This is a short novel written by Sumit Saxena in hindi. Registaan ke Rehsaya inspired by a most famous book The Alchemist by paulo coelho. Here you are going to read first chapter of Secrets of desert.
Secrets of desert
Chapter 1: Viraan Registaan
अचानक उसकी आँखें खुलीं, वह बड़ी हड़बड़ी में उठा, जैसे कोई डरावना सपना देख लिया हो लेकिन आँखें खोलते ही सूर्य की तेज रोशनी ने उसकी आँखों को झिलमिला कर रख दिया।
अपनी आँखों को सूर्य की तेज रोशनी के प्रहार से बचाने के लिए उसने अपने सीधे हाथ को अपनी आँखों के सामने कर दिया। जब उसकी आँखें पूर्ण रूप से सूर्य के प्रकाश का सामना करने के लिए सक्षम हो गईं तब उसने अपने चारों तरफ देखा।
उसे दूर-दूर तक केवल सूर्य के प्रकाश में चमकती पीली रेत दिखाई दी। रेत के महीन कण किसी मखमले बिस्तर से भी अधिक मुलायम थे। रेत इतनी मुलायम थी कि उसके महीन कण जरा सी हलचल से ही पानी की तरह इधर-उधर फिसल रहे थे।
उसे अपने चारों और असीमित, गुमनाम, जीवन रहित रेगिस्तान दिख रहा था, दूर-दूर तक कोई नहीं था। सूर्य ठीक उसके सिर पर था।
यह सब उसे कोई स्वप्न लग रहा था। उसने थोड़ी सी रेत अपनी मुट्ठी में भरकर , धीरे-धीरे वापस ज़मीन पर गिरा दी। उस स्थान पर वायु के प्रवाह का कोई संकेत नहीं था, रेत में कोई हलचल नहीं दिखाई दी वह सीधे सीधे ज़मीन पर गिर गई, उसका एक कण भी वायु से पथ भ्रमित नहीं हुआ।
उसे कुछ ठीक महसूस नहीं हो रहा था, उसे समय जानने की जिज्ञासा हुई, यह उसकी पहली जिज्ञासा थी। उसने अपने उल्टे हाथ कि कलाई को ऊपर उठाया, समय देखने के लिए लेकिन उसकी घड़ी उसकी कलाई पर नहीं थी, वह हमेशा घड़ी पहनता था।
उसने ज़मीन पर कई बार इधर-उधर देखा लेकिन उसकी घड़ी कहीं नहीं दिखाई दी।
जब घड़ी से उसका ध्यान हटा तब उसे पुनः दूर-दूर तक केवल रेत का समुंदर दिखाई दिया, उसके लिए यह बहुत अजीब बात थी कि उसे कुछ याद नहीं आ रहा था; कि वह उस वीरान रेगिस्तान में कैसे पहुँचा था?
यह वह जगह नहीं थी जहाँ वह सोया था और ना ही वह यहाँ कभी आया था। उसे अच्छे से याद था कि पिछली रात उसने शराब भी नहीं पी थी क्योंकि अगर पी होती तो उसे अच्छे से याद रहता कि उसने कब और कहाँ पी थी?
लेकिन विचित्र बात यह थी कि उसे पिछली रात का ही क्या, बल्कि उसे अपना पूरा जीवन ही याद नहीं आ रहा था।
वह कुछ देर वहीं सुखी रेत पर बैठकर यह सोचता रहा कि वह ऐसी जगह पर कैसे पहुँच गया जहाँ वह कभी नहीं आया था?
लोग स्वप्न में भी स्वयं का नाम नहीं भूलते लेकिन उसे अपना नाम तक याद नहीं आ रहा था। उस रेगिस्तान में वह अकेला था लेकिन उसे जगह-जगह पर एक-दो पेड़ दिखाई दे रहे थे, वे भी सूख चुके थे, अपने जीने कि आशा छोड़कर।
जहाँ जल नहीं था वहाँ जीवन कैसे संभव को सकता था लेकिन वे पेड़ अभी भी डटे हुए थे, शायद अभी भी कुछ उम्मीद बाकी थी इसलिए वे पेड़ उस सूखे रेगिस्तान में बरसों से प्यासे खड़े थे। ना जाने उस सूखे रेगिस्तान में वे वृक्ष कहाँ से आए थे?
इससे पहले वह सोच सोच कर अधिक परेशान होता, वह वहाँ से उठकर चलने लगा, वह नहीं जानता था कि उसे किस तरफ जाना था या उसे किस दिशा में जाना चाहिए था? वह बिना किसी मंज़िल के आगे बढ़ने लगा, वह नहीं जानता था कि आगे क्या होने वाला था? वह नहीं जानता था कि उसका आज का दिन कैसा गुजरने वाला था? लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे उसे इस बात कि परवाह ही नहीं थी।
उसे चलते-चलते काफी देर हो चुकी थी लेकिन दूर-दूर तक कुछ सूखे वृक्षों के सिवाय और कोई नहीं दिख रहा था।
अगर वे वृक्ष भी वहाँ नहीं होते तब वह उस निर्जन रेगिस्तान में बहुत अकेलापन महसूस करता या फिर कदाचित वह उन वृक्षों के बारे में विचार भी नहीं करता।
अपनी सुध-बुध खोए वह चुपचाप चलता रहा, कई घण्टों का सफर तय करने के बाद उसका ध्यान उस रेगिस्तान के एक विचित्र रहस्य पर गया, उसने सूर्य को देखा जो ठीक उसके सिर के ऊपर था और वह तब भी वहीं था जब उसने पहली बार उस रेगिस्तान में अपनी आँखें खोली थीं।
कुछ दूर चलने के बाद उसने फिर से सिर उठाकर अपने दोनों हाथों से अपनी आँखों को ढकते हुए ऊपर देखा, वह सीधे उससे आँख नहीं लड़ा पा रहा था लेकिन आग की तरह चमकता वह लाल गोला अभी भी उसके सिर पर मंडरा रहा था।
“शायद ! इसकी पत्नी आज इससे क्रोधित होगी, जिसके डर से इसे अपने घर जाने में डर लग रहा है इसलिए आज सूर्य अस्त होने का नाम ही नहीं ले रहा।”
उस वीरान रेगिस्तान के अकेलेपन में उसने स्वयं के विचारों को जन्म दिया, यह पहली बार था जब उसने उस स्थान पर कुछ सोचा था। वह स्वयं इस मजाक के बारे में कल्पना करते हुए मुस्कुराया और अचानक उसे स्वयं की पत्नी का स्मरण हुआ, लेकिन अपनी पत्नी का नाम याद करने में भी उसने अपने आप को असमर्थ महसूस किया। उसे याद आया कि वह शादीशुदा था।
उसे अपनी खूबसूरत पत्नी का चेहरा याद आया जो उसकी यादों में काफी धुंधला पड़ चुका था। उसकी पत्नी के धुंधले चेहरे ने उसे परेशान कर दिया।
उसने अपने कपड़ों की सभी जेबों को खंगाल डाला लेकिन उसे अपनी पत्नी कि एक तस्वीर तक नहीं मिली जिसे देखकर वह अपनी पत्नी कि यादों को ताजा कर सकता था।
उसे याद आया कि अक्सर उसकी पत्नी जब भी उससे नाराज़ होती थी तब वह घर देर से जाता था। वह जितनी देर से घर जाता था उसकी पत्नी उतनी ही अधिक चिंता करती थी।
इस प्रकार उसकी पत्नी का गुस्सा चिंता में और चिंता प्यार में बदल जाती थी। उसकी पत्नी को लगता था कि आज उसका पति बहुत काम करके आया है लेकिन यह तो एक सोची समझी साज़िश होती थी।
ऐसी योजनाएँ सबके साथ एक जैसा कार्य नहीं करतीं क्योंकि कई लोगों की पत्नियाँ देर से आने वाले पतियों पर शक करती हैं और वह अपने पतियों से ओर अधिक नाराज़ हो जाती हैं। शक उनके परिवार के विनाश का कारण बनता है।
उसे सूर्य की हालत पर दया आई, उसने सोचा कि सूर्य की पत्नी भी उससे नाराज़ होगी इसलिए वह आज घर देर से जाना चाहता होगा।
उस अकेलेपन में उसने सूर्य को अपना दोस्त समझा जो उस वीरान रेगिस्तान में हमेशा हर जगह उसके साथ था। उन दोनों कि दोस्ती के बाद भी काफी देर तक उन दोनों में चुप्पी बनी रही क्योंकि सूर्य ने इस बीच उससे कोई बात नहीं की।
शायद! वहाँ ऐसा कोई नहीं था जो उससे बात करता इसलिए वह चुपचाप चलता रहा, बिना किसी मंज़िल के।
“ये सब जो भी हो रहा है बहुत अजीब है, कहीं मैं पागल ना हो जाऊँ” उसने मन में विचार किया।
“जब अकेलापन हमारे दिमाग पर हावी होने लगता है, तब हम उन चीजों से भी बातें करने की कोशिश करने लगते हैं जो हमसे हमारा नाम तक नहीं पूछ सकतीं।”
नाम के बारे में सोचने पर उसे अचानक अपना नाम याद आया।
“सुमित!” उसके मुँह से यही नाम निकला। उसे याद आया कि उसका पूरा नाम ‘सुमित सक्सेना’ है।
“सुमित” बड़ी हलकी ध्वनि में उसने फिर से अपना नाम दोहराया, अपना नाम याद आने पर वह बहुत खुश हुआ।
यह बहुत विचित्र सौभाग्य था, इस दुनिया में बहुत कम लोग ही होंगे जिन्हें अपना नाम याद आने पर इतनी खुशी हुई होगी।
वह उस रेगिस्तान में कई घण्टों से भटक रहा था, वह बहुत परेशान था, घबराया हुआ था और बिल्कुल अकेला था। उसने कई बार पीछे पलट कर देखा, उसने हर बार इस उम्मीद के साथ पीछे देखा कि कोई तो होगा जो उसके पीछे आ रहा होगा, जो उसे पीछे से आवाज़ देगा और उसे रोकेगा और कहेगा कि यह मात्र मेरा एक सपना है।
“कभी-कभी उम्मीद से बड़ी निराशा मिलती है क्योंकि हम उम्मीद करते रह जाते हैं और अंत में हमें पता चलता है कि जिस चीज़ की हम उम्मीद कर रहे थे, वह मात्र एक कल्पना से अधिक कुछ भी नहीं था लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि लोग उम्मीद करना छोड़ दें।
‘उम्मीद मानव का वह शस्त्र है जो प्रत्यक्ष रुप से दिखाई तो नहीं देता लेकिन इस अस्त्र से मानव बड़ी से बड़ी मुश्किलों का सामना बड़ी सरलता से कर लेता है।’
उम्मीद से हमें कठिन परिस्थितियों में डट कर खड़े रहने की शक्ति मिलती है, सब्र मिलता है और जीने का सहारा मिलता है।”
वह स्वयं को समझाने का प्रयास कर रहा था, वह अपने मनोबल को मजबूत कर रहा था।
उसने चलते चलते इस बात पर गौर किया कि उस पिघला देने वाली धूप में भी उसे गर्मी नहीं लग रही थी और पसीने कि एक बूँद भी उसके शरीर पर नहीं थी। वह अब तक थका नहीं था, उसके शरीर में अभी भी उतनी ही ऊर्जा थी जितनी पहले थी।
उसे अपना शरीर बहुत हल्का लग रहा था, जैसे उसके शरीर का सारा भार समाप्त हो चुका हो। वह बहुत चिंतित और विचलित था। उसे घबराहट हो रही थी। लेकिन सूर्य उसकी यह चिंता ओर बढ़ा रहा था, जो आज अस्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
उस सूखे रेगिस्तान में उसे अब तक प्यास नहीं लगी थी जो शायद उसके लिए एक अच्छी बात थी। लेकिन इस विचार ने उसकी चिंता को चार गुना बढ़ा दिया क्योंकि अगर उसे प्यास लग भी जाती तो शायद उस निर्जल रेगिस्तान में वह प्यासा ही मर जाता!
उसे कुछ पल के लिए ऐसा लगा जैसे उसे चलते-चलते कुछ घण्टे नहीं, बल्कि कुछ दिन बीत चुके थे लेकिन वास्तविकता तो यही थी कि अभी एक दिन भी पूरा नहीं हुआ था। लेकिन उसने सोचा “अगर मुझे चलते चलते कई दिन हो चुके होते; तो शायद! अब तक में चलने की हालत में भी नहीं रहता और मैं अब तक थका भी नहीं हूँ, यही मेरे लिए अच्छी बात है।”
रेगिस्तान में पैदल सफर तय करना अत्यंत दूभर होता है लेकिन वह उस रेगिस्तान में एक दौड़ में कई मील का सफर तय कर सकता था, बिना रुके, बिना थके। ये रहस्य उसे समझ नहीं आ रहे थे।
कुछ देर शांति से सोचने के लिए वह एक विशाल सूखे पेड़ के तने के सहारे बैठ गया।
कभी-कभी सफर में ठहर कर शांति से सोचना आगे के मार्ग को सरल बना देता है।
वह काफी देर तक वहाँ बैठ कर कुछ ना कुछ सोचता रहा। हज़ारों विचार उसके दिमाग में आए और चले भी गए।
“तुम इस भद्दी सी जगह पर कब से खड़े हो?” सुमित ने उस पेड़ से पूछा जो शायद ही कभी उसके प्रश्न का उत्तर देता।
काफी देर हो गई लेकिन उस पेड़ ने कोई जवाब नहीं दिया।
“तुम यहाँ कब से खड़े हो? कुछ तो बोलो, कोई तो मुझसे बात करो, कोई तो बताओ मैं कहाँ हूँ? क्यों हूँ? कैसे हूँ?” गुस्सा होने के साथ-साथ वह काफी दुखी भी हो रहा था।
उसका चिड़चिड़ापन और अकेलेपन का दुःख बढ़ता जा रहा था। वह बहुत परेशान था और बार-बार लगातार अपनी आँखों को भींच रहा था लेकिन आँसू आने का नाम तक नहीं ले रहे थे।
यह एक अजीब विडंबना थी, वह फूट-फूट कर रोना चाहता था लेकिन उसकी आँखों से मानो आँसू बिल्कुल सूख चुके थे।
‘जब व्यक्ति अकेला होता है तो आवश्यकता से अधिक सोचने लगता है।’ उसका अकेलापन उसके दिमाग पर हावी हो रहा था, वह बात करना चाहता था, अपनी समस्याओं को दूसरों को बताना चाहता था, अपने प्रश्नों के उत्तर पाना चाहता था; वह कहाँ था? उस वीरान रेगिस्तान में वह कैसे पहुँचा था? यह सब जो उसकी आँखों के सामने था, सत्य था भी या नहीं!
वो दुष्ट रेगिस्तान उसके लिए किसी रहस्य से कम नहीं था। उसका दिल बैठा जा रहा था, हजारों प्रश्न उसके मन में आ रहे थे, लेकिन उसकी जिज्ञासा शांत करने के लिए वहाँ कोई नहीं था।
उस वृक्ष ने भी उसके सवालों का कोई जवाब नहीं दिया, ईश्वर ने भी उसे अकेला छोड़ दिया था।
सुमित ने अपने मन को शांत करने के लिए अपना सारा गुस्सा उस पेड़ पर उतार दिया, उसने उस पेड़ को गुस्से में कई लातें मारीं लेकिन उस पेड़ ने ‘आह’ तक नहीं किया।
पेड़ सदा यही करते आए हैं, वे कभी अपने दुःख को बयाँ नहीं करते, कभी किसी को अपनी पीड़ा नहीं बताते।
ईश्वर ने उन्हें केवल देना सिखाया, वे बदले में कभी किसी से कुछ नहीं माँगते।
उस पेड़ पर अपना गुस्सा उतारने के बाद, सुमित कुछ देर तक शांति से खड़ा रहा।
“बेजुबान गधा!” यही दो आखरी शब्द थे जो सुमित ने उस बेचारे पेड़ से कहे थे।
मन ही मन वह उस पेड़ से माफी माँग रहा था लेकिन अगर वह उस पेड़ से माफी भी माँगता तो उसे कहाँ सुनाई देता क्योंकि ईश्वर ने उसे हमारी तरह कान नहीं दिए थे और अगर दिए होते तो हम मनुष्यों के कई रहस्य पेड़ों के पास होते।
उसे अचानक सिगरेट का स्मरण हो आया। वह जब भी परेशान होता था तो अक्सर सिगरेट पीता था। उसने आखरी बार सिगरेट कब पी थी? उसे याद नहीं था लेकिन उसे सिगरेट पीने की तीव्र इच्छा हो रही थी, ऐसी इच्छा जो पूरी नहीं हो सकती थी। लेकिन नशे कि तलब प्यास से भी अधिक दर्द देती है।
वह ईश्वर को नहीं मानता था लेकिन अगर उस बुरे समय में कोई उसे सिगरेट भी दे देता आकर तो संभवतः सुमित उसे ही अपना भगवान मान लेता।
सुमित उस बेजुबान पेड़ को अलविदा बोल कर आगे बढ़ चला, बिना किसी लक्ष्य के, बिना किसी मंज़िल के।
‘ऐसा जीवन किसी के लिए भी पीड़ादायक और नीरस हो सकता है जिसमें कोई लक्ष्य नहीं होता।’
उसने चलते चलते पुनः सूर्य देव को देखा और देखा उस नीले आसमान को, आसमान में एक भी बादल नहीं था जिसमें वह अपनी पत्नी और अपनी बेटी कि आकृतियों को देखकर खुश हो सकता था, उन्हें याद कर सकता था।
अनमोल संबंधों से निर्मित होता है एक परिवार जिसकी यादें सुमित के दिमाग में कमजोर पड़ चुकी थीं। उसे कुछ भी याद नहीं था लेकिन धीरे-धीरे उसे अपना परिवार याद आ रहा था जिसके बिना वह एक दिन भी नहीं रह सकता था।
जितना उसे याद आ रहा था, उसका दुःख उतना ही बढ़ता जा रहा था। वह सोच सोच कर पागल हुआ जा रहा था कि आखिर उसके साथ हुआ क्या था? उसे कुछ ठीक से याद क्यों नहीं आ रहा था? वह अपना परिवार भूल क्यों गया था?
उसने अपना पूरा जीवन याद करने के लिए अपने दिमाग पर बहुत ज़ोर डाला, सोचते सोचते उसे पीड़ा होने लगी, उसका सिर दर्द से फटने लगा, उसने अपना माथा पकड़ा और घुटनों के बल रेत पर गिर गया।
उसे अपनी यादों में एक बस दिखाई दी जो यात्रियों से भरी हुई थी। उसने आसपास बैठे लोगों को देखा, सबके चेहरे डरावने और धुँधले थे।
उसका दिल जोरों से धड़क रहा था, वह तीव्रता से हाँफ रहा था, वह घबराया और डरा हुआ था। अचानक एक विस्फोट हुआ और चारों ओर श्वेत दिव्य प्रकाश फैल गया। उस अद्भुत दिव्य प्रकाश का ज़िक्र उसकी माँ करती थीं, वह हमेशा उस दिव्य प्रकाश को देखना चाहती थीं। अगर वह दृश्य उसकी माँ देख लेतीं तो उन्हें परमानंद कि प्राप्ति हो जाती लेकिन शीघ्र ही वह प्रकाश कहीं लुप्त हो गया।
सुमित ने अपनी आँखें खोलीं, वह अब भी उसी मनहूस रेगिस्तान में था। सुमित समझ नहीं पा रहा था, उसे ऐसे दृश्य क्यों दिखाई दिए। उसे याद ही नहीं आ रहा था कि उसके साथ उस बस में हुआ क्या था?
“यदि यह आपकी कोई माया है, तो मुझे इससे बाहर निकालिए प्रभु!” ऐसा कहते हुए सुमित को बहुत अजीब लगा, ना जाने उसने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि वह भगवान को बिल्कुल नहीं मानता था।
‘समस्याओं से घिरा व्यक्ति हर उस चीज़ से उम्मीद करता है जिसकी वह कभी परवाह तक नहीं करता।’
उसने चलने कि अपनी गति बढ़ा दी, यह सोच कर कि कभी न कभी यह रेगिस्तान अवश्य पार हो जाएगा और उसे शीघ्र ही अपने घर लौटने का मार्ग मिल जाएगा।
चलते चलते वह एक ओर पेड़ के पास पहुँचा। उस पेड़ को देखकर सुमित को उस पर बहुत दया आयी। वह पेड़ अभी छोटा था लेकिन उसे अपना संपूर्ण जीवन वहीं बिताना था। कम से कम वहाँ से बच निकलने के लिए सुमित के पास पैर तो थे, लेकिन उस बेचारे पेड़ को अपना पूरा जीवन उस मनहूस रेगिस्तान में ही अकेले बिताना पड़ेगा।
“शहरों में अधिकतर लोग केवल मूर्ति पूजा करते हैं और वृक्षों को काटकर अपने आशियाने बसा चुके हैं। किंतु गाँव में लोग आज भी नीम, पीपल और बरगद जैसे वृक्षों को भगवान का रूप मानते हैं और लोग वृक्षों की पूजा करते हैं।
न जाने लोग भगवान कि पूजा कैसे करने लगे? जबकि वह तो दिखाई भी नहीं देते लेकिन वृक्ष प्रत्यक्ष रूप में हमारे सामने होते हैं, हमारी सभी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं, हमें प्राण वायु देते हैं अर्थात् जो कार्य ईश्वर का है, वे कार्य वास्तव में हमारे लिए वृक्ष करते हैं।” वृक्षों के प्रति ऐसी भावनाएं उसके मन में पहली बार नहीं आ रही थीं, वह हमेशा से ऐसा ही सोचता आया
“मैं अब तक बहुत दूर आ चुका हूँ!” उसने स्वयं से कहते हुए पीछे मुड़कर देखा, वह इतनी दूर आ चुका था कि वह वृक्ष भी अब उसे दिखाई नहीं दे रहे थे।
“मेरे हिसाब से काफी समय बीत चुका है, पर सूरज ढलने का नाम ही नहीं ले रहा, यह अभी भी मेरे सिर पर खड़ा है। अगर मैं इसे घूर कर देखता हूँ तो यह वापस पलट कर उल्टा मुझे घूरने लगता है।
मैं जब भी इसे देखता हूँ तो यह अपनी ऊष्मा का प्रदर्शन करते हुए और ज़्यादा चमकने लगता है और फिर मुझे हार मानकर अपनी नजरें झुकानी पड़ती हैं।
इस वीरान रेगिस्तान में मैं कब से अकेला चल रहा हूँ? क्या मैं जीवन भर ऐसे ही भटकते रहूँगा?
इस जगह के रहस्य से अनजान वह बस सीधे चलते जा रहा था। यह कभी न खत्म होने वाला दिन उसकी पीड़ा को ओर बढ़ा रहा था। वह नहीं जानता था कि वो रेगिस्तान कितना बड़ा था? लेकिन जहाँ तक उसकी नज़र जा रही थी, उसे बस रेत ही रेत दिखाई दे दी।
उसके सिवा वहाँ दूर-दूर तक कोई भी जीवित प्राणी नज़र नहीं आ रहा था, तो इस बात की उम्मीद करना भी उसके लिए मूर्खता थी कि उस वीरान रेगिस्तान में उसे कोई और भी मिलने वाला था।
“पता नहीं! मैं इस अजीब सी जगह पर कैसे पहुँच गया जहाँ,
सूर्य अस्त होने का नाम नहीं ले रहा,
पीने के लिए पानी नहीं मिलता,
पेड़ों पर पत्ते नहीं हैं,
आँखों में नींद नहीं है,
वायु में प्रवाह नहीं है,
सिगरेट नहीं है,
यादें नहीं हैं,
कहने को कोई अपना नहीं है।
उसका अंतिम वाक्य अत्यंत भावुकता से भरा था।
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