगन ने कहा था कि उन्हें कोटला हाउस जाना है।” ऑटो वाले ने बताया।
“और तुमने उन्हें छोड़ भी दिया!” हवलदार भड़कते हुए बोला। “ तू जानता भी है, कोटला हाउस कितनी मनहूस जगह है और तूने उन बच्चों को वहाँ अकेला छोड़ दिया।”
“अकेले कहाँ हैं, चार तो हैं!” ऑटो वाला पोस्टर देखते हुए बोला।
“पक्का यही बच्चे थे?” हवलदार ने शांत हो कर पुष्टि करते हुए पूछा।
“सर हमारे बच्चों कि कसम, यही बच्चे थे।” ऑटो वाला पूरे दृढ़ विश्वास से बोला।
“इन बच्चों के गायब हुए पूरे नो महीने बीत चुके हैं और तुम्हें अब समय मिला, यह सब बताने का।” हवलदार कठोरता से बोला।
“क्या नाम बताया जगह का?” अचानक सब-इंस्पेक्टर अमन रोए ने पूछा। वह उन लोगों कि बातें काफी देर से सुन रहा था। उसे जैसे ही उन गुमशुदा बच्चों कि खबर मिली, उसने उस केस को अपने हाथों में लेने का निर्णय ले लिया और फिर यही वो केस था, जो उसका जीवन बदलने वाला था।
“कोटला हाउस!” ऑटो वाले ने उत्तर दिया।
“कहाँ है कोटला हाउस?” अमन रोए ने अपने साथी हवलदार से पूछा। वे दोनों जंगल के उसी मार्ग पर खड़े थे जिस मार्ग पर कोटला हाउस पड़ता था। अमन कि उम्र पच्चीस वर्ष थी और वह हवलदार उससे मात्र दो वर्ष बड़ा था। अमन उस हवलदार को अपने साथ उस स्थान पर ले आया जहाँ उस ऑटो वाले ने उन बच्चों को छोड़ा था।
“सर, आपको सच में लगता है कि वे बच्चे कोटला हाउस गए होंगे क्योंकि आप तो इस शहर में नए हो लेकिन वे बच्चे, वे तो इसी शहर के हैं और वे अच्छे से जानते होंगे कि कोटला हाउस भूतिया है, तो वो लोग भला उस घर में क्यों जाएंगे?”
“तुम लोग इतना डरते क्यों यार! भूत जैसी चीज़े न, नब्बे के दशक में होती थीं। अब यह बताओ कोटला हाउस है कहाँ?” अमन को फिल्में देखने का बहुत शौक था इसलिए उसकी आदत भी फिल्मी अंदाज में बात करने कि पड़ चुकी थी।
“ मुझे ठीक से नहीं पता लेकिन इस जंगल में यहीं कहीं होना चाहिए!” हवलदार सोचते हुए बोला, उसे सटीक जानकारी नहीं थी कि कोटला हाउस कहाँ था। लेकिन अमन को उस पर विश्वास नहीं हुआ।
“ डर के चक्कर में नहीं बता रहे ना?” अमन ने अविश्वास से कहा। “ यह मत भूलो कि तुम ड्यूटी पर हो और मैं तुम्हारा सीनियर हूँ, इसलिए तुम्हें मेरी हर बात मानने पड़ेगी।” उसने कठोरता से कहने का दिखावा किया, उसके चेहरे पर सीनियर होने का गुरुर साफ दिख रहा था। अमन प्रतीक्षा कर रहा था कि वह कुछ बोलेगा लेकिन हवलदार चुपचाप खड़ा रहा, कुछ न बोला। तभी अमन ने यह निर्णय लिया कि वह खुद कोटला हाउस को ढूँढ लेगा।
“ चलो! अगर तुम्हें नहीं पता तो… मुझे ही ढूँढना पड़ेगा।” अमन ने कहा। “ उस ऑटो वाले ने कहा था कि जहाँ जंगल के बीच पेड़ों कि संख्या कम हो जाए, वहीं कोटला हाउस होगा।” इतना कहते ही वह बिना डरे जंगल के भीतर घुस पड़ा और वह हवलदार भी उसके पीछे पीछे चल दिया। अमन भूतों पर विश्वास नहीं करता था और ना ही किसी से डरता था।
“सर कोटला हाउस के नाम से भी लोग डरते हैं और आप उसी घर कि तलाश कर रहे हैं।” हवलदार ने घबराते हुए कहा।
“मैं उस घर कि नहीं बल्कि उन बच्चों कि तलाश कर रहा हूँ।” अमन ने आगे चलते हुए कहा। “ एक बात बताओ यार! मैं जबसे इस शहर में आया हूँ, मैंने कोटला हाउस का नाम बहुत सुना है। आखिर ऐसा क्या है उस घर में, जो लोग उस घर से इतना डरते हैं?” अमन ने पूछा।
“ लोगों का कहना है कि उस घर में एक नहीं बल्कि कई भूतों का निवास है। इस पूरे अठारह किलोमीटर के रास्ते पर एक भी होटल या रिसॉर्ट नहीं है इसलिए उस घर को कई बार बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने खरीदकर, वहाँ एक होटल का निर्माण करने के बा
उसे खोलने के लिए रचित और विक्रम दरवाज़े पर झपट पड़े और दरवाज़े के हैंडल को पकड़ कर अपना पूरा बल लगाते हुए, उसे खींचने लगे लेकिन पूरा प्रयास करने के बाद भी वे दोनों दरवाज़े को खोल नहीं पाए।
“माद***, खुल जा माद***, खुल जा।” विक्रम गुस्से में अनाप-शनाप गालियाँ बक रहा था।
मेघना ने आगे बढ़कर घबराते हुए, दरवाज़े को पीटना शुरू कर दिया, वह डर के मारे जोर-जोर से चीखने लगी, “कोई है? प्लीज़ हेल्प। कोई है? कोई तो दरवाजा खोल दो यार! प्लीज़!”
अचानक घर के भीतर जितने भी रोशनदान थे, प्रज्वलित हो उठे और पूरा घर रोशनी से जगमगा उठा। उन लोगों ने डरकर यहाँ-वहाँ देखना शुरु कर दिया लेकिन कोई नज़र नहीं आया। यह समझना बहुत मुश्किल था कि रोशनदान किसी ज्वलनशील पदार्थ से प्रज्वलित हो रहे थे या फिर बिजली से संचालित हो रहे थे क्योंकि उन रोशनदानों को संचालित करने वाले बिजली के किसी भी प्रकार के संयंत्र या उपकरण किसी भी दिवार पर मौजूद नहीं थे।
इससे भी बड़ा प्रश्न यह था कि उन रोशनदानों को प्रज्वलित किसने किया था क्योंकि वहाँ उनके अलावा और कोई नहीं था। यह कार्य किसी भूत प्रेत का नहीं हो सकता था क्योंकि किंवदंतियों के अनुसार भूत प्रेत आग या रोशनी से दूर ही रहते हैं।
उन रोशनदानों के जलने के बाद वे सभी ओर अधिक घबरा गए और वहाँ से निकलने के लिए बिलकने लगे।
“शायद! घर के पीछे बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता हो सकता है!” अश्वत बोला।
“चलो चलकर देखते हैं।” विक्रम ने तुरंत प्रतिक्रिया दिखाई।
घर का पिछला हॉल, मुख्य हॉल से भी बड़ा था। दोनों हॉल के बीच में एक गलियारा घर के दाएँ और बाएँ हिस्से को एक साथ जोड़ता था। चार कदम चौड़ा वह गलियारा बहुत विचित्र था जिसे देखकर वे सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि उस गलीयारे कि दीवारें अनेकों दरवाजों से भरी पड़ी थीं, संभवतः वे कक्ष मात्र एक व्यक्ति के विश्राम के लिए बने हों।
जब वे लोग उस घर के पिछले हिस्से में पहुँचे तो वहाँ कि भव्यता देख दंग रह गए। पिछले हॉल में विशाल और चौड़ी लकड़ी कि सीढ़ियाँ थीं, जो वर्षों से धूल चाट रही थीं, हॉल के एक कोने में एक ड्रिंक काउंटर था जिसमें रखी सारी बोतलें खाली पड़ी थीं। दो मंजिल ऊँची छत के बीचों-बीच बनी प्रिज्म कि भाँति एक पारदर्शी काँच की खिड़की से आती सूर्य की रोशनी, उस हॉल को रोशनदान कर रही थी।
उस हॉल में भी ठीक वैसा ही एक बड़ा सा दरवाजा था, जो शायद जंगल के पिछले हिस्से को उस घर से जोड़ता था। उस दरवाजे के बाहर दाएँ और बाएँ तरफ, मानव स्वरुपी गेंडों कि दो मूर्तियाँ रक्षकों कि भाँती एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल लिए खड़ी थीं।
उस दरवाजे के पटल पर बीच में गेंडे कि एक लंबवत सींग उभरी हुई थी, जो नीचे से ऊपर तक संकरी होती चली गई, जिसके कारण वह दरवाज़ा कोई विशेष कक्ष का लग रहा था क्योंकि बाकी सभी दरवाजों पर बड़े ही विशिष्ट ढंग से हाथी का मुख उकेरा हुआ था।
“शायद, यह दरवाजा जंगल के पिछले हिस्से में खुलता हो!” मेघना उस बड़े से विचित्र दरवाज़े को देखते ही आशाभाव से बोली।
पहले तो वे सभी उन विचित्र गेंडों कि मूर्तियों को देखकर घबराए लेकिन जैसे ही रचित और विक्रम थोड़ी सी हिम्मत करते हुए दरवाज़ा खोलने के लिए आगे बढ़े, वैसे ही उन मूर्तियों में भी अचानक जाना आ गई और दोनों मूर्तियाँ दरवाजे कि रक्षा करने के लिए सजग हो गईं। उन मूर्तियों को ज़िन्दा देख विक्रम और रचित ने तुरंत अपने कदमों को पीछे हटा लिया और उनके पीछे हटते ही वे मूर्तियाँ भी पुनः आपने स्थान पर वापस स्थापित हो गईं। उन्होंने किसी भी प्रकार का कोई हमला नहीं किया। ऐसा अद्भुत चमत्कार देखकर, वे सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि इससे पहले किसी ने भी मूर्तियों को ज़िन्दा होते हुए नहीं देखा था।
रचित पीछे खड़ा रहा लेकिन विक्रम को विश्वास नहीं हुआ इसलिए उसने एक बार पुनः अपने कदमों को आगे बढ़ाकर देखा और जैसे-जैसे विक्रम उस दरवाजे कि तरफ बढ़ा, वैसे-वैसे उन मूर्तियों की चेतना वापस लौटने लगी और वे दोनों मूर्तियाँ उस दरवाज़े कि ओर बढ़ने वाले का प्रतिरोध करने के लिए दरवाजे के सामने खड़ी हो गईं।
अचानक विक्रम को उसकी बहन ने उसे पीछे खींच लिया। वह डरी हुई थी कि कहीं उसके भाई का जीवन संकट में ना पड़ जाए।
“पागल हो गए हो क्या! अगर वो तुम्हें कुछ कर दें तो।” मेघना चिंता से बोली।
“मुझे लगता है कि वो ऑटो वाला ठीक कह रहा था। ये मूर्तियाँ नहीं, बल्कि रोबोट हैं और इनकी आँखों में, शायद! कैमरा लगा है। इस दरवाज़े के पीछे जरूर कुछ Important है।” विक्रम अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाते हुए बोला।
“शायद! वे सभी बातें सच थीं जो हम लोग इस घर के बारे में सुनते आए थे। शायद सच में यह घर भूतिया है!” रचित ने विचार किया।
“देख, मुझे नहीं लगता ये कोई रोबोट हैं और ये कुछ भी हों, अच्छी बात तो यह है कि हम अभी तक ज़िन्दा हैं, तो बस हमें यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता ढूँढना चाहिए।” रचित घबराते हुए बोला।
डर के कारण पसीने से लथपथ, वे सभी निराश और परेशान दिख रहे थे लेकिन अश्वत उन तीनों से अधिक परेशान था क्योंकि वह उन सब में सबसे छोटा था और उस बच्चे को वहाँ सांत्वना देने वाला कोई नहीं था, वे तीनों तो अपनी ही धुन में लगे हुए थे। उसे बार-बार यही सोचकर पछतावा हो रहा था कि क्यों वह खिड़की से बाहर देख रहा था, क्यों वह कक्षा से बाहर घूम रहा था, क्यों वह विद्यालय से भागा और क्यों वह उन लोगों के साथ यहाँ आया।
“ हमारे माता-पिता हमारे लिए परेशान हो रहे होंगे, वे तो यह भी नहीं जानते कि हम लोग कोटला हाउस के भीतर कैद हो चुके हैं, वे लोग हमें ढूँढेंगे कैसे? उन्हें कैसे पता चलेगा कि हम लोग कोटला हाउस में हैं?” इन्हीं विचारों के कारण अश्वत कि आँखें आँसुओं से भर चुकी थीं।
“ अब हम क्या करेंगे?” मेघना ने विचलित होकर पूछा।
“ अब शायद! वही होगा, जो हम दूसरों के बारे में सुनते आए थे।” रचित घबराहट में अनाप-शनाप बकने लगा। “अब हम सब भी इसी घर में मारे जाएंगे। हमारे घर वालों को कभी हमारी लाश तक नहीं मिलेगी। उस यूट्यूबर ने हमें पागल बनाया, वह कभी इस घर में नहीं आया था क्योंकि जो घर उसने अपनी वीडियो में दिखाया था, वो ऐसा नहीं था, ऐसा बिल्कुल भी नहीं था।”
“तु पागल हो गया है क्या?” विक्रम रचित कि बातों से चिढ़कर बोला।
“सही कहा, मैं पागल ही था जो पाँच लाख के लालच में यहाँ आ गया। अब तुम लोगों कि वजह से, मैं भी इस घर में मारा जाऊँगा।” रचित अपना होश खो बैठा था।
“रचित! मेरे भाई! तू शांत हो जा। फालतू बकवास मत कर।” विक्रम ने गुस्से में कहा।
मेघना ने अपना मोबाइल निकाला और उसके नेटवर्क चेक किए लेकिन अभी तक उसके मोबाइल में नेटवर्क वापस नहीं आए थे।
“तुम लोगों के फोन में नेटवर्क आ रहा है क्या?” मेघना ने पूछा। विक्रम और रचित ने अपना मोबाइल चैक किया लेकिन उनके मोबाइल के नेटवर्क भी लापता थे।
रचित हाथ जोड़कर रुआँसी आवाज़ में भगवान से विनती करने लगा, “ हे भगवान! बस एक बार दरवाजा खोल दो, उसके बाद मैं कभी इस घर कि तरफ मुड़कर भी नहीं देखूँगा। प्लीज़!”
तभी अचानक उन लोगों को दरवाज़ा खुलने कि एक भूतिया आवाज आई और उनकी नज़र एक लड़की पर पड़ी जो बहुत परेशान दिख रही थी। दाएँ तरफ के दरवाजे से जो लड़की बाहर आई थी, वह ओर कोई नहीं बल्कि नैना थी। नैना को देखते ही वे लोग चौंक गए।
“माफ करना दीदी!” मेघना ने नैना को देखते ही उसे कोटला हाउस का मालिक समझ लिया और उससे माफी माँगते हुए, वहाँ से बाहर जाने का आग्रह करने लगी। “हम लोग आप के घर में बिना पूछे घुस आए, हमें नहीं पता था कि यह घर आपका है। लेकिन अब हम लोग बाहर जाना चाहते हैं, तो प्लीज़ आप दरवाज़ा खोल दीजिए। हम तो बस…”
वह ओर कुछ भी कहती लेकिन उससे पहले नैना बीच में बोल पड़ी, “यह घर मेरा नहीं और मैं तो खुद काफी देर से इस बाथरूम में फसी हुई थी।” नैना ने उस दरवाजे कि तरफ इशारा किया जिस दरवाजे से वह बाहर आई थी।
“लेकिन तुम लोग कौन हो?” नैना ने आश्चर्य से पूछा। उसने बड़ी हैरानी से अपनी दृष्टि इधर-उधर घुमाई, जिस हाॅल को छोड़कर वह वॉशरूम गई थी, ये वह हाॅल नहीं था। वो झूमर और टेबल कहीं अदृश्य हो गया था, उसे रचित और सुमित कहीं नहीं दिखाई दिए।
नैना को लगा जैसे वह कोई सपना देख रही थी क्योंकि उसके थोड़ी देर वॉशरूम में बंद रहने से किसी के लिए भी इतना बड़ा परिवर्तन करना असंभव था। उसने उन अद्भुत गोल पेट वाली गैंडों मूर्तियों को देखा, उसमें विशाल दरवाजे को देखा
भले ही वह उन लोगों को जानती नहीं थी लेकिन पता नहीं क्यों नैना कि दृष्टि अश्वत पर आकर ठहर गई। वह काफी देर तक उसको घूरते हुए, याद करती रही कि उसने उस लड़के को पहले कहीं देखा हुआ है।
“अश्वत!” नैना बहुत हैरान हो कर बोली। उसे झटके से याद आया और याद आते ही, उसकी प्रतिक्रिया ऐसी थी जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो। उसने अश्वत को उसके स्कूल के कपड़ों से उसे पहचान लिया। उसकी यादों में अश्वत का चेहरा काफी धुंधला पड़ चुका था। उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अश्वत ही था।
“तुम अश्वत ही हो ना?” नैना ने आश्चर्यचकित भाव से कंफर्म करते हुए पूछा। अश्वत ने हाँ में अपना सिर हिलाया, उसके चेहरे पर भी विस्मय का भाव प्रकट हो रहा था क्योंकि वह नहीं जानता था कि वह लड़की उसे कैसे जानती थी।
“नहीं, नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता!” नैना स्वयं को समझाते हुए बोली मानो उसके सामने एक ऐसा सत्य था जो उसे दिख तो रहा था लेकिन वह उस सत्य पर विश्वास नहीं कर पा रही थी।
“क्या नहीं हो सकता? और आप हो कौन? और आप मुझे कैसे जानती हैं?” अश्वत ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की।
“मेरा नाम नैना है मैं तुम्हारी क्लासमेट थी।” नैना ने उत्तर दिया।
“थी नहीं, है। नैना मेरी क्लासमेट है और आप मजाक मत कीजिए। आप कौन हैं सच सच बताइए?” अश्वत ने नैना कि बात का प्रतिरोध करते हुए कहा।
“मैं सच ही कह रही हूँ, मुझे अच्छे से याद है वो दिन, जिस दिन तुम स्कूल से ही लापता हो गए थे।” नैना ने अश्वत कि आँखों में देखते हुए कहा। “उस दिन पाण्डे सर ने पूरी क्लास के सामने तुम्हें डाँट कर, तुम्हें क्लास से बाहर निकाल दिया था और उसी दिन से तुम हमेशा हमेशा के लिए लापता हो गए। तुम्हारे साथ-साथ स्कूल के तीन विद्यार्थी ओर भी थे जो उसी दिन गायब हुए थे, शायद तुम तीनो वही हो! फिर कुछ दिन बाद, तुम्हारे बारे में पूछताछ करने स्कूल में पुलिस भी आई थी। लेकिन तुम्हारे बारे में कभी किसी को कुछ पता नहीं चला और तुम्हें ढूँढने निकले दो पुलिस वाले भी लापता हो गए। फिर बाद में इस कैस को बंद करवा दिया गया।”
“हमें पागल समझा है क्या?” विक्रम ने नैना से अड़ियल स्वर में कहा। “आप कहानी अच्छी बना लेती हैं लेकिन आप कि कहानी का कोई मतलब नहीं बनता क्योंकि अगर आप वही लड़की हैं जो आप बता रहीं हैं तो आपकी उम्र भी इस चूज़े के बराबर होनी चाहिए थी।” विक्रम ने अश्वत कि तरफ संकेत करते हुए कहा।
“विश्वास तो मुझे भी नहीं हो रहा है क्योंकि उस दिन से लगभग आठ साल बीत चुके हैं लेकिन तुम लोगों में एक परसेंट भी कोई बदलाव नहीं आया है, तुम अभी भी बिल्कुल वैसे ही दिख रहे हो जैसे आठ साल पहले थे।” नैना ने अश्वत को देखते हुए हैरानी से बोला।
“अगर आप मेरी वाली नैना, मतलब! वही नैना हो जो मेरे साथ पढ़ती है, तो... यह बताइए कि आज पाण्डे सर हमें क्या पढ़ा रहे थे।” अश्वत ने अपना संदेह दूर करने के लिए ऐसा प्रश्न पूछा जो संभवता नैना ही बता सकती थी।
“मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती, जिस दिन मेरा करीबी दोस्त गायब हो गया था। पांडे सर हमें उस दिन बेरोजगारी के बारे में पढ़ा रहे थे और उन्होंने तुमसे इसी बार में प्रश्न पूछा था इसका तुम उत्तर हीं पता था जिसके बाद उन्होंने तुम्हें क्लास से बाहर निकाल दिया था। मैंने तुम्हें कागज पर लिखकर भी बताया था कि तुम्हें क्या जवाब देना है लेकिन तुम पूरा पढ़ पाते उससे पहले ही पांडे सर ने तुम पर फिर सच्ची कपड़े।
मैं वही तुम्हारे बगल में बैठी तुम्हें पाण्डे सर के सवाल का जवाब लिखकर बता रहे थे।
“पर! पर तुम इतनी बड़ी कैसे हो गईं?” अश्वत ने बड़ी ही हैरानी से पूछा क्योंकि उसे अब नैना कि बात पर कुछ कुछ विश्वास होने लगा था।
“सवाल यह नहीं है कि मैं बड़ी कैसे हो गई, सवाल तो यह है कि तुम छोटे कैसे रह गए और आखिर तुम लोग यहाँ पहुँचे कैसे और क्यों?” नैना ने घुमा फिराकर अपना ही प्रश्न उन लोगों से पूछ रहा
“एक मिनट!” विक्रम अचानक चीख पड़ा। “मुझे कोई बताएगा, आखिर यहाँ चल क्या रहा है? राम छोटा रह गया, सीता बाड़ी हो गई। यहाँ रामायण चल रही है क्या। पहले आप मेरे सवालों का जवाब दो, उसके बाद हम बताएंगे कि हम यहाँ क्यों आए।”
“बहुत देर से देख रही हूँ, तू बहुत बद्तमीजी से बात कर रहा है। तू है कौन जो मैं तेरे सवालों का जवाब दूँ।” नैना ने ऐंठ कर कहा।
“मुझे उल्टा जवाब देगी!” विक्रम गुस्से में बोला।
“पागल हो गए क्या! तू किसी को भी कुछ भी बोलने लगता है, उसकी उम्र देख, वो हमसे बड़ी है और ऊपर से वो लड़की है।” मेघना ने विक्रम को समझाने का प्रयास किया।
“लड़की है तो क्या आरती उतारूँ।” विक्रम ने कहा।
“चुप कर मुझे बात करने दे।” मेघना ने कहा।
“आपने मिस्ट्रीडूम का नाम सुना है?” मेघना ने नैना से पूछा। नैना ने ना में सिर हिलाया। नैना को उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी तभी मेघना ने नैना को सारी बात बताई।
“और पाँच लाख के लालच में हम यहाँ तक आ गए, लेकिन पैसे ही हमारे लिए सब कुछ नहीं थे, हम भी दूसरों कि तरह फेमस होना चाहते थे और लोगों के मन से इस घर का डर खत्म करना चाहते थे।”
“तुम लोगों कि कहानी भी कुछ कुछ मेरी तरह ही है, मैं भी इस घर के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए ही इस घर में आई थी। बचपन में एक आदमी ने मुझसे कहा था कि कोटला हाउस में कभी मत जाना और उसने मुझे एक डायरी भी दी थी जिसमें इस घर से जुड़ी डरावनी कहानियाँ लिखी थीं।
उसने भले ही मुझे इस घर में आने से मना किया था लेकिन उसके मना करने से, इस घर के बारे में मैं ओर अधिक सोचने लगी और फिर इस घर से जुड़े रहस्यों को जानने कि जिज्ञासा ही मुझे यहाँ तक खींच लाई।” नैना ने अपनी कहानी से परिचित कराया और उस घर में आने के बाद उसके साथ क्या हुआ, यह बताना आरंभ किया।
“तो अब वो लड़का कहाँ है जो आपके साथ था?” रचित ने नैना कि पूरी कहानी सुनने के बाद पूछा।
“पता नहीं। भगवान करे वो सही सलामत हो!” नैना ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा।
अचानक ड्रिंक काउंटर के पास वाले दरवाजे से, जो हॉल के बाएँ तरफ था, एक पुलिस वाला हड़बड़ा कर बाहर आया
Comments
Post a Comment
Leave your feedback in comment section. If this story worth for a movie, Please support us.